म्याँमार भूकम्प: महिलाओं और लड़कियों की पीड़ा पर UN अधिकारी का भावुक बयान | Myanmar earthquake: The suffering of women and girls

म्याँमार में 7.7 तीव्रता का भूकम्प — भारी तबाही और राहत की ज़रूरत

  • UNFPA की त्वरित राहत कार्रवाई और जीवनरक्षक सेवाएँ
  • महिलाओं और लड़कियों की विशेष ज़रूरतें और गरिमा किट की आपूर्ति
  • मैंडाले में ज़मीनी हालात — तबाही, डर और उम्मीद
  • सहायता पहुंचाने में चुनौतियाँ और सुरक्षा जोखिम

मानवीय संगठनों की सीमित क्षमता और वैश्विक समर्थन की अपील

म्याँमार भूकम्प में महिलाओं और लड़कियों की हालत दिल दहला देने वाली है, UN अधिकारी ने ज़मीनी हालात और राहत कार्यों को लेकर साझा की आपबीती। पढ़िए संयुक्त राष्ट्र समाचार की खबर...
Myanmar earthquake: UN official's emotional statement on the suffering of women and girls
Myanmar earthquake: UN official's emotional statement on the suffering of women and girls


म्याँमार: 'भूकम्प-प्रभावित महिलाओं व लड़कियों की पीड़ा ने मुझे झकझोर दिया है'

17 अप्रैल 2025 मानवीय सहायता

म्याँमार में 28 मार्च को 7.7 की तीव्रता वाला भूकम्प, अपने साथ भीषण तबाही लेकर आया. मैंडाले, सगाइंग, मैगवे, बागो समेत देश के अनेक प्रदेश व क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर जान-माल की हानि हुई है, और विशाल मानवीय आवश्यकताएँ उपजी हैं. यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य के लिए संयुक्त राष्ट्र एजेंसी (UNFPA), इस​ कठिन घड़ी में अपने साझीदार संगठनों के साथ मिलकर ज़रूरतमन्द आबादी, विशेष रूप से महिलाओं व लड़कियों तक जीवनरक्षक सहायता पहुँचाने में जुटी है.

UNFPA के यंगून कार्यालय में संचार व पैरोकार मामलों के लिए अधिकारी थेइन ज़ॉ विन ने इस आपदा में सबसे अधिक प्रभावित मैंडाले में क़रीब एक सप्ताह बिताया और सहायता अभियान को नज़दीक से देखा. उन्होंने वहाँ से लौटने के बाद अपना अनुभव यूएन न्यूज़ के साथ साझा किया है.

“मैं भूकम्प के समय यंगून में मौजूद था. यहाँ उसकी तीव्रता अपेक्षाकृत कम महसूस हुई, लेकिन सगाइंग और मैंडाले में इसके झटके शक्तिशाली थे.

हमें इन झटकों के कुछ ही देर बाद ख़बरें मिलीं कि अनेक शहरों में बड़ी संख्या में लोग हताहत हो गए थे. इमारतें, सड़कें, घर, स्कूल, अस्पताल मलबे में तब्दील हो गए थे और उनके नीचे लोग फँसे हुए थे. संचार व्यवस्था दरक गई थी.

मैंने उसी समय भूकम्प-प्रभावित इलाक़ों में राहत अभियान में जुटी अपनी टीम के लिए संचार से जुड़े कार्यों में अपना योगदान देने का मन बना लिया था. कुछ ही घंटों के भीतर UNFPA की हमारी टीम सहायता प्रदान करने के लिए तैयार थी.

महिलाओं व लड़कियों को जीवनरक्षक यौन व प्रजनन स्वास्थ्य, मातृत्व देखभाल से जुड़ी ज़रूरतें थी. उनके लिए गरिमा किट (स्वच्छता बरतने के लिए सामान) समेत अन्य सामग्री की जल्द से जल्द आपूर्ति बहुत ज़रूरी थी.

72 घंटों के भीतर, UNFPA के देशीय कार्यालय ने अपने साझीदार संगठनों के साथ सचल स्वास्थ्य और त्वरित प्रतिक्रिया टीमें तैनात कर दी थीं, ताकि प्रभावित आबादी के लिए ज़रूरी मदद मुहैया कराई जा सके.

मुश्किलों भरा सफ़र

यंगून से मैंडाले तक की यात्रा क़रीब आठ घंटे की है, मगर सड़कें व पुल क्षतिग्रस्त होने की वजह से हमें यह दूरी तय करने में बहुत परेशानी हुई. हमें नए रास्तों की तलाश करनी पड़ी, और कईं बार तो सड़कों के बजाय ऊबड़-खाबड़ मैदानों से होकर गुज़रना पड़ा.

हमें मैंडाले तक पहुँचने में 10 से भी अधिक घंटे का समय लग गया. अब वहाँ बारिश शुरू होने की वजह से सड़कें और भी ख़स्ता हालत में हैं और सड़कों पर आवाजाही चुनौतीपूर्ण है.

मैंने मैंडाले में एक सप्ताह बिताया. वहाँ भूकम्प से हुई बर्बादी को देखना हृदयविदारक था.

मैंडाले में अनेक ऊँची इमारते हैं, मगर 7.7 की तीव्रता वाले भूकम्प के झटकों की वजह वे ध्वस्त हो गईं. कई इलाक़े पूरी तरह से मलबे के ढेर बन गए हैं.

अनेक परिवारों ने अस्थाई आश्रय स्थलों, सड़कों पर, अपने क्षतिग्रस्त घरों के सामने शरण ली हुई है. वे बुरी तरह हताश हो चुके हैं. सर्वाधिक प्रभावित इलाक़ों में स्वास्थ्य देखभाल व्यवस्था पर भारी दबाव है.

फिर भूकम्प आने का डर

भूकम्प के झटके कई दिन बाद तक महसूस किए जाते रहे, और लोग अब भी अपने घरों के भीतर जाने से डर रहे हैं, वे अपने घरों के सामने फ़ुटपाथ पर मच्छरदानी लगाकर खुले में ही रात बिता रहे हैं.

रात में बिजली आपूर्ति अक्सर ठप हो जाने की वजह से कई इलाक़े अन्धकार में डूब जाते हैं. इस वजह से रात में कहीं पर भी जाना आसान नहीं है.

मैंडाले के कुछ इलाक़ों में सड़कों पर मलबा फैला हुआ है. ऐसे में आपको किसी दूसरे छोटे रास्ते का पता होना ज़रूरी है नहीं तो फिर आप फँस जाने का जोखिम है. इन परिस्थितियों में भूकम्प से प्रभावित लोगों तक पहुँचना, उन्हें मदद प्रदान करना बेहद चुनौतीपूर्ण है.

एक संचार अधिकारी के तौर पर मेरा दायित्व, अपनी मोबाइल टीम को संचार सम्बन्धी सहायता प्रदान करना, आपदा से प्रभावित हुए लोगों से मिलना, उनसे हुई बातचीत और तस्वीरों के आधार पर उनकी व्यथा को दुनिया के सामने बयान करना है.

ज़मीनी स्तर की वास्तविकताओं और आवश्यकताओं की जानकारी सामने लाना भी ज़रूरी है ताकि आपात सहायता के लिए समर्थन हासिल किया जा सके. यही मेरा मिशन है.

स्वास्थ्य सेवाओं की चिन्ता

मैं मैंडाले में एक महिला से मिला जो हमारे मोबाइल क्लीनिक में आईं थी. उनका पूरा जीवन इसी शहर में गुज़रा, लेकिन उन्होंने ऐसी बर्बादी पहले कभी नहीं देखी. कुछ ही सेकेंड में सब कुछ भरभरा कर गिर गया था.

उन्हें स्वास्थ्य केन्द्रों व अस्पतालों को क्षति पहुँचने से बहुत चिन्ता है कि अब देखभाल कैसे होगी. यदि अस्पतालों को मदद की ज़रूरत हो, मगर कोई सुविधा ही उपलब्ध नहीं हो तो यह उनके लिए भयावह स्थिति होगी.

मुझे संकट के इस समय में मानवीय सहायताकर्मियों में दृढ़ता नज़र आई. संयुक्त राष्ट्र की विभिन्न एजेंसियाँ, नागरिक समाज व ग़ैर-सरकारी संगठन एक साथ मिलकर राहत प्रयासों में जुटे हैं.

UNFPA की टीम ने महिलाओं व लड़कियों के लिए प्रजनन स्वास्थ्य सेवाएँ, गरिमा किट (स्वच्छता व सैनिट्री सामग्री) लिंग-आधारित हिंसा से बचाव, मानसिक स्वास्थ्य समर्थन की व्यवस्था की है. मातृत्व व नवजात शिशुओं के लिए देखभाल सेवा को भी समर्थन दिया जाएगा.

ज़मीनी स्तर पर यह आपसी सहयोग प्रेरणादायक है. इससे ज़रूरतमन्द आबादी में सामुदायिक भावना व आशा की किरण जगाई जा रही है. ये इसलिए भी ज़रूरी है चूँकि आम लोग बुरी तरह से हताश हो चुके हैं.

सहायता समर्थन में कटौती का असर

सगाइंग और मैंडाले में हिंसक टकराव से प्रभावित कुछ इलाक़ों में ज़रूरतमन्दों तक सहायता पहुँचाना एक बड़ी चुनौती है. हम वहाँ प्रवेश नहीं कर सकते हैं और यह एक चिन्ता का विषय है.

दुनिया भर में सहायता धनराशि की कटौती के बीच, म्याँमार में भी उसका असर महसूस किया जा रहा है. देश पहले से ही हिंसक टकराव से ग्रस्त है और अब यहाँ भूकम्प से तबाही हुई है.

मॉनसून का मौसम नज़दीक है. बरसात, तूफ़ान, बाढ़ के मौसम में अक्सर हमें प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ता है. मौजूदा हालात में लोग इस मौसम से लोग डरे हुए हैं.

UNFPA समेत संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों और अन्य मानवतावादी संगठनों के पास ज़रूरतमन्दों की मदद के लिए सीमित संसाधन ही उपलब्ध हैं. और इसलिए हम आपात सहायता की अपील कर रहे हैं.

अधिकाँश महिलाएँ व लड़कियाँ अस्थाई शिविरों में रह रही हैं जबकि अन्य सड़कों पर हैं. उनकी व्यथा मुझे भीतर तक बेधती है.

कई बार ऐसा लगता है कि ये सब एक बहुत बड़ा बोझ हो, जिसके भार से आपका शरीर दरक रहा हो. मगर, हमें भूकम्प से प्रभावित महिलाओं व लड़कियों तक मदद पहुँचाने के लिए शक्ति, सहनसक्षमता चाहिए.

लोगों की आँखों में हताशा को देखना, उनकी व्यथा को सुनना बहुत दुखदाई अनुभव है. हम बस उन्हें इन कठिन हालात में उम्मीद देने की कोशिश कर रहे हैं."


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Amalendu Upadhyaya
वेबसाइट संचालक अमलेन्दु उपाध्याय 30 वर्ष से अधिक अनुभव वाले वरिष्ठ पत्रकार और जाने माने राजनैतिक विश्लेषक हैं। वह पर्यावरण, अंतर्राष्ट्रीय राजनीति, युवा, खेल, कानून, स्वास्थ्य, समसामयिकी, राजनीति इत्यादि पर लिखते रहे हैं।