क्या बच्चों को शारीरिक दंड देने में किसी का फ़ायदा है : WHO ने बता दिया सच

बच्चों पर शारीरिक दंड का असर 👸😒

  • बच्चों को शारीरिक दंड देने पर WHO की नई रिपोर्ट
  • पीढ़ी दर पीढ़ी हिंसा का चक्र
WHO की एक हालिया रिपोर्ट "Corporal punishment of children: the public health impact" कहती है कि बच्चों को शारीरिक दंड देने से किसी का लाभ नहीं है, बल्कि इससे बच्चों के मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य पर गम्भीर असर पड़ता है। पढ़िए संयुक्त राष्ट्र समाचार की यह खबर....
Corporal punishment of children is not beneficial to anyone-WHO
Corporal punishment of children is not beneficial to anyone-WHO


बच्चों को शारीरिक दंड देने में किसी का भी फ़ायदा नहीं, WHO

20 अगस्त 2025 स्वास्थ्य

दुनिया भर में 18 साल से कम उम्र के आधे से ज़्यादा बच्चे, हर साल किसी न किसी रूप में शारीरिक दंड (corporal punishment) का सामना करते हैं, जिससे उनका शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है, अलबत्ता इससे किसी को कोई लाभ नहीं होता.

शारीरिक दंड में अक्सर बच्चों को मारना-पीटना शामिल होता है, लेकिन इसमें ऐसी किसी भी प्रकार की सज़ा शामिल है जो माता-पिता, अभिभावक या शिक्षक, बच्चों को तकलीफ़ पहुँचाने के उद्देश्य से देते हैं.

शारीरिक दंड, घरों से लेकर स्कूलों जैसे सार्वजनिक स्थानों पर भी दिया जाता है.

इस तरह की सज़ा का बच्चों पर व्यापक असर पड़ता है. इससे बच्चों में चिन्ता और अवसाद का ख़तरा बढ़ता है, और उनके बौद्धिक व सामाजिक-भावनात्मक विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है.

किसी को भी फ़ायदा नहीं

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की एक नवीन रिपोर्ट कहती है कि ऐसी सज़ा का कोई लाभ नहीं है बल्कि यह बच्चों के मानसिक और शारीरिक विकास पर गम्भीर असर डालती है.

WHO के स्वास्थ्य निर्धारक विभाग के निदेशक एटियेन क्रूग कहते हैं, “शारीरिक दंड का बच्चों के व्यवहार, विकास या स्वास्थ्य पर कोई सकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता. इसका फ़ायदा न बच्चों को होता है, न अभिभावकों को और न ही समाज को.”

वहीं, 49 निम्न और मध्यम आय वाले देशों में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि जिन बच्चों को शारीरिक दंड दिया जाता है, उनके अपने साथियों की तुलना में विकास की राह पर आगे बढ़ने की सम्भावना 24 प्रतिशत कम होती है.

यह न केवल तुरन्त शारीरिक चोट का कारण बनती है, बल्कि बच्चों में तनाव होर्मोन को भी बढ़ाती है, जिससे मस्तिष्क की संरचना और कार्य प्रभावित हो सकते हैं.

पीढ़ी दर पीढ़ी हिंसा का चक्र

रिपोर्ट बताती है कि ऐसे बच्चे बड़े होकर अपने ही बच्चों को भी मारने-पीटने की प्रवृत्ति अपनाते हैं. यही नहीं, उनके अपराधी और हिंसक व्यवहार अपनाने की सम्भावना भी अधिक होती है.

WHO के अनुसार, “शारीरिक दंड समाज में हिंसा को स्वीकार्य बना देता है और पीढ़ियों तक इस हानिकारक चक्र को जारी रखता है.”

क्षेत्रीय असमानताएँ

रिपोर्ट में क्षेत्रीय अन्तर का भी ज़िक्र किया गया है, मसलन, योरोप और मध्य एशिया में लगभग 41 प्रतिशत बच्चे घरों में शारीरिक दंड के शिकार होते हैं, जबकि मध्य पूर्व और उत्तरी अफ़्रीका में यह आँकड़ा 75 प्रतिशत तक है.

इसके अलावा, स्कूलों में, पश्चिमी प्रशान्त क्षेत्र में केवल 25 फ़ीसदी बच्चे प्रभावित होते हैं, जबकि अफ़्रीका और मध्य अमेरिका में यह संख्या 70 प्रतिशत से अधिक है.

साथ ही, लड़के और लड़कियाँ लगभग बराबर ही शारीरिक दंड झेलते हैं, हालाँकि कारण और तरीक़े अलग हो सकते हैं.

विकलांग बच्चे और ग़रीब या भेदभाव झेलने वाले समुदायों के बच्चे अधिक जोखिम में रहते हैं.

केवल क़ानूना पर्याप्त नहीं

इस समय दुनिया के 67 देशों में, घर और स्कूल दोनों जगह शारीरिक दंड पर पूर्ण प्रतिबन्ध है.

मगर, रिपोर्ट का कहना है कि केवल क़ानून बनाने से बदलाव नहीं होता. इसके लिए ज़रूरी है कि जागरूकता अभियान चलाकर अभिभावकों और समाज को बताया जाए कि यह कितना हानिकारक है, और इसके विकल्प मौजूद हैं.

एटिएन क्रूग ने कहा, “अब समय आ गया है कि इस हानिकारक चलन को पूरी तरह समाप्त किया जाए, ताकि बच्चे घर और स्कूल दोनों जगह स्वस्थ और सुरक्षित वातावरण में विकसित हो सकें.”

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Amalendu Upadhyaya
वेबसाइट संचालक अमलेन्दु उपाध्याय 30 वर्ष से अधिक अनुभव वाले वरिष्ठ पत्रकार और जाने माने राजनैतिक विश्लेषक हैं। वह पर्यावरण, अंतर्राष्ट्रीय राजनीति, युवा, खेल, कानून, स्वास्थ्य, समसामयिकी, राजनीति इत्यादि पर लिखते रहे हैं।