इज़रायली सेना पर गंभीर आरोप: फ़लस्तीनियों के खिलाफ यौन हिंसा को बनाया 'युद्ध का हथियार' | Israeli army makes sexual violence against Palestinians a 'weapon of war'
क्या इज़रायली सेना ने फ़लस्तीनियों के खिलाफ किया यौन हिंसा का इस्तेमाल?
- मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट में इज़रायल पर गंभीर आरोप!
- ग़ाज़ा में यौन हिंसा: इज़रायली सेना पर लगे ‘युद्ध के औज़ार’ के रूप में इस्तेमाल के आरोप
- क्या फ़लस्तीनियों के अधिकारों का हो रहा है खुला उल्लंघन? जानिए रिपोर्ट की पूरी सच्चाई
- इज़रायल ने खारिज किए आरोप, लेकिन मानवाधिकार संगठनों ने उठाए बड़े सवाल
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Israeli army makes sexual violence against Palestinians a 'weapon of war' Photo-UN News |
इसराइली बलों ने फ़लस्तीनियों के विरुद्ध यौन हिंसा को, 'युद्ध के औज़ार के रूप में दिया अंजाम'
क़ाबिज़ फ़लस्तीनी इलाक़े के लिए नियुक्त वरिष्ठ मानवाधिकार जाँचकर्ताओं ने आरोप लगाया है कि इसराइली सुरक्षा बलों ने बच्चों समेत फ़लस्तीनियों के विरुद्ध यौन एवं लिंग-आधारित हिंसा को युद्ध के एक औज़ार के रूप में अंजाम दिया है. मानवाधिकार परिषद के तहत सेवारत इन जाँचकर्ताओं ने 7 अक्टूबर 2023 को इसराइल पर हुए हमलों के बाद भड़के ग़ाज़ा युद्ध के सन्दर्भ में अपनी रिपोर्ट पेश करते हुए यह बात कही.
क़ाबिज़ फ़लस्तीनी इलाक़े के लिए जाँच आयोग के क्रिस सिडोटी ने कहा कि इसराइल ने यौन, प्रजनन समेत लिंग-आधारित हिंसा के अन्य रूपों को फ़लस्तीनी आबादी के विरुद्ध इस्तेमाल किया है. स्व-निर्धारण के उनके अधिकार को कमज़ोर करने की कोशिशों के तहत.
मानवाधिकार विशेषज्ञ ने जिनीवा में बताया कि क़ाबिज़ फ़लस्तीनी इलाक़े में यौन और लिंग-आधारित हिंसा को जिस आवृत्ति, व्यापकता और गम्भीरता से अंजाम दिया गया है, उससे यह आयोग इस निष्कर्ष पर पहुँचा है कि इसराइल द्वारा यौन व लिंग-आधारित हिंसा को युद्ध के एक तौर-तरीक़े के रूप में इस्तेमाल में लाया जा रहा है इसका मक़सद, फ़लस्तीनी आबादी को अस्थिर बनाना, वहाँ अपना दबदबा क़ायम करना और उसे बर्बाद करना है.
मानवाधिकार परिषद ने मई 2021 में इस आयोग की स्थापना की थी, जिसका दायित्व क़ाबिज़ फ़लस्तीनी इलाक़े में अन्तरराष्ट्रीय क़ानून के कथित उल्लंघन मामलों की जाँच करना और उन पर अपनी रिपोर्ट सौंपना है.
इसराइल में आतंकी हमले
इससे पहले, आयोग ने अपनी रिपोर्टों में, हमास के नेतृत्व में फ़लस्तीनी हथियारबन्द लड़ाकों द्वारा 7-8 अक्टूबर को इसराइली गाँवों व नगरों पर आतंकी हमलों के बारे में विस्तार से जानकारी दी थी. इन हमलों में 1,250 लोग मारे गए और 250 से अधिक को ग़ाज़ा में बन्धक के तौर पर ले जाया गया था.
11-12 मार्च को जिनीवा में दो दिनों के लिए सार्वजनिक सुनवाई के बाद आयोग की रिपोर्ट को प्रकाशित किया गया है. सुनवाई के दौरान यौन एवं प्रजनन हिंसा के पीड़ितों, प्रत्यक्षदर्शियों, प्रभावितों की सहायता करने वाले चिकित्साकर्मियों समेत नागरिक समाज के प्रतिनिधियों, शिक्षाविद, वकीलों और स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया.
मानवाधिकार विशेषज्ञ क्रिस सिडोटी के अनुसार, कमीशन ने ग़ाज़ा से लाए गए फ़लस्तीनियों बन्दियों के साथ हुई यौन एवं लिंग-आधारित हिंसा के गम्भीर मामलों में अधिक जानकारी के लिए इसराइली प्रशासन से अनुरोध किए थे.
मगर, अक्टूबर 2023 के बाद घटित ऐसी घटनाओं के लिए इसराइली सुरक्षा बलों या इसराइली बस्तियों के बाशिन्दों की जवाबदेही तय करने पर केन्द्रित किसी प्रक्रिया के बारे में कोई जानकारी मुहैया नहीं कराई गई.
स्पष्ट आदेश, ‘अव्यक्त प्रोत्साहन’
कमीशन की रिपोर्ट के साथ एक वक्तव्य भी जारी किया गया है, जिसके अनुसार फ़लस्तीनी बन्दियों को जबरन निर्वस्त्र किया जाना, बलात्कार की धमकियों के अलावा उनका यौन उत्पीड़न करना व यौन हमलों को अंजाम देना, इसराइली सेना के कामकाज की एक मानक प्रक्रिया थी.
यौन एवं लिंग-आधारित हिंसा, जननांगों को नुक़सान पहुँचाने की घटनाओं के लिए या तो शीर्ष सैन्य व नागरिक नेतृत्व से स्पष्ट आदेश थे या फिर उन्हें अव्यक्त (implicit) तौर पर प्रोत्साहन दिया गया. पुरुषों व लड़कों को पूरी तरह या आंशिक रूप से नग्न कर दिया गया, और फिर उसी अवस्था में सर्दी में ज़मीन पर तीन दिन तक बैठाया गया.
आयोग का कहना है कि इसराइली सेना ने व्यवस्थागत ढंग से ग़ाज़ा में यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य केन्द्रों को ध्वस्त कर दिया. इनमें दिसम्बर 2023 में बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुआ अल बासमा केन्द्र भी है, जोकि ग़ाज़ा का सबसे बड़ा प्रजनन क्लीनिक था.
भ्रूणों की बर्बादी
टैंक के ज़रिये की गई गोलाबारी में एक क्लीनिक में चार हज़ार भ्रूण ख़त्म हो गए, जिनसे एक महीने में दो से तीन हज़ार मरीज़ों की मदद की जा रही थी.
क्रिस सिडोटी ने कहा कि एक सवाल है कि गोलाबारी टैंक से की गई थी या नहीं, चूँकि हमारा निष्कर्ष है कि यह टैंक से दागे गए गोले से ध्वस्त हुआ था, और उन्हें पता था कि यह एक प्रजनन क्लीनिक है.
कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार, क़ाबिज़ फ़लस्तीनी इलाक़े में हुए विध्वंस को रोम संविदा और जनसंहार सन्धि के तहत दो श्रेणी में रखा जा सकता है, जिनमें सोच-समझकर फ़लस्तीनी आबादी के शारीरिक विध्वंस को अंजाम देना और बच्चों के जन्म को टालना है.
इस आयोग की प्रमुख नवी पिल्ल ने कहा कि प्रजनन स्वास्थ्य देखभाल केन्द्रों को निशाना बनाया जाना, मातृत्व वार्ड पर सीधे तौर से हमला करना, भूख से तड़पाने को युद्ध के एक औज़ार के रूप में इस्तेमाल में लाना, इन सभी मामलों से प्रजनन का हर पहलु प्रभावित हुआ है.
उनके अनुसार, इससे ना केवल लड़कियों व महिलाओं की शारीरिक, मानसिक पीड़ा बढ़ी है बल्कि उनके मानसिक व प्रजनन स्वास्थ्य पर ऐसा असर हुआ है, जिसे दूर करना बेहद मुश्किल है.
इसराइल ने आरोपों को किया ख़ारिज
जिनीवा में इसराइली मिशन ने अपनी एक प्रैस विज्ञप्ति में आयोग की रिपोर्ट में लगाए गए इन आरोपों को बेबुनियाद क़रार देते हुए उन्हें सिरे से ख़ारिज किया है.
इसराइल ने जाँच आयोग पर आरोप लगाया है कि उसने पहले से निर्धारित, पूर्वाग्रह से ग्रसित अपने राजनैतिक एजेंडा को आगे बढ़ाने के लिए यौन हिंसा का सहारा लिया है.
इसराइल के अनुसार, इससे इन जघन्य कृत्यों को युद्ध के औज़ार के रूप में अंजाम देने की रोकथाम के लिए जो अन्तरराष्ट्रीय संस्थाएँ प्रयासरत हैं, उनके अहम कामकाज पर असर होगा.
The @UN Commission of Inquiry on the Occupied Palestinian Territory, including East Jerusalem, & Israel found in new report that Israel is increasingly using sexual & gender-based violence against Palestinians, Commissioner Chris Sidoti said during a press conference at @UNGeneva pic.twitter.com/Za435NH2hG
— UN Human Rights Council (@UN_HRC) March 13, 2025
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