सूडान का गृहयुद्ध: कैसे पड़ोसी देशों को खतरनाक संकट की ओर धकेल रहा है? | मानवता पर बड़ा खतरा | Sudan's civil war A major threat to humanity

सूडान में जारी भीषण गृहयुद्ध की पृष्ठभूमि

  • RSF और सूडानी सेना के बीच संघर्ष का मानवीय प्रभाव
  • शरणार्थी संकट और सीमावर्ती देशों में उथल-पुथल
  • स्वास्थ्य सेवाओं की तबाही और बीमारियों का फैलाव
  • यौन हिंसा और बच्चों पर खतरनाक असर
  • पड़ोसी देशों में हिंसा और हथियारों का बढ़ता प्रसार
  • आर्थिक अस्थिरता और क्षेत्रीय गरीबी में वृद्धि

क्या है अंतरराष्ट्रीय समुदाय की भूमिका?

सूडान में 2023 से चल रहा गृहयुद्ध अब पड़ोसी देशों को भी अस्थिर कर रहा है। संयुक्त राष्ट्र समाचार की इस खबर से जानें इस संघर्ष के मानवीय, आर्थिक और सुरक्षा से जुड़े गहरे असर।
Sudan's civil war: How is it pushing neighboring countries towards a dangerous crisis? | A major threat to humanity
Sudan's civil war: How is it pushing neighboring countries towards a dangerous crisis? | A major threat to humanity


सूडान में गृहयुद्ध, पड़ोसी देशों को किस तरह से अस्थिर कर रहा है?

14 अप्रैल 2025 शान्ति और सुरक्षा

अफ़्रीकी महाद्वीप का तीसरा सबसे बड़ा देश, सूडान, अप्रैल 2023 से एक भीषण गृहयुद्ध की चपेट में है. परस्पर विरोधी सैन्य बलों, सूडान की सशस्त्र सेना और ताक़तवर अर्द्धसैनिक बल (RSF) के बीच इस टकराव से देश में, पहले से ही व्याप्त राजनैतिक अस्थिरता और आर्थिक संकट ने और भी गहरा रूप धारण कर लिया है.

संयुक्त राष्ट्र की शरणार्थी एजेंसी (UNHCR) के अनुसार, सूडानी सशस्त्र बल और अर्द्धसैनिक गुट, त्वरित समर्थन बल (RSF) के बीच जारी यह युद्ध न सिर्फ सूडान में, बल्कि उसके पड़ोसी देशों में भी एक गम्भीर मानवीय संकट की वजह बन रहा है.

यह स्थिति उन लोगों के लिए और भी ख़तरनाक हो गई है, जो पहले ही अपने घर छोड़कर भागने के लिए मजबूर थे. हर दिन हज़ारों लोग सूडान छोड़कर सुरक्षा की तलाश में अन्य देशों का रुख़ कर रहे हैं.

देश के भीतर बेहद गम्भीर स्थिति है. फ़िलहाल इस युद्ध का मुख्य केन्द्र नॉर्थ दारफ़ूर क्षेत्र बन गया है, जहाँ विस्थापित लोगों के शिविरों पर हुए हमलों में कई नागरिक मारे गए हैं. संयुक्त राष्ट्र ने व्यापक पैमाने पर अकाल को टालने के लिए तुरन्त कार्रवाई की अपील की है.

क़रीब पाँच करोड़ की आबादी वाले सूडान में लगभग 2.5 करोड़ लोग गम्भीर भूखमरी का सामना कर रहे हैं, और यह संख्या और बढ़ने की आशंका है.

यूएन प्रवक्ता स्तेफ़ान दुजैरिक ने चेतावनी दी है कि, "बरसात का मौसम जल्द शुरू होने वाला है और मुख्य मार्गों पर बाढ़ आने से मानवीय राहत पहुँचाने में और भी कठिनाई हो सकती है. समय बीता जा रहा है."

1.30 लाख से अधिक लोगों ने छोड़ा देश


फ़िलहाल, सूडान दुनिया का सबसे बड़ा विस्थापन संकट बन गया है.

संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त फ़िलिपो ग्रैन्डी ने इस वर्ष फ़रवरी में कहा कि, "सूडान की एक-तिहाई आबादी विस्थापित हो चुकी है. इस भयावह और निरर्थक युद्ध के प्रभाव सूडान की सीमाओं से कहीं आगे तक महसूस किए जा रहे हैं."

अब तक करीब 38 लाख लोग सूडान से भागकर पड़ोसी देशों में शरण ले चुके हैं, जिससे एक बड़ा मानवीय संकट पैदा हो गया है. ये शरणार्थी बेहद असुरक्षित हालात में जी रहे हैं, उन्हें भोजन, साफ़ पानी और चिकित्सा सुविधा की कमी का सामना करना पड़ रहा है. संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि साल 2025 तक यह संख्या और 10 लाख तक बढ़ सकती है.

सूडान से सटे देश पहले से ही विस्थापित लोगों की बड़ी संख्या से जूझ रहे थे, और अब अप्रैल 2023 में शुरू हुआ युद्ध हालात को और भी बदतर बना रहा है. वर्ष 2003 के दारफ़ूर संकट तक पीछे जाने वाली अस्थिरता व टकराव की एक और कड़ी में 2023 का युद्ध जुड़ा है.

सूडान के पड़ोसी देश पहले से ही बड़ी संख्या में शरणार्थियों और आन्तरिक रूप से विस्थापित लोगों को शरण दे रहे हैं, लेकिन उनके पास मानवीय सहायता कार्यक्रमों के लिए पर्याप्त धनराशि नहीं है. इसके अलावा, सूडान छोड़ कर जाने वाले लोग अक्सर दूर-दराज़ के इलाक़ों में पहुँच रहे हैं, जिससे राहत एजेंसियों के लिए उन तक मदद पहुँचाना और मुश्किल हो गया है.

सबसे ज़्यादा शरणार्थी चाड और मिस्र पहुँचे हैं. मिस्र में क़रीब छह लाख सूडानी शरणार्थी रह रहे हैं, जबकि चाड में अब तक सात लाख से ज़्यादा लोगों को पंजीकृत किया जा चुका है. चाड सरकार का अनुमान है कि 2025 के अन्त तक यह संख्या लगभग 10 लाख तक पहुँच सकती है.

2. बुनियादी सेवाओं की कमी


स्वास्थ्य सेवाओं, शिक्षा और अन्य बुनियादी सुविधाओं की बढ़ती माँग को पूरा करने में, सूडान के पड़ोसी देश संघर्ष कर रहे हैं.

आपात राहत के लिए संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (OCHA) के अनुसार, सूडान से आए शरणार्थियों की बड़ी संख्या ने चाड, मिस्र, इथियोपिया और दक्षिण सूडान जैसे देशों के अस्पतालों और स्वास्थ्य केन्द्रों को झकझोर दिया है, जहाँ दवाओं, मेडिकल सामान और स्वास्थ्यकर्मियों की पहले से ही भारी कमी है.

इस साल दानदाता देशों से मिलने वाली आर्थिक मदद के बारे में स्पष्टता नहीं है, जिससे चिन्ता और बढ़ गई है. इस वजह से, UNHCR को मिस्र की उत्तरी सीमा से आए सूडानी शरणार्थियों के लिए सभी चिकित्सा उपचार बन्द करने पड़े हैं. अब कैंसर सर्जरी, हृदय का ऑपरेशन और लम्बे समय तक चलने वाली बीमारियों की दवाइयाँ भी नहीं मिल पा रही हैं, जिससे लगभग 20 हज़ार मरीज़ प्रभावित हुए हैं.

3. बीमारियों के फै़लने का ख़तरा


विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने 2024 में सूडान में तेज़ी से बिगड़ती स्थिति के बारे में चेतावनी जारी करते हुए कहा था कि बीमारियों के फै़लने के लिए मौजूदा परिस्थितियाँ आदर्श बनती जा रही है: स्वास्थ्य सेवाएँ लगभग ठप हो चुकी हैं, लाखों लोग भीड़भाड़ वाले शिविरों में रहने को मजबूर हैं, साफ़ पानी और शौचालय की भारी कमी है और लोगों को खाद्य सामग्री व बुनियादी सेवाएँ भी नहीं मिल रही हैं.

आशंका के अनुसार, स्वास्थ्य सेवाओं के ध्वस्त होने से बीमारियाँ फैलने लगी हैं, और ये पड़ोसी देशों में भी पहुँच चुकी हैं, जहाँ बड़ी संख्या में शरणार्थी रह रहे हैं. जिन बीमारियों की रोकथाम की जा सकती है, शरणार्थी आबादी के उनकी चपेट में आने का जोखिम हैं, चूँकि देश में टीकाकरण दरों में गिरावट आई है.

मानवीय सहायता संगठनों ने बीमारियों के बढ़ते मामलों और सम्भावित संकट के बारे में चिन्ता जताई है, विशेष रूप से सीमा क्षेत्रों व आश्रय स्थलों पर.

4. बढ़ती असुरक्षा


इस युद्ध से पहले ही, सूडान के चारों ओर स्थित देश (मिस्र, लीबिया, चाड, दक्षिण सूडान, इथियोपिया, ऐरीट्रिया, और मध्य अफ़्रीकी गणराज्य) पहले ही अपने आन्तरिक संकटों, जैसे हिंसक टकराव, भूख और बीमारियों से जूझ रहे थे.

सूडान में युद्ध भड़कने से सीमा क्षेत्रों में हिंसा व अस्थिरता बढ़ी है, और सीमा पार लड़ाई की खबरें भी हैं.

चाड में, हथियारों की आपूर्ति और सशस्त्र समूहों की उपस्थिति से हिंसा व असुरक्षा बढ़ी है. दक्षिण सूडान में, एक मिलिशिया समूह ने सूडान में सशस्त्र सेना के विरोधी, RSF के साथ गठजोड़ किया है.

5. बढ़ती यौन हिंसा


सूडान युद्ध में यौन हिंसा को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है, जिससे लाखों बच्चों के लिए ख़तरा बढ़ गया है. इस हिंसा की क्रूर सच्चाई, और इसके शिकार होने का डर, महिलाओं व लड़कियों को अपने घरों और परिवारों को छोड़ने केलिए मजबूर कर रहा है.

हालाँकि, जब वे आन्तरिक रूप से विस्थापित होती हैं या सीमा पार करती हैं, तो उन्हें और भी ज्यादा ख़तरों का सामना करना पड़ता है और उन्हें चिकित्सा और मानसिक सहायता की आवश्यकता होती है.

मार्च में, यूनीसेफ़ के मुताबिक़, लड़कियाँ अक्सर अनौपचारिक विस्थापन स्थल पर पहुँचती हैं, जहाँ संसाधन बहुत कम होते हैं और यौन हिंसा का ख़तरा ज़्यादा होता है. मौजूदा आँकड़ों के अनुसार, बलात्कार का शिकार हुए कुल बच्चों में से क़रीब 66 फ़ीसदी लड़कियाँ हैं.

लड़कों को भी कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं. वे कथित कलंक (Stigma) की वजह से, यौन उत्पीड़न के बारे में जानकारी अक्सर साझा नहीं करते हैं, जिससे उनके लिए मदद प्राप्त करना और सेवाओं तक पहुँचना और भी मुश्किल हो जाता है.

हैरान करने वाली बात यह है कि यौन हिंसा का शिकार, 16 बच्चों की आयु पाँच साल से भी कम थी. इनमें से चार की उम्र एक साल थी.

6. आर्थिक व्यवधान, क्षेत्रीय निर्धनता में वृद्धि

युद्ध की वजह से व्यापार मार्गों और आर्थिक गतिविधियों में बाधा उत्पन्न हुई है, जिससे पड़ोसी देशों में लोगों की आजीविका प्रभावित हुई है. इससे निर्धनता तथा आर्थिक कठिनाइयाँ बढ़ गई हैं.

इथियोपिया और मिस्र में, सीमा प्रतिबन्ध और व्यापार मार्गों पर असुरक्षा के कारण परिवहन लागत में वृद्धि हुई है और सीमा पार आर्थिक गतिविधियाँ कम हो गई हैं. जबकि चाड और दक्षिण सूडान में, शरणार्थियों की भारी भीड़ से अन्य महत्वपूर्ण आर्थिक क्षेत्रों से संसाधन बँट गए हैं.

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Amalendu Upadhyaya
वेबसाइट संचालक अमलेन्दु उपाध्याय 30 वर्ष से अधिक अनुभव वाले वरिष्ठ पत्रकार और जाने माने राजनैतिक विश्लेषक हैं। वह पर्यावरण, अंतर्राष्ट्रीय राजनीति, युवा, खेल, कानून, स्वास्थ्य, समसामयिकी, राजनीति इत्यादि पर लिखते रहे हैं।