रोज़गार असुरक्षा और संस्थागत अविश्वास पर संयुक्त राष्ट्र की चेतावनी | World Social Report 2025
वैश्विक रोज़गार संकट: पढ़े-लिखे लेकिन बेरोज़गार!
संस्थाओं से क्यों टूट रहा है जनता का भरोसा?
- UN की रिपोर्ट: आर्थिक अस्थिरता से चरमराई वैश्विक सुरक्षा
- अनौपचारिक काम और डिजिटल बदलाव की दोधारी तलवार
- सामाजिक जुड़ाव में गिरावट और युवाओं का बढ़ता मोहभंग
- समाधान क्या है? निडर नीतियाँ और सामूहिक प्रयास
- दोहा सम्मेलन 2025: सामाजिक परिवर्तन के लिए वैश्विक पहल
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World Social Report 2025 |
गहराती रोज़गार अनिश्चितता, संस्थाओं में दरकता भरोसा, यूएन की चेतावनी
24 अप्रैल 2025 आर्थिक विकासदुनिया भर में लोग बेहतर शिक्षित हैं, पहले की तुलना में लम्बा जीवन गुज़ार रहे हैं और डिजिटल माध्यमों के ज़रिये एक दूसरे से जुड़े भी हैं, मगर भविष्य के प्रति उनका आत्मविश्वास कमज़ोर होता जा रहा है. संयुक्त राष्ट्र की एक नई रिपोर्ट में आगाह किया गया है कि आर्थिक अस्थिरता, हिंसक टकराव और जलवायु व्यवधानों की वजह से वैश्विक सुरक्षा दरक रही है और अरबों लोग रोज़गार ख़त्म होने की आशंका या कामकाज न मिल पाने के संघर्ष के बीच जीवन गुज़ार रहे हैं.
संयुक्त राष्ट्र ने गुरूवार को ‘विश्व सामाजिक रिपोर्ट 2025’ प्रकाशित की है, जिसके अनुसार हाल के दशकों में दर्ज की गई प्रगति के बावजूद, बहुत से लोगों का मानना है कि आज जीवन, 50 वर्ष की तुलना में ख़राब हुआ है.
जीवन संतुष्टि के विषय पर सर्वेक्षण में हिस्सा लेने वाले 60 प्रतिशत लोगों ने बताया कि वे फ़िलहाल संघर्ष कर रहे हैं, जबकि 12 प्रतिशत ने पीड़ा में होने की बात कही है.
अध्ययन के अनुसार, आर्थिक अस्थिरता केवल दुनिया के निर्धनतम देशों तक ही सीमित नहीं है. उच्च-आय वाले देशों में भी रोज़गार के प्रति अनिश्चितता गहरा रही है. साथ ही, अस्थाई तौर पर आंशिक समय के लिए कामकाज (जैसे दिन में कुछ घंटे के लिए टैक्सी चलाना) से आय कमाने और डिजिटल बदलाव के कारण यह रुझान नज़र आ रहा है.
इन रोज़गारों से दैनिक जीवन में लचीलापन आया है, मगर इसकी क़ीमत अधिकारों व सुरक्षा से चुकानी पड़ी है. श्रम बाज़ार में कर्मचारी अब केवल सेवा प्रदान करने वाले कामगारों में बदलते जा रहे हैं.
अनौपचारिक रोज़गार में चिन्ताजनक उछाल दर्ज किए जाने से ये असुरक्षाएँ बढ़ी हैं. अनेक निम्न- और मध्य-आय वाले देशों में, बिना सुरक्षा कवच के रोज़गार आम बात है, जिसमें कर्मचारियों को कम वेतन, अस्थिरता और कोई लाभ न मिल पाने का ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ता है.
जो कामगार किसी तरह से औपचारिक रोजग़ार क्षेत्र में प्रवेश करते हैं, उन पर भी अनौपचारिक सैक्टर में धकेल दिए जाने को जोखिम है, विशेष रूप से मन्दी के दौरान.
2.8 अरब लोग, प्रति दिन 6.85 डॉलर की रक़म पर गुज़ारा कर रहे हैं, जोकि अत्यधिक निर्धनता की सीमा है. रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि किसी भी प्रकार का कोई संकट लोगों को चरम ग़रीबी में धकेल सकता है, और अक्सर निर्धनता के गर्त से बाहर निकलना अल्पकालिक होता है.
जलवायु परिवर्तन की चुनौती बढ़ने और हिंसक टकराव की वजह हालात जटिल हो रहे हैं, स्थानीय अर्थव्यवस्थाएँ कमज़ोर हो रही हैं, विषमताएँ गहरा रही हैं, विशेष रूप से विकासशील जगत में.
ध्वस्त हो रहा है भरोसा
बढ़ते वित्तीय दबाव और घटती स्थिरता की वजह से, आम नागरिकों का संस्थाओं और एक दूसरे में भरोसा टूट रहा है. युवा आबादी में विशेष रूप से यह रुझान नज़र आया है.
दुनिया की क़रीब 57 प्रतिशत आबादी ने अपनी सरकार में कम भरोसा होने की बात कही है. 21वीं सदी में जन्मी आबादी में भरोसे का स्तर और भी कम है, जिससे राजनैतिक अस्थिरता व नागरिक समाज के अलग-थलग होने के प्रति चिन्ता बढ़ी है.
आम लोगों का एक दूसरे में भरोसा भी कम हो रहा है. सर्वेक्षण में हिस्सा लेने वाले 30 प्रतिशत से भी कम लोगों का मानना है कि अन्य अधिकाँश लोगों पर विश्वास किया जा सकता है. सामाजिक जुड़ाव कमज़ोर हो रहा है और सामूहिक कार्रवाई के लिए प्रयास जटिल साबित हो रहे हैं.
डिजिटल टैक्नॉलॉजी के ज़रिये भ्रामक सूचनाएँ व जानबूझकर ग़लत जानकारी फैलाए जाने की वजह से दरारें बढ़ी हैं और आपसी विश्वास कमज़ोर हुआ है.
निडर नीतियों का समय
अध्ययन में सचेत किया गया है कि इन चिन्ताजनक रुझानों को पलटने के लिए, ऐसी साहसिक नीतियों को अपनाए जाने की ज़रूरत है, जोकि समता, आर्थिक सुरक्षा व एकजुटता पर आधारित हों.
देशों की सरकारों से आग्रह किया गया है कि शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, आवास व्यवस्था और सामाजिक संरक्षा योजनाओं के ज़रिये आम नागरिकों में निवेश किए जाने की आवश्यकता है, जोकि सहनसक्षमता और समावेशी प्रगति को मज़बूती देने के लिए ज़रूरी हैं.
इसके समानान्तर, समावेशी व जवाबदेह संस्थाओं के ज़रिये भरोसा बहाल किया जाना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि सत्ता व सम्पदा समाज में चंद हाथों में ही केन्द्रित न हों.
सामूहिक समाधान
इस वर्ष नवम्बर महीने में, क़तर की राजधानी दोहा में ‘सामाजिक विकास पर दूसरी विश्व बैठक’ का आयोजन होगा, जिसका उद्देश्य दुनिया में रुपान्तरकारी बदलावों को आगे बढ़ाना है.
यूएन के शीर्षतम अधिकारी एंतोनियो गुटेरेश ने इस रिपोर्ट की प्रस्तावना में एकता व निर्णायक कार्रवाई पर ज़ोर दिया है.
“हम जिन वैश्विक चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, वे सामूहिक समाधानों की मांग करते हैं.”
“पहले की तुलना में कहीं बड़े स्तर पर, हमें एक साथ आने और एक ऐसी दुनिया का निर्माण करने के अपने संकल्प को मज़बूती देनी होगी, जोकि अधिक न्यायसंगत, सुरक्षित, सहनसक्षम और हर एक व हम में हर किसी के लिए एकजुट हो.”
🌐 Global progress must mean progress for everyone.
— UN DESA DISD (@UNDESASocial) April 24, 2025
🆕 #WorldSocialReport 2025 calls for inclusive policies to break the vicious cycle of insecurity, inequality & mistrust.
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