किराए पर मकान लेने से पहले इन 5 बातों का रखें ध्यान: जानिए क्यों होते हैं 11 महीने के रेंट एग्रीमेंट
किराए पर घर लेने जा रहे हैं तो इन बातों को भी समझ लें
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If you are going to rent a house then understand these things too |
आजकल शहरों में किराए पर रहने का चलन आम हो गया है, लेकिन क्या आपने कभी ध्यान दिया है कि अधिकांश मकान मालिक 11 महीने का ही रेंट एग्रीमेंट क्यों करवाते हैं? और क्या आपको पता है कि एक किरायेदार होने के नाते रेंट एग्रीमेंट में किन-किन बातों का ज़िक्र होना ज़रूरी है?
एक हालिया बातचीत के आधार पर, हम आपके लिए लेकर आए हैं एक आसान और जरूरी गाइड – ताकि आप अगली बार जब किराए पर मकान लें, तो किसी भी तरह की दिक्कत से बच सकें।
किराए पर घर लेने से पहले ये टॉप 5 बातें ज़रूर जांचें:
1. किराया (Rent Amount): रेंट एग्रीमेंट में साफ-साफ लिखा होना चाहिए कि आपको हर महीने कितना किराया देना है, किस तारीख तक देना है और अगर समय पर किराया नहीं दिया गया तो लेट फी कितनी लगेगी। कई बार बिना जानकारी के लेट फीस जुड़ जाती है, जो बाद में विवाद का कारण बनती है।
2. किराया बढ़ाने की शर्तें (Rent Increase Clauses): क्या मकान मालिक हर साल किराया बढ़ा सकता है? अगर हां, तो कितने प्रतिशत तक और कब से? यह सारी बातें रेंट एग्रीमेंट में पहले से दर्ज होनी चाहिए ताकि भविष्य में कोई भ्रम न हो।
3. नोटिस पीरियड (Notice Period): अगर किरायेदार या मकान मालिक किसी कारणवश रेंट एग्रीमेंट खत्म करना चाहते हैं तो इसके लिए कितने दिन या महीने पहले नोटिस देना होगा? यह एक अहम बात है जिसे नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए।
4. पाबंदियाँ (Restrictions): कुछ मकान मालिक घर में पालतू जानवर रखने, मेहमानों के ठहरने या पार्किंग जैसी सुविधाओं पर रोक लगाते हैं। ऐसी सभी शर्तें रेंट एग्रीमेंट में साफ तौर पर होनी चाहिए, ताकि बाद में कोई झगड़ा न हो।
5. सिक्योरिटी डिपॉज़िट (Security Deposit): रेंट एग्रीमेंट में यह भी साफ लिखा होना चाहिए कि सिक्योरिटी डिपॉज़िट की राशि कितनी है और क्या वह भविष्य में रिफंड की जाएगी। अक्सर किरायेदार और मकान मालिक के बीच सबसे ज्यादा टकराव इसी बात को लेकर होता है।
ध्यान रखें: हर शहर और मकान मालिक की डिपॉज़िट पॉलिसी अलग-अलग हो सकती है, इसलिए समझदारी से इसे पढ़ें और आपसी सहमति बनाएं।
अब सवाल है कि मकान मालिक 11 महीने का रेंट एग्रीमेंट क्यों कराते हैं?
यह सवाल लगभग हर किरायेदार के मन में आता है। इसके पीछे दो मुख्य वजहें होती हैं – एक कानूनी और दूसरी वित्तीय।
1. रजिस्ट्रेशन से बचाव (Legal Loophole): रजिस्ट्रेशन एक्ट, 1908 के सेक्शन 17 के अनुसार अगर किसी लीज की अवधि 12 महीने या उससे अधिक है तो उसे रजिस्टर कराना ज़रूरी होता है। रजिस्ट्रेशन के लिए स्टैम्प ड्यूटी और अन्य शुल्क लगते हैं। लेकिन अगर एग्रीमेंट सिर्फ 11 महीने का हो, तो रजिस्ट्रेशन की ज़रूरत नहीं पड़ती – और इसी कारण मकान मालिक इस विकल्प को चुनते हैं।
2. किराया बढ़ाने की आज़ादी (Flexibility in Rent Hike): 11 महीने बाद एग्रीमेंट रिन्यू होता है, जिससे मकान मालिक हर साल किराया बढ़ाने का मौका पा जाते हैं। वहीं, किरायेदार को भी लचीलापन मिलता है – वे चाहें तो किसी बेहतर घर में शिफ्ट हो सकते हैं।
रेंट एग्रीमेंट यानी किराएनामा कोई साधारण दस्तावेज़ नहीं है। यह एक कानूनी अनुबंध होता है जो मकान मालिक और किरायेदार – दोनों की सुरक्षा सुनिश्चित करता है। इसलिए:
रेंट एग्रीमेंट बिना पढ़े साइन न करें।
रेंट एग्रीमेंट की हर शर्त को समझें और यदि ज़रूरत हो तो लिखित बदलाव मांगें।
कोई भी मौखिक वादा हो, तो उसे एग्रीमेंट में शामिल करवाएं।
क्योंकि थोड़ी सी सावधानी आपको भविष्य के बड़े झगड़ों से बचा सकती है।
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डिस्क्लेमर- यह समाचार किसी भी हाल में किसी भी तरह की कानूनी सलाह नहीं है। यह जनहित में एक गैर-व्यावसायिक सामान्य जानकारी है।
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