मंदी की ओर वैश्विक अर्थव्यवस्था : व्यापार तनावों और अनिश्चितता ने धीमी की विकास दर | UNCTAD Report 2025
वैश्विक विकास दर में गिरावट: 2025 में केवल 2.3% की संभावित वृद्धि
- व्यापार तनाव और नीतिगत अनिश्चितता के कारण बढ़ा मंदी का ख़तरा
- हर देश पर असर, विकासशील देशों के लिए चुनौती बढ़ी
- अमेरिका और कनाडा समेत विकसित देशों की अर्थव्यवस्था में गिरावट के संकेत
- दक्षिण एशिया में मिश्रित रुझान, भारत की स्थिति फिर भी बेहतर
- अफ्रीका की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में अस्थिरता
दक्षिण-दक्षिण व्यापार में अवसर, सहयोग पर UNCTAD का ज़ोर
UNCTAD की 2025 रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक अर्थव्यवस्था मंदी की ओर बढ़ रही है। व्यापार तनाव, नीतिगत अनिश्चितता और कमजोर निवेश गतिविधियों ने विकास दर को 2.3% तक सीमित कर दिया है। संयुक्त राष्ट्र समाचार की इस खबर से जानिए एशिया, अमेरिका और अफ्रीका की आर्थिक स्थिति।
व्यापार तनावों व अनिश्चितताओं के बीच, वैश्विक अर्थव्यवस्था मन्दी के मार्ग पर
16 अप्रैल 2025 आर्थिक विकास
विश्व अर्थव्यवस्था मन्दी के रास्ते पर आगे बढ़ती नज़र आ रही है और इस वर्ष वैश्विक प्रगति की रफ़्तार 2.3 प्रतिशत तक ही सीमित रह जाने का अनुमान है. संयुक्त राष्ट्र व्यापार एवं विकास एजेंसी (UNCTAD) ने बुधवार को प्रकाशित एक नई रिपोर्ट में आगाह किया है कि व्यापार जगत में बढ़ता तनाव और व्याप्त अनिश्चितता इसकी एक बड़ी वजह हैं.
यूएन एजेंसी द्वारा व्यक्त किया गया यह अनुमान 2.5 प्रतिशत की उस सीमा से भी कम है, जिसे आमतौर पर वैश्विक मन्दी का संकेत माना जाता है.
इस विश्लेषण में व्यापार सम्बन्धी नीतियों में चौंकाने वाली नीतियों, वित्तीय उतार-चढ़ाव और बढ़ती अनिश्चितताओं को अर्थव्यवस्था के लिए बड़े जोखिम माना गया है.
व्यापार तनावों के उभरने का असर वैश्विक व्यापार पर भी हुआ है और हाल ही में थोपे गए आयात शुल्कों (टैरिफ़) से सप्लाई चेन में व्यवधान आया है और व्यापारिक रुझान का अन्दाज़ा लगा पाना मुश्किल साबित हो रहा है.
रिपोर्ट के अनुसार, “व्यापार नीति अनिश्चितताएँ अपने ऐतिहासिक चरम पर है, और इसकी वजह से पहले से ही ये निवेश निर्णयों में देरी और कम भर्तियों की वजह बन रही है.”
हर देश प्रभावित
अर्थव्यवस्था की सुस्त रफ़्तार से हर देश प्रभावित होगा, हालांकि यूएन एजेंसी ने विकासशील देशों, विशेष रूप से सम्वेदनशील आर्थिक हालात से गुज़र रहे देशों के लिए चिन्ता जताई है.
निम्न-आय वाले अनेक देशों को ख़स्ताहाल वित्तीय परिस्थितियों, कर्ज़ के बढ़ते बोझ और कमज़ोर घरेलू प्रगति का सामना करना पड़ रहा है.
UNCTAD का मानना है कि संयुक्त राज्य अमेरिका में आर्थिक प्रगति में तेज़ गिरावट आने की आशंका है और यह घटकर केवल एक फ़ीसदी तक सिमट सकती है.
इसकी मुख्य वजह नीतिगत अनिश्चितता है, जोकि हाल के दिनों में व्यापार व आयात शुल्क घोषणाओं से और अधिक ख़राब हुई है.
कैनेडा में आर्थिक वृद्धि में ढलान की आशंका है, जहाँ केवल 0.7 प्रतिशत बढ़ोत्तरी की सम्भावना जताई गई है. रिपोर्ट के अनुसार, इस वर्ष के उत्तरार्ध में उत्तरी अमेरिका के मन्दी की चपेट में आने का जोखिम काफ़ी हद तक बढ़ गया है.
एशिया, अफ़्रीका के लिए मिश्रित तस्वीर
UNCTAD का अनुमान है कि दक्षिण एशिया क्षेत्र में आर्थिक प्रगति की दर, वर्ष 2025 में 5.6 प्रतिशत रहने का अनुमान है. मुद्रास्फीति में कमी आने से मौद्रिक नीति को कुछ राहत मिलने की सम्भावना है.
हालांकि खाद्य वस्तुओं की क़ीमतों में उतार-चढ़ाव बने रहने की आशंका है. वहीं कर्ज़ के इर्दगिर्द पसरी जटिलताओं से बांग्लादेश, पाकिस्तान, और श्रीलंका की अर्थव्यवस्थाएँ प्रभावित रहेंगी.
भारत में आर्थिक प्रगति की दर इस साल 6.5 प्रतिशत रहने का अनुमान व्यक्त किया गया है, जिसकी एक बड़ी वजह सार्वजनिक व्यय में मज़बूती और मौद्रिक नीति में राहत का जारी रहना है.
पिछले पाँच वर्ष में पहली बार, भारत के केन्द्रीय बैंक ने फ़रवरी में ब्याज़ दरों में 25 बेसिस प्वाइंट की कटौती की, जिससे घर-परिवार में खपत को समर्थन मिलेगा और निजी निवेश योजनाओं को प्रोत्साहन भी.
उधर, अफ़्रीका में आर्थिक प्रगति इस वर्ष 3.6 प्रतिशत तक रह सकती है. हालांकि यहाँ की तीन बड़ी अर्थव्यवस्थाओं, दक्षिण अफ़्रीका, नाइजीरिया व मिस्र में हालात में बेहतरी व मौजूदा चुनौतियों की मिलीजुली तस्वीर ही दिखाई दे रही है. ये तीनों अर्थव्यवस्थाएँ, अफ़्रीकी क्षेत्र में कुल आर्थिक उत्पादन का क़रीब 50 फ़ीसदी हैं.
दक्षिण-दक्षिण व्यापार
UNCTAD के विश्लेषण के अनुसार, विकासशील देशों के बीच होने वाले व्यापार – दक्षिण-दक्षिण व्यापार -- की प्रगति के मामले में हालात इतने ख़राब नहीं हैं.
इन देशों के बीच होने वाला व्यापार, कुल वैश्विक व्यापार का क़रीब एक-तिहाई है, और इससे अनेक विकासशील देशों के लिए नए अवसर पैदा होते हैं.
यूएन एजेंसी ने व्यापार जगत में बढ़ते तनावों और आर्थिक प्रगति में आई सुस्ती के मद्देनज़र, सम्वाद व वार्ता पर बल दिया है. साथ ही, क्षेत्रीय व वैश्विक स्तर पर नीतिगत समन्वय पर ध्यान दिया जाना होगा.
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