जोहरा सहगल : तीन बार फेल होकर टाली शादी, बनीं हिंदी सिनेमा की सबसे ज़िद्दी और बेमिसाल अदाकारा | death anniversary of zohra sehgal

 

जोहरा सहगल की पुण्यतिथि 10 जुलाई पर विशेष

जोहरा सहगल एक प्रसिद्ध भारतीय अभिनेत्री, नृत्यांगना और रंगमंच कलाकार थीं, जिन्होंने भारतीय सिनेमा और थिएटर में दशकों तक योगदान दिया। जीवन से भरपूर, जोहरा सहगल अपनी हास्यप्रवृत्ति, ऊर्जा और कलात्मकता के लिए जानी जाती हैं। उनका सफर भारतीय सांस्कृतिक इतिहास की एक प्रेरणादायक गाथा है।
Special on the death anniversary of Zohra Sehgal on July 10
Special on the death anniversary of Zohra Sehgal on July 10


नई दिल्ली, 10 जुलाई | रिपोर्ट हस्तक्षेप डेस्क : भारतीय रंगमंच और सिनेमा की दुनिया में एक नाम जो अपने ज़िद्दी स्वभाव, बेबाक सोच और बेमिसाल कला के लिए हमेशा याद रखा जाएगा — वह नाम है जोहरा सहगल। 10 जुलाई जोहरा सहगल की पुण्यतिथि है।

जोहरा सहगल को महज़ एक अभिनेत्री कहना उनके व्यक्तित्व की तौहीन होगी। वे एक विचार थीं — एक विद्रोह, एक निर्भीक नारी। उनके जीवन का एक दिलचस्प किस्सा है जिसे शायद आज की पीढ़ी नहीं जानती — अपनी शादी टालने के लिए उन्होंने जानबूझकर दसवीं की परीक्षा में तीन बार फेल होना चुना। कारण? वह पढ़ाई करना चाहती थीं, जब समाज लड़कियों को सिर्फ ब्याह के लिए देखता था।

पढ़ाई से प्यार और समाज से टकराव करने वाली जोहरा सहगल का असली नाम क्या था?

27 अप्रैल 1912 को उत्तर प्रदेश के रामपुर में एक ज़मींदार मुस्लिम परिवार में जन्मीं साहिबजादी जोहरा मुमताज उल्लाह खान बेगम का बचपन चकराता (उत्तराखंड) में बीता। मां का साया बचपन में ही उठ गया। उस दौर में जब लड़कियों के लिए पढ़ाई एक 'लक्ज़री' मानी जाती थी, जोहरा ने लाहौर के क्वीन मैरी कॉलेज से शिक्षा पाई।

लेकिन असली विद्रोह तब हुआ जब उन्होंने पढ़ाई के लिए अपनी शादी टालने का नायाब तरीका अपनाया — बार-बार दसवीं की परीक्षा में जानबूझकर फेल होना। यह सिर्फ एक परीक्षा नहीं थी, यह उस समाज को ठेंगा दिखाने जैसा था जो लड़कियों को सिर्फ चौका-चूल्हा और परदे में देखना चाहता था।

विदेश में डांस की पढ़ाई, फिर उदय शंकर के साथ नृत्य यात्रा

1930 में जोहरा यूरोप चली गईं। जर्मनी के ड्रेसडेन में 'मेरी विगमैन बैले स्कूल' में उन्होंने तीन साल तक आधुनिक नृत्य की पढ़ाई की। यह उस समय किसी भी भारतीय, खासकर मुस्लिम लड़की के लिए बहुत क्रांतिकारी कदम था।

फिर वे उदय शंकर के साथ जुड़ीं और जापान, मिस्र, यूरोप, अमेरिका जैसे देशों में प्रस्तुति दी। इस दौरान उन्होंने एक युवा वैज्ञानिक, चित्रकार और नर्तक कामेश्वर सहगल से प्रेम किया और धर्म और उम्र दोनों की परवाह किए बिना शादी कर ली। कामेश्वर सहगल उसे आठ बरस छोटे थे।

विभाजन के बाद ज़िंदगी में आया बड़ा मोड़

1947 में देश के विभाजन और लाहौर में दंगों के बाद, जोहरा अपने पति और बेटी के साथ मुंबई आ गईं। यहां से शुरू हुआ उनका सिनेमा और रंगमंच का सफर।

जोहरा सहगल की पहली फिल्म

उनकी पहली फिल्म 'धरती के लाल' (1946) थी और फिर 'नीचा नगर', जो कान फिल्म समारोह में सम्मानित हुई। वे पृथ्वी थिएटर से भी जुड़ीं और बाद में कोरियोग्राफर के रूप में राज कपूर की 'आवारा', गुरुदत्त की 'बाज़ी' जैसी फिल्मों में भी अहम भूमिका निभाई।

सात दशक का फिल्मी सफर, आखिरी पड़ाव 'सांवरिया'

जोहरा सहगल का फिल्मी करियर सात दशकों से अधिक लंबा रहा। 'हम दिल दे चुके सनम', 'वीर-ज़ारा', 'दिल से', 'कभी खुशी कभी ग़म' से लेकर 'सांवरिया' (2007) तक उन्होंने हर दौर को जिया और सिनेमा में अपने अनुभव का रंग भरती रहीं।

जोहरा सहगल को मिले सम्मान और विदाई

जोहरा सहगल को पद्म श्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण जैसे सर्वोच्च नागरिक सम्मान मिले। साथ ही संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार ने उनके रंगमंचीय योगदान को भी मान्यता दी।

10 जुलाई 2014 को नई दिल्ली में उन्होंने 102 साल की उम्र में अंतिम सांस ली। लेकिन वह चलीं नहीं गईं, हमारे बीच एक प्रेरणा की तरह जीवित हैं — वह जो कहती हैं, "ज़िंदगी को हँसते हुए जियो, डर के नहीं।"

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Amalendu Upadhyaya
वेबसाइट संचालक अमलेन्दु उपाध्याय 30 वर्ष से अधिक अनुभव वाले वरिष्ठ पत्रकार और जाने माने राजनैतिक विश्लेषक हैं। वह पर्यावरण, अंतर्राष्ट्रीय राजनीति, युवा, खेल, कानून, स्वास्थ्य, समसामयिकी, राजनीति इत्यादि पर लिखते रहे हैं।