सेप्सिस का शीघ्र पता लगाने के लिए नॉन-इनवेसिव इमेजिंग परीक्षण महत्वपूर्ण | Non-invasive imaging techniques for early detection of sepsis

सेप्सिस का शीघ्र इलाज करने के लिए आवश्यक नई तकनीक

कनाडा के शोधकर्ताओं ने सेप्सिस की शीघ्र पहचान के लिए नॉन-इनवेसिव इमेजिंग तकनीक का खुलासा किया

कनाडा के ओंटारियो स्थित वेस्टर्न यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने सेप्सिस संक्रमण का शीघ्र पता लगाने के लिए एक नई नॉन-इनवेसिव इमेजिंग तकनीक विकसित की है। इस तकनीक के जरिए हड्डियों और मांसपेशियों के माध्यम से रक्त प्रवाह का आकलन करके सेप्सिस का शुरुआती चरण पहचाना जा सकता है। सेप्सिस एक जानलेवा संक्रमण है, और यदि इसका समय पर इलाज नहीं किया जाए तो यह शरीर के अंगों की विफलता का कारण बन सकता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि इस नॉन-इनवेसिव इमेजिंग परीक्षण से वैश्विक स्तर पर सेप्सिस की पहचान और इलाज में मदद मिल सकती है, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहां संसाधन कम हैं।
Non-invasive imaging techniques for early detection of sepsis
Non-invasive imaging techniques for early detection of sepsis


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विस्तार

कनाडा के शोधकर्ताओं ने सेप्सिस के शीघ्र पहचान के लिए नॉन-इनवेसिव इमेजिंग परीक्षण की एक नई तकनीक का खुलासा किया है, जो चिकित्सा क्षेत्र में महत्वपूर्ण कदम हो सकता है।

सेप्सिस क्या होता है ?

सेप्सिस एक गंभीर संक्रमण है, जो शरीर के अंगों की विफलता का कारण बन सकता है यदि इसका इलाज समय पर नहीं किया जाता। विश्वभर में हर साल लाखों लोगों की मौत सेप्सिस से होती है, और अक्सर इसका पता देर से चलता है।

वेस्टर्न यूनिवर्सिटी, ओंटारियो के शोधकर्ताओं ने हाल ही में अपनी अध्ययन में पाया कि नॉन-इनवेसिव इमेजिंग तकनीक, जो हड्डियों की मांसपेशियों के माध्यम से रक्त प्रवाह का आकलन करती है, सेप्सिस संक्रमण का शीघ्र पता लगाने में प्रभावी है।

'द एफएएसईबी जर्नल' में प्रकाशित अपने पेपर में वेस्टर्न यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं की टीम ने कहा, "प्रारंभिक सेप्सिस में मस्तिष्क आंशिक रूप से सुरक्षित रहता है, लेकिन हड्डियों की मांसपेशियों में माइक्रोहेमोडायनामिक्स में परिवर्तन का पता लगाकर बीमारी की पहचान की जा सकती है।"
टीम ने द एफएएसईबी जर्नल में प्रकाशित पेपर "Non-invasive point-of-care optical technique for continuous in vivo assessment of microcirculatory function: Application to a preclinical model of early sepsis" में कहा, ''अध्ययन से पता चलता है कि प्रारंभिक सेप्सिस में मस्तिष्क आंशिक रूप से सुरक्षित रहता है, लेकिन हड्डियों की मांसपेशियों माइक्रोहेमोडायनामिक्स में परिवर्तन का पता लगाकर बीमारी की पहचान की जा सकती है।''


इस शोध में इमेजिंग तकनीकों, जैसे हाइपरस्पेक्ट्रल नियर इन्फ्रारेड स्पेक्ट्रोस्कोपी और डिफ्यूज कोरिलेशन स्पेक्ट्रोस्कोपी का उपयोग किया गया, जो सामान्यतः बिस्तर पकड़ चुके मरीजों के टिशू की स्थिति की निगरानी के लिए प्रयोग की जाती हैं। इन तकनीकों से सेप्सिस के लक्षणों का शीघ्र पता लगाना संभव हो सका, और चूहों पर शोध करके इन विधियों की प्रभावशीलता का परीक्षण किया गया।

सेप्सिस का उपचार क्या है ?

वर्तमान में सेप्सिस का उपचार एंटीबायोटिक्स और वैसोप्रेसर्स द्वारा किया जाता है, जो संक्रमण और निम्न रक्तचाप को नियंत्रित करने में मदद करते हैं। हालांकि, सेप्सिस के शुरुआती चरण में इसका पता लगाने के लिए प्रभावी उपकरणों की कमी है। ऐसे में यह नॉन-इनवेसिव इमेजिंग तकनीक वैश्विक स्तर पर सेप्सिस के उपचार (Treatment of sepsis) में सुधार की संभावना प्रस्तुत करती है।

सह-लेखक रसा एस्कंदरी (Rasa Eskandari) ने कहा, "सेप्सिस दुनिया भर में मौत का एक प्रमुख कारण है, जो असुरक्षित आबादी और कम संसाधन वाले लोगों को असमान रूप से प्रभावित करता है। इसलिए, सेप्सिस का शीघ्र पता लगाना और समय पर इलाज करना बेहद जरूरी है।"

शोध में कहा गया है कि सेप्सिस के शुरुआती चरणों में, जबकि मस्तिष्क जैसे महत्वपूर्ण अंग आंशिक रूप से संरक्षित होते हैं, परिधीय छिड़काव और वासोमोटर गतिविधि में परिवर्तन का पता hsNIRS-DCS का उपयोग करके लगाया जा सकता है। भविष्य में इस तकनीक का प्रयोग आईसीयू के मरीजों पर किया जाएगा।

इस खोज से यह उम्मीद जताई जा रही है कि नॉन-इनवेसिव इमेजिंग तकनीक से सेप्सिस का जल्दी पता लगाना संभव हो सकेगा, जिससे इलाज में सुधार होगा और जानें बचाई जा सकेंगी।

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Amalendu Upadhyaya
वेबसाइट संचालक अमलेन्दु उपाध्याय 30 वर्ष से अधिक अनुभव वाले वरिष्ठ पत्रकार और जाने माने राजनैतिक विश्लेषक हैं। वह पर्यावरण, अंतर्राष्ट्रीय राजनीति, युवा, खेल, कानून, स्वास्थ्य, समसामयिकी, राजनीति इत्यादि पर लिखते रहे हैं।