बच्चों में ल्यूकेमिया के इलाज में बड़ी सफलता: नए शोध से जीवन दर में सुधार की उम्मीद | Blinatumomab in Standard-Risk B-Cell
बी-सेल एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया: बच्चों में सबसे आम कैंसर
ब्लिनैटुमोमाब और कीमोथेरेपी का प्रभाव: शोध के मुख्य निष्कर्ष
- इम्यूनोथेरेपी बनाम कीमोथेरेपी: उपचार का बदलता तरीका
- वैश्विक शोध का भारतीय योगदान: डॉ. सुमित गुप्ता की भूमिका
- नए उपचार के सकारात्मक प्रभाव: रोग-मुक्त जीवन दर में वृद्धि
नए शोध में बच्चों में बी-सेल एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया (B-ALL) के इलाज के लिए ब्लिनैटुमोमाब और कीमोथेरेपी का संयोजन अधिक प्रभावी पाया गया है। इस उपचार से रोग-मुक्त जीवन दर में 97.5% तक सुधार हुआ है। भारतीय मूल के शोधकर्ता डॉ. सुमित गुप्ता की अगुआई में किए गए इस अध्ययन ने B-ALL के इलाज में नई उम्मीदें जगाई हैं। अध्ययन के नतीजे वैश्विक चिकित्सा पद्धति में बदलाव ला सकते हैं।
Effect of blinatumomab and chemotherapy |
नई दिल्ली, 11 दिसंबर 2024. कॉमन चाइल्डहुड ल्यूकेमिया के रोगियों के जीवित रहने की दर में सुधार हो सकता है। यह बात भारतीय मूल के एक शोधकर्ता के नेतृत्व में किए गए एक वैश्विक क्लिनिकल परीक्षण से सामने आई है।
बी-सेल एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया (B-cell acute lymphoblastic leukemia/ B-ALL बी-एएलएल) बच्चों में होने वाला सबसे आम कैंसर है। यह तब होता है जब अस्थि मज्जा बहुत अधिक असामान्य बी-लिम्फोसाइट्स का उत्पादन करती है। सभी B-ALL मामलों में से लगभग 75% छह साल से कम उम्र के बच्चों को प्रभावित करते हैं। ALL से पीड़ित लगभग 75% वयस्कों में B-ALL उपप्रकार होता है। B-ALL से पीड़ित लगभग 85% बच्चे पाँच साल बाद कैंसर मुक्त रहते हैं। B-ALL के लिए पाँच साल की उत्तरजीविता दर बच्चों में 90% से अधिक और 20 वर्ष से अधिक उम्र के वयस्कों में लगभग 40% है।
द हॉस्पिटल फॉर सिक चिल्ड्रेन (सिककिड्स) और सिएटल चिल्ड्रेन हॉस्पिटल के वैज्ञानिकों द्वारा संचालित चिल्ड्रन ऑन्कोलॉजी ग्रुप के क्लिनिकल ट्रायल में आशाजनक परिणाम मिले हैं। इस ट्रायल में चार देशों में 200 से अधिक साइट शामिल थीं।
न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित अध्ययन "Blinatumomab in Standard-Risk B-Cell Acute Lymphoblastic Leukemia in Children" निष्कर्षों से पता चला है कि जिन लोगों ने कीमोथेरेपी और ब्लिनैटुमोमाब (बी-एएलएल से पीड़ित बच्चों के लिए इस्तेमाल की जाने वाली इम्यूनोथेरेपी) दोनों ली है उनमें बी-एएलएल के दोबारा होने या मृत्यु के जोखिम में 61 प्रतिशत की कमी आई।
अध्ययन कर्ता डॉ. सुमित गुप्ता, ऑन्कोलॉजिस्ट और सिककिड्स में बाल स्वास्थ्य मूल्यांकन विज्ञान कार्यक्रम में एसोसिएट साइंटिस्ट (Hospital for Sick Children Research Institute: Toronto, Ontario, CA) ने कहा, "रोग-मुक्त जीवन में महत्वपूर्ण सुधार दिखाने वाले ये महत्वपूर्ण आंकड़े नव निदान बी-एएलएल वाले लगभग सभी बच्चों को जबरदस्त नैदानिक लाभ पहुंचाने के लिए तैयार हैं।"
गुप्ता ने कहा, "इससे दुनिया भर में बी-एएलएल से पीड़ित बच्चों की देखभाल का स्तर बदल रहा है।''
ब्लिनैटुमोमाब कैसे काम करती है
कीमोथेरेपी के विपरीत, ब्लिनैटुमोमाब जैसी इम्यूनोथेरेपी, कैंसर से लड़ने के लिए शरीर की अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली का उपयोग करती है, इसके साथ ही प्रतिरक्षा प्रणाली को कैंसर कोशिकाओं पर लक्ष्य बनाना सिखाती है।
अध्ययन से पता चला कि बीमारी के दोबारा उभरने के औसत जोखिम वाले बच्चों के लिए तीन वर्षों के बाद रोग-मुक्त जीवन दर बढ़कर 97.5 प्रतिशत हो गई, जबकि अकेले कीमोथेरेपी से यह दर 90 प्रतिशत थी।
जिन बच्चों में रोग के पुनः उभरने का जोखिम अधिक था, उन्हें कीमोथेरेपी के साथ-साथ ब्लिनैटुमोमाब देने से रोग-मुक्त जीवन दर 85 प्रतिशत से बढ़कर 94 प्रतिशत हो गई।
अध्ययन की सह-अगुआ (Rachel E. Rau, M.D.) ने कहा, ''ये निष्कर्ष बीमारी के दोबारा होने की रोकथाम में ब्लिनैटुमोमाब के उपयोग से हुई प्रगति को रेखांकित करते हैं और वर्तमान चिकित्सीय रणनीतियों में इसकी भूमिका का समर्थन करते हैं।''
डॉ. राउ वाशिंगटन विश्वविद्यालय में बाल रोग के एसोसिएट प्रोफेसर हैं और सिएटल चिल्ड्रेंस हॉस्पिटल में बोर्ड-प्रमाणित बाल चिकित्सा हेमेटोलॉजिस्ट-ऑन्कोलॉजिस्ट हैं। बेन टाउन सेंटर फॉर चाइल्डहुड कैंसर एंड ब्लड डिसऑर्डर्स रिसर्च में उनका लैब-आधारित शोध कार्यक्रम उन आणविक तंत्रों को समझने पर केंद्रित है जो ल्यूकेमोजेनेसिस और थेरेपी प्रतिरोध को संचालित करते हैं, जिसका उद्देश्य इन निष्कर्षों को नैदानिक अनुप्रयोगों में परिवर्तित करना है।
निष्कर्षों में कनाडा, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के 1,440 बच्चे शामिल थे।
टोरंटो विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर गुप्ता ने कहा, "यह नया कॉम्बिनेशन उपचार इन रोगियों के लिए देखभाल का नया मानक बनने जा रहा है, जिससे संभावित रूप से कई लोगों की जान बच जाएगी और बीमारी के दोबारा होने से जुड़े डर और स्वास्थ्य प्रभावों में कमी आएगी।''
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