कॉप29 सम्मेलन में जलवायु वित्त पोषण के लिए नए समझौते का मसौदा: धनी देशों से $250 अरब डॉलर की सहायता की अपील

कॉप29 सम्मेलन में जलवायु वित्त पोषण के लिए नया समझौता प्रस्तावित

धनी देशों से 250 अरब डॉलर की मदद की मांग : विकासशील देशों के लिए नई जलवायु मदद

  • 2035 तक जलवायु वित्त पोषण को 1,300 अरब डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य
  • कॉप 29 सम्मेलन में जलवायु वित्त पर विवाद: विशेषज्ञों और कार्यकर्ताओं की प्रतिक्रिया
  • जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए बढ़ते वित्तीय संकट और समाधान की दिशा
अवि शिवराज
कॉप29 जलवायु सम्मेलन में वित्तीय संसाधनों पर एक नए समझौते का मसौदा पेश किया गया है, जिसमें धनी देशों से विकासशील देशों के लिए हर साल 250 अरब डॉलर की जलवायु सहायता का आग्रह किया गया है। इस रक़म का उपयोग जलवायु परिवर्तन से निपटने, स्वच्छ ऊर्जा के लिए और जलवायु प्रभावों से प्रभावित देशों के लिए किया जाएगा। विशेषज्ञों ने इसे निराशाजनक बताते हुए वित्तीय सहायता को कर्ज़ के रूप में देने पर चिंता जताई है, जबकि प्रस्तावित योजना में 2035 तक जलवायु वित्त पोषण को 1,300 अरब डॉलर तक बढ़ाने का लक्ष्य है। संयुक्त राष्ट्र समाचार की इस ख़बर से जानिए कॉप29 जलवायु सम्मेलन में मुख्य तौर पर क्या हुआ
Climate funding at the COP29 conference
Climate funding at the COP29 conference



कॉप29 : जलवायु वित्त पोषण के लिए नए समझौते का मसौदा, धनी देशों से $250 अरब डॉलर का आग्रह


बाकू में आयोजित कॉप29 जलवायु सम्मेलन के अन्तिम दिन वार्ताकारों के समक्ष वित्तीय संसाधनों पर एक नए समझौते का मसौदा पेश किया गया है. इसमें सम्पन्न देशों से सम्वेदनशील हालात व जलवायु चुनौतियों से जूझ रहे विकासशील देशों के लिए हर वर्ष 250 अरब डॉलर की सहायता धनराशि मुहैया कराने का आग्रह किया गया है.

इस वार्षिक रक़म के ज़रिये, ज़रूरतमन्द देशों के लिए वैश्विक तापमान में वृद्धि के दुष्प्रभावों से निपटना और स्वच्छ, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की दिशा में तेज़ी से आगे बढ़ना सम्भव होगा.

साथ ही, प्रस्ताव में आग्रह किया गया है कि जलवायु वित्त पोषण के लक्ष्य को वर्ष 2035 तक 1,300 अरब डॉलर तक पहुँचाना होगा, हालांकि इसमें यह स्पष्ट नहीं है कि इस रक़म का प्रबन्ध किस तरह किया जाएगा. अनुदान, ऋण के ज़रिये या फिर निजी सैक्टर की ओर से.

इस नए मसौदा प्रस्ताव के बाद, यह लगभग स्पष्ट है कि अज़रबैजान की राजधानी बाकू में पिछले दो सप्ताह से जारी जलवायु सम्मेलन अपनी निर्धारित अवधि से आगे खिंचेगा.

'निराशाजनक' मसौदा


नागरिक समाज प्रतिनिधियों व जलवायु कार्यकर्ताओं ने इस मसौदे के प्रस्ताव पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है. 350.org नामक एक अन्तरराष्ट्रीय पर्यावरण संगठन में कार्यरत नम्रता चौधरी ने इस मसौदे को बेहद निराशाजनक क़रार दिया.

“यह एक तमाचा है. यह अपमान है. यह स्तब्धकारी है कि हम अब इस स्थिति में हैं. धनी देश एक तरह से विकासशील व लघु द्वीपीय देशों के लोगों की ज़िन्दगियों के साथ जुआ खेल रहे हैं.”

कर्ज़ व विकास पर एशियाई लोगों की मुहिम चलाने वाले एक संगठन की लिडी नैकपिल ने भी अपनी निराशा जताई. उन्होंने कहा कि जलवायु वित्त पोषण को ऋण के रूप में नहीं दिया जाना होगा, चूँकि इससे कर्ज़ का बोझ बढ़ता है.

उन्होंने यूएन न्यूज़ को बताया कि विकासशील देशों को तत्काल जलवायु कार्रवाई करने और अपने लोगों तक आवश्यक सेवाएँ पहुँचाने में सबसे बड़ी बाधा, उन पर मंडराने वाला कर्ज़ का दबाव है.

वहीं, जलवायु कार्रवाई नैटवर्क के जैकोबो ओचारन ने सभी विकासशील देशों से आग्रह किया है कि वार्ता के दौरान अपनी मांगों पर मज़बूत रुख़ अपनाए रखना होगा, चूँकि यह मसौदा प्रस्ताव बहुत ख़राब है.

“हम यह बात कहना जारी रखेंगे कि एक ख़राब समझौते से बेहतर है कि कोई समझौता ही ना हो.”

क्या लगा है दाँव पर


कॉप29, यानि जलवायु परिवर्तन पर यूएन फ़्रेमवर्क सन्धि के सम्बद्ध पक्षों का 29वाँ सम्मेलन, को इस बार जलवायु वित्त पोषण कॉप कहा गया है, चूँकि इस सम्मेलन में एक नए वैश्विक जलवायु समझौते पर सहमति की सम्भावना है, जिससे जलवायु कार्रवाई के लिए वित्तीय सहायता को मज़बूती दी जाएगी.

इससे पहले, हर वर्ष विकासशील देशों को 100 अरब डॉलर मुहैया कराने पर समझौता रहा है, मगर इसकी अवधि 2025 में समाप्त हो रही है.

विशेषज्ञों का मानना है कि जलवायु कार्रवाई के लिए 1,000 अरब डॉलर से 1,300 अरब डॉलर की धनराशि की आवश्यकता होगी. इस रक़म के ज़रिये जलवायु प्रभावों के कारण होने वाली हानि व क्षति से निपटने में ज़रूरतमन्द देशों को मदद दी जाएगी. उनके लिए बचाव, अनुकूलन उपाय किए जाएंगे और स्वच्छ ऊर्जा की नई प्रणालियों का निर्माण किया जाएगा.

पिछले सप्ताह, इस नए लक्ष्य के समर्थन में, बहुपक्षीय विकास बैन्कों ने निम्न- और मध्य-आय वाले देशों के लिए जलवायु मद में वित्तीय सहायता को मज़बूती देने की घोषणा की थी.

इसरे 2030 तक 120 अरब डॉलर तक पहुँचाए जाने का लक्ष्य है और निजी सैक्टर से 65 अरब डॉलर जुटाए जाएंगे. इसके स्तर को फिर 2035 तक बढ़ाए जाने का प्रयास किए जाएगा.

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Amalendu Upadhyaya
वेबसाइट संचालक अमलेन्दु उपाध्याय 30 वर्ष से अधिक अनुभव वाले वरिष्ठ पत्रकार और जाने माने राजनैतिक विश्लेषक हैं। वह पर्यावरण, अंतर्राष्ट्रीय राजनीति, युवा, खेल, कानून, स्वास्थ्य, समसामयिकी, राजनीति इत्यादि पर लिखते रहे हैं।