लैंगिक समानता पर खतरे की घंटी

लैंगिक समानता: राजनीतिक इच्छाशक्ति और ठोस कार्रवाई की ज़रूरत, वरना 2030 तक 35 करोड़ महिलाएँ रहेंगी निर्धनता में

  • महिलाओं और लड़कियों पर बढ़ता संकट
  • हिंसक टकराव और लैंगिक असमानता
  • प्रगति की धीमी रफ़्तार और नए अवसर
  • डिजिटल खाई पाटने का महत्व

राजनीतिक इच्छाशक्ति और त्वरित कार्रवाई की पुकार

लैंगिक समानता पर यूएन रिपोर्ट (UN report on gender equality) ने चेताया है—अगर राजनीतिक इच्छाशक्ति और ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो 2030 तक 35 करोड़ महिलाएँ और लड़कियाँ अत्यधिक निर्धनता में जीवन गुज़ारेंगी। पढ़िए संयुक्त राष्ट्र समाचार की यह ख़बर...

Gender equality: Political will and concrete action needed, else 350 million women will live in poverty by 2030
Gender equality: Political will and concrete action needed, else 350 million women will live in poverty by 2030


लैंगिक समानता लक्ष्यों के लिए, राजनैतिक इच्छाशक्ति व ठोस कार्रवाई की पुकार

लैंगिक समानता की दिशा में धीमी प्रगति और मौजूदा चिन्ताजनक रुझान यदि यूँ ही जारी रहे, तो वर्ष 2030 में भी, विश्व भर में 35 करोड़ से अधिक महिलाएँ व लड़कियाँ अत्यधिक निर्धनता में जीवन गुज़ारने के लिए मजबूर होंगी.

दुनिया लैंगिक समानता से पीछे हट रही है और इसके पीड़ित अपने जीवन, अधिकारों व अवसरों में इसकी क़ीमत चुका रहे हैं. सतत विकास लक्ष्यों को साकार करने की समयसीमा में पाँच वर्ष का समय शेष है, मगर लैंगिक समानता से जुड़ा कोई भी लक्ष्य हासिल होता नहीं दिख रहा है.

महिला सशक्तिकरण के लिए यूएन संस्था (UN Women) और यूएन आर्थिक व सामाजिक आयोग के एक नए अध्ययन, SDG Gender Snapshot, में ये नए आँकड़े और लैंगिक समानता से जुड़ी निराशाजनक तस्वीर उजागर हुई है.

महिलाओं व लड़कियों के अधिकारों की दृष्टि से 2025 एक अहम वर्ष है, जब दुनिया ने तीन अहम पड़ाव पूरे किए हैं.

बीजिंग घोषणापत्र और कार्रवाई मंच की 30वीं वर्षगाँठ; महिलाएँ, शान्ति व सुरक्षा पर यूएन सुरक्षा परिषद की 25वीं वर्षगाँठ; संयुक्त राष्ट्र संगठन की 80वीं वर्षगाँठ.

लेकिन नए आँकड़े दर्शाते हैं कि महत्वाकाँक्षी 2030 एजेंडा तक पहुँचने के लिए कार्रवाई और निवेश में तेज़ी लानी होगी.

रिपोर्ट के अनुसार, पिछले पाँच वर्षों में महिला निर्धनता के मामले में कोई ख़ास बदलाव नहीं आया है और यह 2020 के बाद से अब तक 10 प्रतिशत पर ही अटकी है. इनमें अधिकाँश प्रभावित सब-सहारा अफ़्रीका, मध्य व दक्षिणी एशिया में हैं.

टकरावों से गहराता संकट

वर्ष 2024 में, 67.6 करोड़ महिलाएँ व लड़कियाँ हिंसक टकरावों से प्रभावित इलाक़ों या उनके नज़दीक रहने के लिए मजबूर थीं. 1990 के दशक के बाद से यह अब तक की सबसे बड़ी संख्या है.

युद्धग्रस्त इलाक़ों में फँसी महिलाओं व लड़कियों को विस्थापन के अलावा भी अनेक चुनौतियों से जूझना पड़ता है. खाद्य असुरक्षा, स्वास्थ्य जोखिम, और हिंसा.

अध्ययन के अनुसार, महिलाओं व लड़कियों के विरुद्ध हिंसा सबसे बड़े ख़तरों में है. विश्व भर में हर आठ में से एक महिला ने पिछले एक वर्ष के दौरान अपने संगी के हाथों यौन या शारीरिक हिंसा का अनुभव किया है.

हर पाँच में से एक महिला की 19 वर्ष की आयु होने से पहले ही शादी करा दी गई. हर वर्ष, 40 लाख लड़कियाँ, महिला जननांग विकृति का शिकार होती है, जिनमे से 50 फ़ीसदी को अपने पाँचवे जन्मदिवस से पहले ही इस पीड़ा से गुज़रना पड़ता है.

समानता को प्राथमिकता

इन निराशाजनक आँकड़ों के बावजूद, रिपोर्ट बताती है कि लैंगिक समानता को प्राथमिकता देकर बड़े बदलाव भी हासिल किए जा सकते हैं.

उदाहरणस्वरूप, ऐसे ही प्रयासों के ज़रिए 2000 से अब तक मातृ मृत्यु मामलों में 40 प्रतिशत की कमी आई है और लड़कियों द्वारा स्कूली पढ़ाई पूरी करने की सम्भावना भी बढ़ी है.

UN Women की नीतिनिर्माण शाखा में निदेशक सेराह हैंड्रिक्स ने यूएन न्यूज़ को बताया कि 1997 में जब वह पहली बार ज़िम्बाब्वे गईं, तो वहाँ जन्म देना असल में जीवन-मृत्यु से जुड़ा एक प्रश्न था.

“आज, यह वास्तविकता नहीं है. और संक्षिप्त 25, 30 वर्षों की अवधि में यह अविश्वसनीय स्तर की प्रगति है.”

लैंगिक दरारों को पाटना

टैक्नॉलॉजी क्षेत्र में हुई प्रगति में भी नए अवसर निहित हैं. 70 फ़ीसदी ऑनलाइन पुरुषों की तुलना में महिलाओं के लिए यह आँकड़ा 65 प्रतिशत है.

इस दरार को पाटने से 2050 तक, 34.35 करोड़ महिलाओं व लड़कियों को लाभ मिल सकता है. तीन करोड़ से अधिक निर्धनता के चक्र से बाहर आएंगी और वैश्विक अर्थव्यवस्था को 1,500 अरब डॉलर की मज़बूती मिलेगी.

UN Women की कार्यकारी निदेशक सीमा बहाउस ने ध्यान दिलाया कि जब लैंगिक समानता को प्राथमिकता दी जाती है, तो समाजों व अर्थव्यवस्थाओं को आगे बढ़ाने में मदद मिलती है.

मगर, महिला अधिकारों का पुरज़ोर विरोध भी हो रहा है, उनके लिए स्थान सिकुड़ रहा है और लैंगिक समानता के क्षेत्र में कड़ी मेहनत से दर्ज की गई प्रगति पर जोखिम है.

यूएन एजेंसी के अनुसार, पर्याप्त क़दम के अभाव में महिलाएँ डेटा व नीतिनिर्माण में अदृश्य हैं और धनराशि में कटौती से लैंगिक डेटा की उपलब्धता में 25 प्रतिशत की कमी आई है.

शान्ति व विकास का आधार

2025 में, बीजिंग कार्रवाई मंच की 30वीं वर्षगाँठ पर जारी इस रिपोर्ट को अहम माना गया है, जिसमें वास्तविकता को परखा जा सकता है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि लैंगिक समानता कोई विचारधारा नहीं है, बल्कि यह शान्ति, विकास और मानवाधिकारों की बुनियाद है.

संयुक्त राष्ट्र में उच्चस्तरीय सप्ताह से पहले जारी रिपोर्ट का सन्देश स्पष्ट है: महिलाओं व लड़कियों में अभी निवेश कीजिए, अन्यथा एक और पीढ़ी के लिए प्रगति धूमिल होने का जोखिम है.

रिपोर्ट में छह अहम क्षेत्रों के लिए प्राथमिकताएँ तय करते हुए 2030 तक लैंगिक समानता हासिल करने के इरादे से तुरन्त क़दम उठाने की पुकार लगाई गई है: डिजिटल क्राँति, निर्धनता से आज़ादी, शून्य हिंसा, पूर्ण व समान निर्णय-निर्धारण शक्ति, शान्ति व सुरक्षा, जलवायु न्याय.

यूएन महिला संस्था की वरिष्ठ अधिकारी सेराह हैंड्रिक्स ने कहा कि बदलाव, पूरी तरह से सम्भव है, मगर उसे हासिल करने के लिए राजनैतिक इच्छाशक्ति की ज़रूरत होगी. साथ ही, विश्व भर में, देशों की सरकारों को संकल्प दर्शाना होगा ताकि लैंगिक समानता, महिला अधिकारों और उनके सशक्तिकरण को वास्तविकता में बदला जा सके.


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Amalendu Upadhyaya
वेबसाइट संचालक अमलेन्दु उपाध्याय 30 वर्ष से अधिक अनुभव वाले वरिष्ठ पत्रकार और जाने माने राजनैतिक विश्लेषक हैं। वह पर्यावरण, अंतर्राष्ट्रीय राजनीति, युवा, खेल, कानून, स्वास्थ्य, समसामयिकी, राजनीति इत्यादि पर लिखते रहे हैं।