आदिवासी अधिकारों पर संकट: न्याय, गरिमा और भागीदारी की चुनौती | United Nations Permanent Forum on Indigenous Issues

आदिवासी समुदाय: प्रकृति के रक्षक, फिर भी उपेक्षित

  • ‘न्याय व गरिमा’ पर गहरा प्रहार – गुटेरेस का बयान
  • निर्णय प्रक्रिया में आदिवासी भागीदारी की कमी
  • आदिवासी महिलाओं के लिए दोहरी चुनौती
  • क्या है आदिवासी मुद्दों पर संयुक्त राष्ट्र का स्थायी फोरम?
  • 2025 सत्र की थीम और आयोजन की जानकारी
UN फोरम 2025 में आदिवासी अधिकारों पर गंभीर चिंता, गुटेरेस बोले- "गरिमा व न्याय पर हमला", निर्णयों में भागीदारी और संरक्षण की मांग उठी। पढ़िए संयुक्त राष्ट्र समाचार की यह खबर...
United Nations Permanent Forum on Indigenous Issues
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आदिवासी जन के समक्ष मौजूद चुनौतियाँ, उनके लिए 'न्याय व गरिमा पर प्रहार'

21 अप्रैल 2025 मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र के शीर्षतम अधिकारी ने ध्यान दिलाया है कि जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण व जैवविविधता हानि के विरुद्ध लड़ाई और सतत जीवनशैली अपनाने के प्रयासों में आदिवासी समुदायों से बहुत कुछ सीखा जा सकता है. मगर, इसके बावजूद उन्हें गहरी चुनौतियों से जूझना पड़ रहा है और निर्णय निर्धारण प्रक्रियाओं में उनकी भागेदारी नहीं है.

सोमवार को न्यूयॉर्क में 'आदिवासी मुद्दों पर यूएन के स्थाई फ़ोरम' का 24वाँ सत्र आरम्भ हुआ है. इस वर्ष की थीम में आदिवासी व्यक्तियों के अधिकारों पर यूएन घोषणापत्र को लागू करने पर ध्यान केन्द्रित किया गया है.

यह स्थाई फ़ोरम एक अवसर है जिसमें देशों की सरकारों द्वारा उठाए जाने वाले क़दमों से आदिवासी समुदायों की भूमि व क्षेत्रों पर होने वाले असर, उनकी जीवनशैली व खाद्य सुरक्षा से जुड़े निर्णयों में उनकी भागेदारी समेत अन्य अहम मुद्दों पर चर्चा की जाती है.

अगले दो सप्ताह तक, आदिवासी नेता, सदस्य देश, यूएन अधिकारी गण व नागरिक समाज के प्रतिनिधि इस घोषणापत्र को वास्तविकता में तब्दील करने का प्रयास करेंगे.

यूएन प्रमुख एंटोनियो गुटेरेस ने उद्घाटन सत्र के लिए अपने सम्बोधन में कहा कि आदिवासी जन, संस्कृति, भाषा, इतिहास व परम्पराओं में बेहद समृद्ध हैं और वैश्विक जैवविविधता व पर्यावरण के अहम रक्षक भी हैं.

अधिकारों पर प्रहार

महासचिव गुटेरेस ने ध्यान दिलाया कि आदिवासी लोग हर स्थान पर, जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण व जैवविविधता हानि के विरुद्ध लड़ाई में अग्रिम मोर्चे पर हैं, जबकि इन संकटों के लिए वे बिलकुल भी ज़िम्मेदार नहीं हैं.

यूएन प्रमुख ने बताया कि टिकाऊ खाद्य प्रणालियों को आकार देने, सतत जीवनशैली की ओर क़दम बढ़ाने में आदिवासी समुदायों से बहुत कुछ सीखा जा सकता है, मगर उनके ज्ञान व पारम्परिक तौर-तरीक़ों के मूल्य को नहीं समझा जा रहा है.

“दुनिया भर में आदिवासी व्यक्तियों के समक्ष मौजूद मुश्किलें, गरिमा व न्याय पर एक प्रहार हैं. और स्वयं मेरे लिए गहरे दुख का स्रोत भी हैं.”

महासचिव ने कहा कि आदिवासी लोगों को जबरन बेदख़ल और उनका अवैध ढंग से शोषण किया जाता है, जिससे मानवाधिकारों का हनन होता है.

“आपको हाशिएकरण, भेदभाव, बेरोज़गारी, आर्थिक हानि व भयावह हिंसा का सामना करना पड़ता है, विशेष रूप से तब जब आप अपने साझा घर की रक्षा करना चाहते हैं.”

निर्णयों में भागेदारी ज़रूरी

“और अक्सर आपको उन निर्णयों से भी दूर रखा जाता है, जिनका सीधा असर आपकी भूमि व क्षेत्रों पर पड़ता है. इससे आपकी जीवन पद्धति व खाद्य सुरक्षा के लिए ख़तरा उपजता है.”

महासचिव ने ज़ोर देकर कहा कि आदिवासी महिलाओं को राजनैतिक भागेदारी, आर्थिक अवसरों व अति-आवश्यक सेवाओं को हासिल करने में अवरोधों का सामना करना पड़ता है.

आदिवासी मुद्दों पर यूएन की 24वीं स्थाई फ़ोरम की प्रमुख अलुकी कोटिएर्क ने कहा कि आदिवासी लोगों को उनकी पहचान, अस्तित्व व स्व-निर्धारण से जुड़े मुद्दों पर निर्णयों से बाहर रखा जाता है.

उन्होंने सदस्य देशों से अपील की है कि निर्णय-निर्धारण प्रक्रिया में आदिवासी लोगों का पूर्ण रूप से सम्मान किया जाना होगा और नीति व सरकार के हर पहलू में उनके अधिकारों की रक्षा की जानी होगी.

आदिवासी मुद्दों पर यूएन की स्थाई फ़ोरम

यह फ़ोरम, आदिवासी मुद्दों पर आर्थिक एवं सामाजिक परिषद का एक उच्चस्तरीय परामर्शदाता निकाय है. इस मंच को आदिवासी लोगों के आर्थिक व सामाजिक विकास, संस्कृति, पर्यावरण, शिक्षा, स्वास्थ्य और मानवाधिकारों से सम्बन्धित मुद्दों के लिए गठित किया गया था.

फ़ोरम के शासनादेश (mandate) में छह क्षेत्र आते हैं, जिनमें आर्थिक एवं सामाजिक विकास, संस्कृति, पर्यावरण, शिक्षा, स्वास्थ्य और मानवाधिकार हैं.

हर सत्र में एक ख़ास विषय पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है. यह स्थाई फ़ोरम, यूएन के उन तीन निकायों में है, जिनका दायित्व विशिष्ट रूप से आदिवासी लोगों के अधिकार सम्बन्धी विषयों को देखना है.

फ़ोरम का 2025 सत्र, न्यूयॉर्क स्थित यूएन मुख्यालय में 21 अप्रैल से 2 मई तक आयोजित होगा.

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Amalendu Upadhyaya
वेबसाइट संचालक अमलेन्दु उपाध्याय 30 वर्ष से अधिक अनुभव वाले वरिष्ठ पत्रकार और जाने माने राजनैतिक विश्लेषक हैं। वह पर्यावरण, अंतर्राष्ट्रीय राजनीति, युवा, खेल, कानून, स्वास्थ्य, समसामयिकी, राजनीति इत्यादि पर लिखते रहे हैं।