2030 तक हर बच्चा HIV, Hepatitis-B और Syphilis से मुक्त जन्मेगा? | WHO का अलार्म

जब इन 3 संक्रमणों से बचाव मुमकिन है तो क्यों बच्चे इनसे संक्रमित जन्में? 

  • हर साल लाखों बच्चे इन संक्रमणों के साथ जन्म लेते हैं...
  • क्योंकि हम समय पर जांच और इलाज नहीं करवा पाए।
  • एचआईवी पॉज़िटिव महिला से बच्चा 45% तक संक्रमित हो सकता है।
  • हेपेटाइटिस-बी बिना टीके के — 90% तक ख़तरा।
  • सिफ़िलिस से गर्भ में ही बच्चे की मौत!

एशिया-पैसिफिक में हर दिन 30 बच्चे एचआईवी से संक्रमित हो रहे हैं।

जब HIV, Hepatitis-B और Syphilis जैसे संक्रमणों से बचाव संभव है तो हर साल हजारों नवजात संक्रमित क्यों जन्म लेते हैं? क्या सरकारें अपने वादे निभा पाएंगी कि 2030 तक हर बच्चा संक्रमण-मुक्त जन्म लेगा? WHO की नई गाइडलाइन और चिंताजनक आँकड़े आपके सामने हैं।
When prevention from these 3 infections is possible then why should children be born infected with them?
When prevention from these 3 infections is possible then why should children be born infected with them?


भारत में आज भी सेकेंड-लाइन इलाज सभी को नहीं मिल पा रहा।
जब एचआईवी, हेपेटाइटिस-बी और सिफ़िलिस संक्रमणों से बचाव मुमकिन है तो कोई भी बच्चा क्यों इनसे संक्रमित जन्में? सरकारों ने भी वायदा किया है कि 2030 तक एक भी बच्चा गर्भावस्था और जन्म के समय इनसे संक्रमित नहीं होगा। इस दिशा में कार्य तो हुआ है परंतु इस संदर्भ में अभी भी स्वास्थ्य सेवा अनेक देशों में असंतोषजनक है।

सरकारों ने सतत विकास लक्ष्य में यह वायदा किया है कि 2030 तक एड्स, वायरल हेपेटाइटिस और सिफ़िलिस जैसे संक्रमणों का उन्मूलन होगा। परंतु अधिकांश देशों में इस दिशा में हुई प्रगति असंतोषजनक है और वे इन लक्ष्यों से अभी भी बहुत दूर हैं।

यदि पुरुष या महिला साथी को एचआईवी, हेपेटाइटिस-बी या सिफ़िलिस संक्रमण हों तो जांच - इलाज ज़रूर करवाना चाहिए। गर्भावस्था और प्रसूति के दौरान महिला से नवजात शिशु एचआईवी, हेपेटाइटिस-बी और सिफ़िलिस से संक्रमित हो सकता है। इसके अतिरिक्त, एचआईवी के संक्रमण का ख़तरा स्तनपान के दौरान भी रहता है। इन तीनों संक्रमण के कारण गर्भावस्था के दौरान अवांछित परिणाम हो सकते हैं और महिला और जन्म-उपरांत बच्चे को दीर्घकालिक नकारात्मक परिणाम झेलने पड़ सकते हैं।

बिना सही इलाज और देखभाल के, एचआईवी पॉजिटिव महिला से बच्चे को एचआईवी संक्रमित होने का खतरा 45% रहता है जिसके कारण स्वास्थ्य और विकास पर कुपरिणाम और असामयिक मृत्यु का खतरा भी बना रहता है।

इसी तरह, बिना इलाज और टीकाकरण के, हेपेटाइटिस-बी पॉजिटिव महिलाओं के जन्मे बच्चों को हेपेटाइटिस-बी से संक्रमित होने का ख़तरा 70% से 90% तक रहता है।

गर्भावस्था के दौरान सिफलिस के कारण जन्मजात विसंगतियां (Congenital anomalies due to syphilis during pregnancy) हो सकती हैं, बच्चा मृत हो सकता है, समय से पहले जन्म ले सकता है, जन्म के समय बच्चे का वजन कम हो सकता है और जन्म के बाद भी असामयिक मृत्यु का खतरा बना रहता है।

इसीलिए, पिछले सप्ताह विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक विशेष मार्गनिर्देशिका जारी की है जिसके उपयोग से एशिया पसिफ़िक क्षेत्र के देश 2030 तक यह सुनिश्चित करें कि हर बच्चा इन 3 संक्रमणों से मुक्त जन्म ले।

इसके पूर्व विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसी आशय से 2018-2030 के लिए भी एक महत्वपूर्ण मार्गनिर्देशिका जारी की थी जिसके फलस्वरूप बच्चों को जन्म के दौरान एचआईवी, हेपेटाइटिस-बी और सिफ़िलिस संक्रमण होने की दर में गिरावट तो आई परंतु अनेक देशों में यह संतोषजनक नहीं है।

वायदा पूरा करने लिए केवल 68 माह शेष हैं

2030 तक यह सुनिश्चित करने के लिए कि एक भी बच्चा एचआईवी, हेपेटाइटिस-बी और सिफ़िलिस से संक्रमित न जन्में, अब 6 साल से भी कम समय शेष है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का मानना है कि:

· महिला और उसके पुरुष साथी की एचआईवी, सिफ़िलिस और हेपेटाइटिस-बी की प्रसवपूर्व जांच हो

· मार्गनिर्देशिका के अनुसार महिला और उसके पुरुष साथी को एचआईवी, हेपेटाइटिस-बी और सिफ़िलिस संबंधित सही इलाज और देखभाल मिले

· सुरक्षित स्वस्थ मातृत्व, गर्भावस्था और प्रसूति और बच्चे को सही पोषण मिले

· हेपेटाइटिस-बी टीकाकरण हो, इम्यूनो-ग्लोबुलिन और एचआईवी से बचाव के लिए दवाएं मिले

विश्वभर के एचआईवी के साथ जीवित 9% बच्चे एशिया पसिफ़िक में हैं

संयुक्त राष्ट्र की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया में 14 लाख बच्चे एचआईवी के साथ जीवित हैं। इनमें से 9% (1.2 लाख) एशिया पसिफ़िक देशों में हैं।

एशिया पसिफ़िक क्षेत्र में सबसे अधिक एचआईवी पॉजिटिव बच्चे इंडोनेशिया में हैं (26%) और उसके बाद भारत में हैं (23%).

अमीर देशों में 1994 में ही दुनिया की पहली दवा (ज़िडोवुडिन) देनी शुरू हो गई थी जिससे कि एचआईवी पॉजिटिव गर्भवती महिला से बच्चे को एचआईवी संक्रमण फैलने का खतरा अत्यधिक कम हो सके।

भारत में भी 1994 में एक ग़ैर-सरकारी संगठन ने मुंबई में इस दवा का उपयोग आरम्भ कर दिया था परंतु सरकारी कार्यक्रम में यह प्रयास 2002 से शामिल हो सका।

आज के समय में अत्यंत प्रभावकारी इलाज हैं जिससे कि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई भी बच्चा एचआईवी से संक्रमित न जन्मे और स्तनपान के दौरान भी एचआईवी मुक्त रहे।

संयुक्त राष्ट्र के एड्स कार्यक्रम (यूएन एड्स) के एशिया पसिफ़िक निदेशक इमोन मर्फ़ी ने कहा कि 2010 की तुलना में 2023 तक बच्चों में एचआईवी संक्रमण दर में 62% गिरावट आई है: 2010 में 3 लाख से अधिक बच्चे एचआईवी संक्रमित जन्में थे जबकि 2023 में 1.2 लाख ही बच्चे एचआईवी संक्रमित जन्मे। परंतु यह गिरावट संतोषजनक नहीं है क्योंकि यह संभव है कि हम हर बच्चे के लिए एचआईवी, हेपेटाइटिस और सिफ़िलिस मुक्त जन्म सुनिश्चित कर सकें।

हेपेटाइटिस-बी एक गंभीर चुनौती


एचआईवी, सिफ़िलिस और हेपेटाइटिस-बी संक्रमण दर को देखें तो सबसे अधिक फैलाव हेपेटाइटिस-बी संक्रमण का है और अनेक जगह या समुदाय में तो एचआईवी और सीफ़िलिस की दर के मुक़ाबले हेपेटाइटिस-बी दर अनेक गुणा अधिक है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, दुनिया की जो आबादी हेपेटाइटिस-बी से संक्रमित है और जिसको जांच-इलाज मुहैया नहीं है, उसकी दो-तिहाई तो पश्चिमी पसिफ़िक और दक्षिण-पूर्वी एशिया के देशों में है।

सबसे चिंताजनक बात यह है कि हेपेटाइटिस-बी का टीका है परंतु टीकाकरण सभी पात्र लोगों को नहीं मिला है। हेपेटाइटिस-बी टीके से न सिर्फ हेपेटाइटिस-बी संक्रमण से बचाव होता है बल्कि हेपेटाइटिस-बी रोग के गंभीर और दीर्घकालिक परिणामों से भी बचाव होता है (जैसे कि लिवर सिरहोसिस या लिवर कैंसर)।

पश्चिमी पसिफ़िक देशों में लगभग 6% व्यस्क आबादी, हेपेटाइटिस-बी से संक्रमित हैं और लगभग 5 लाख लोग हर साल इसके कारण मृत होते हैं। दक्षिण-पूर्वी एशिया में लगभग 2 लाख लोग हेपेटाइटिस-बी के कारण एक साल में मृत हुए थे।

अमीर-गरीब के फ़र्क़ से अछूता नहीं है हेपेटाइटिस-बी कार्यक्रम


अमीर के लिए बेहतर उच्च-स्तरीय स्वास्थ्य व्यवस्था और गरीब के लिए जर्जर या नगण्य स्वास्थ्य सेवा हेपेटाइटिस-बी के संदर्भ में भी सही उतरती है।

एशिया पसिफ़िक के अमीर देशों में 1 साल की उम्र के लगभग 100% बच्चों को नियमानुसार हेपेटाइटिस-बी टीके की सभी खुराक मिल चुकी थीं जो विश्व स्वास्थ्य संगठन के लक्ष्य (95%) से अधिक था।

परंतु माध्यम और कम-आय वाले देशों में स्थिति ऐसी संतोषजनक नहीं है क्योंकि पात्र बच्चों में अधिकतम टीकाकरण 75% था जो रोग के फैलाव को रोकने के लिए और आबादी को संक्रमण से बचाने के लिए अपर्याप्त है। कुछ देशों में तो आम टीके जो बच्चों को लगने चाहिए उनकी दर भी असंतोषजनक थी।

यौन रोग आंकड़े पर्याप्त नहीं हैं परंतु जो हैं वह भयावह हैं


यौन रोग संबंधित आंकड़े (statistics on sexual diseases) पर्याप्त नहीं हैं। परंतु जो आंकड़े रिपोर्ट हो रहे हैं वह अत्यंत चिंताजनक हैं। एक साल में पश्चिमी पसिफ़िक क्षेत्र से 11 लाख से अधिक लोग और दक्षिण-पूर्वी एशिया से 3.5 लाख लोग सिफ़िलिस से संक्रमित रिपोर्ट हुए।

सिफ़िलिस से बचाव (Prevention of syphilis) मुमकिन है और यदि संक्रमण हो भी जाए तो इलाज भी उपलब्ध है।

डॉ ईश्वर गिलाडा जो जिनेवा-स्थित इंटरनेशनल एड्स सोसाइटी (आईएएस) के अध्यक्षीय मण्डल में निर्वाचित सदस्य हैं और एशिया पसिफ़िक क्षेत्र में आईएएस के अध्यक्ष, ने कहा कि जब अमीर देशों ने 1994 में पहली बार ज़िडोवुडिन दवा देनी शुरू की जिससे कि बच्चों को एचआईवी संक्रमण होने का खतरा नगण्य रहे, तब उसी साल उनके प्रयास से मुंबई में इंडियन हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (जिसको अब पीपल्स हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के नाम से जाना जाता है) ने भी इस दवा का उपयोग आरंभ किया। यह प्रयास, आईएचओ और वाडिया मॉडल ने अंतर्गत संपन्न हुआ था। भारत सरकार ने आठ वर्ष बाद (2002 से) गर्भवती एचआईवी पॉजिटिव महिलाओं को ऐसी दवा देनी आरम्भ की जिससे कि शिशु एचआईवी मुक्त रहे।

डॉ गिलाडा ने भारत की सबसे पहली एचआईवी क्लिनिक 1986 में मुंबई के सरकारी जेजे अस्पताल में स्थापित की थी और 1994 में देश का पहला ऐसा केन्द्र स्थापित किया जहाँ एचआईवी के साथ जीवित लोगों को हर प्रकार की आधुनिकतम चिकित्सकीय सेवा प्रदान की जा सके। इस केंद्र को यूनिसन मेडिकेयर एंड रिसर्च सेंटर, मुंबई, के नाम से जाना जाता है।

डॉ गिलाडा ने आह्वान किया कि जब वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित दवाएं सालों से उपलब्ध हैं जिससे कि बच्चा एचआईवी संक्रमण से मुक्त रहे तो इस बात को कैसे स्वीकार किया जा सकता है कि एशिया पसिफ़िक देशों में आज भी एचआईवी संक्रमित बच्चे जन्म लेते है। उन्होंने कहा कि उनके मुंबई-स्थित यूनिसन मेडिकेयर एंड रिसर्च सेंटर में पिछले 10 सालों में एचआईवी पॉजिटिव गर्भवती महिलाओं ने 220 एचआईवी मुक्त बच्चों को जन्म दिया। जब वे अपने केंद्र में आयुर्विज्ञान पर आधारित और विश्व स्वास्थ्य संगठन की मार्गनिर्देशिका पर आधारित चिकित्सकीय देखभाल से यह हासिल कर सकते हैं तो फिर देश भर में यह क्यों नहीं हो सकता कि सभी बच्चे एचआईवी मुक्त जन्म लें?

हेपेटाइटिस-बी टीका सस्ता है फिर भी टीकाकरण संतोषजनक क्यों नहीं?


डॉ गिलाडा का कहना है कि हेपेटाइटिस-बी की रोकथाम तो टीके से हो सकती है। अब हेपेटाइटिस-बी टीका सस्ता भी है और टीकाकरण की सभी खुराकों की क़ीमत रु 100 से भी कम है तो फिर लाखों लोग क्यों हेपेटाइटिस-बी के कारण पीड़ित हैं? डॉ गिलाडा ने कहा कि अनेक ऐसे अवसर हैं जहाँ हम टीकाकरण कर सकते हैं क्योंकि हम लोगों की हेपेटाइटिस-बी जांच तो करते ही हैं तो फिर पात्र लोगों को टीका क्यों नहीं देते? उदाहरण के तौर पर, रक्त दान शिविर, अस्पताल भर्ती, प्रजनन संबंधित स्वास्थ्य केंद्र (reproductive health center), यौन संक्रमण संबंधित स्वास्थ्य केंद्र (STD health center), एचआईवी संबंधित स्वास्थ्य केंद्र (HIV Related Health Center), सर्जरी या शल्य चिकित्सा के पहले, अप्रवासन के पूर्व, आदि में हेपेटाइटिस-बी जांच होती है। जो लोग नेगेटिव रिपोर्ट होते हैं उनको टीकाकरण देना महत्वपूर्ण है।

यूएन एड्स के एशिया पसिफ़िक निदेशक इमोन मर्फ़ी ने कहा कि एशिया पसिफ़िक क्षेत्र में 2023 में 10,000 बच्चे एचआईवी से संक्रमित हुए थे - 30 बच्चे प्रतिदिन एचआईवी से संक्रमित हुए। यह कैसे स्वीकार्य हो सकता है? हर बच्चे को एचआईवी, हेपेटाइटिस-बी और सिफ़िलिस से बचाना ज़रूरी है।

इंडोनेशिया की एचआईवी पॉजिटिव महिला संगठन की आया ऑक्टेरियानी ने कहा कि दुर्भाग्य की बात है कि स्वास्थ्य अधिकार सबके लिए समान अधिकार नहीं है, बल्कि केवल चंद लोगों के लिए ही विशेषाधिकार है। इस ग़ैर-बराबरी को ख़त्म करना ज़रूरी है। सबके लिए समान स्वास्थ्य अधिकार होना चाहिए। महिलाओं को अनेक गुणा अधिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है क्योंकि उन्हें जेंडर असमानता, एचआईवी संबंधित शोषण और भेदभाव, जेंडर-आधारित हिंसा भी झेलनी पड़ती हैं। आया की संगठन ने यह साबित किया है कि एचआईवी के साथ जीवित महिलाओं के समूह एक सकारात्मक भूमिका निभा सकते हैं और महिलाओं और बच्चों की देखभाल के साथ-साथ यह भी सुनिश्चित कर सकते हैं कि हर बच्चा एचआईवी मुक्त जन्म ले। जन्म उपरांत भी बच्चे के स्वास्थ्य की पूरी देखभाल और महिला को जीवनरक्षक एंटीरेट्रोवायरल दवाएं अधिकार स्वरूप सम्मान के साथ मिलनी चाहिए।

2016 से थाईलैंड में सभी बच्चे जन्मे एचआईवी और सिफ़िलिस मुक्त


थाईलैंड पूरे एशिया पसिफ़िक क्षेत्र में पहला देश है जहाँ 2016 से हर बच्चा एचआईवी या सीफ़िलिस मुक्त जन्मा। जब 1994 में विश्व में पहली बार अमीर देशों में ज़िडोवुडिन दवा का उपयोग शुरू हुआ जिससे बच्चे एचआईवी मुक्त जन्म ले सकें तो थाईलैंड में 1996 में यह दवा दी जाने लगी। थाईलैंड की स्वास्थ्य व्यवस्था सराहनीय है, विशेषकर इसलिए कि उसने दशकों से जन स्वास्थ्य को प्राथमिकता दी है।

थाईलैंड के बाद 2018-2019 में मलेशिया और श्री लंका ने भी यह लक्ष्य हासिल कर लिया कि हर बच्चा एचआईवी और सिफ़िलिस मुक्त जन्मे। एशिया पसिफ़िक क्षेत्र में कुछ अन्य देश (जैसे कि भूटान, कंबोडिया, चाइना और मंगोलिया) भी लक्ष्य हासिल करने वाले हैं या उसके क़रीब हैं।

जब सरकारें वैश्विक लक्ष्यों पर मोहर लगाती हैं तो फिर जवाबदेही तो बनती ही है। जब सालों या दशकों से यह संभव है कि बच्चे रोग-मुक्त जन्म लें, ख़ासकर कि एचआईवी, हेपेटाइटिस-बी और सिफ़िलिस संक्रमण के संदर्भ में, तो यह लक्ष्य पूरा क्यों नहीं हुआ है? उम्मीद तो क़ायम है कि जल्दी ही ग़ैर-बराबरी समाप्त होगी और अमीर-गरीब सबके लिए ये लक्ष्य पूरे होंगे।

शोभा शुक्ला, बॉबी रमाकांत

(शोभा शुक्ला और बॉबी रमाकांत, सीएनएस (सिटीज़न न्यूज़ सर्विस) के संपादकीय मंडल से जुड़े हैं।)

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Amalendu Upadhyaya
वेबसाइट संचालक अमलेन्दु उपाध्याय 30 वर्ष से अधिक अनुभव वाले वरिष्ठ पत्रकार और जाने माने राजनैतिक विश्लेषक हैं। वह पर्यावरण, अंतर्राष्ट्रीय राजनीति, युवा, खेल, कानून, स्वास्थ्य, समसामयिकी, राजनीति इत्यादि पर लिखते रहे हैं।