दुनिया भर में भूमि क्षरण से प्रभावित 3 अरब लोग: रियाद में COP16 सम्मेलन में भूमि पुनर्बहाली पर चर्चा | Objective of the COP16 conference and the role of UNCCD

COP16 सम्मेलन की शुरुआत: भूमि क्षरण और सूखा पर वैश्विक चर्चा

  • दुनिया भर में भूमि क्षरण के प्रभाव से प्रभावित 3 अरब लोग
  • भूमि पुनर्बहाली और सूखा: COP16 में प्राथमिकता वाले मुद्दे
  • भूमि क्षरण को रोकने के लिए सरकारों और नागरिक संगठनों का एकजुट प्रयास
  • COP16 में जलवायु परिवर्तन और भूमि प्रबंधन पर चर्चा

COP16 सम्मेलन का उद्देश्य और UNCCD की भूमिका

  • भूमि क्षरण के सामाजिक और आर्थिक प्रभाव
  • भूमि पुनर्बहाली के लिए वैश्विक वित्तीय आवश्यकताएँ
  • नागरिक समाज और समुदायों की भूमिका: समावेशी कार्रवाई की पुकार
  • 2030 तक भूमि बहाली और जलवायु परिवर्तन पर प्रभावी कदम
रियाद में शुरू हुआ COP16 सम्मेलन भूमि क्षरण, सूखा और मरुस्थलीकरण पर चर्चा कर रहा है। 3 अरब लोग भूमि क्षरण से प्रभावित हैं, और वैश्विक जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर भूमि पुनर्बहाली की आवश्यकता पर जोर दिया जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र समाचार की इस खबर से जानें इस महत्वपूर्ण सम्मेलन की अपडेट्स और वैश्विक प्रयासों के बारे में...
3 billion people affected by land degradation worldwide, COP16 meeting in Riyadh
3 billion people affected by land degradation worldwide, COP16 meeting in Riyadh


दुनिया भर में भूमि क्षरण से 3 अरब लोग प्रभावित, रियाद में कॉप16 की बैठक

दुनिया भर में तीन अरब लोग ख़राब और बंजर भूमि के प्रभाव से पीड़ित हैं, जिससे "बहुत से समुदायों में प्रवासन, स्थिरता और असुरक्षा के स्तर में वृद्धि होगी."

यह बात मरुस्थलीकरण, सूखा और भूमि पुनर्बहाली विषय पर, सऊदी अरब के रियाद शहर में शुरू हुए, संयुक्त राष्ट्र समर्थित सम्मेलन के नव-निर्वाचित अध्यक्ष अब्दुल रहमान अलफ़दले ने कही है.

सऊदी अरब के पर्यावरण, जल और कृषि मंत्री अब्दुल रहमान अलफ़दले, देश की राजधानी में संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम सम्मेलन (UNCCD) के पक्षकारों के सम्मेलन (COP) के 16वें सत्र के आरम्भ में बोल रहे थे. यह सत्र सोमवार 2 दिसम्बर को शुरू हो कर, 13 दिसम्बर तक चलेगा.

यूएनसीसीडी के अनुसार, यह बैठक "लोगों पर केन्द्रित दृष्टिकोण के माध्यम से वैश्विक महत्वाकांक्षा को बढ़ाने और भूमि व सूखे के प्रति सहनशीलता पर कार्रवाई में तेज़ी लाने के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर है."

वैश्विक स्तर पर दुनिया की 40 प्रतिशत भूमि क्षरित हो चुकी है, जिसका अर्थ है कि इसकी जैविक या आर्थिक उत्पादकता कम हो गई है. इसका जलवायु, जैव विविधता और लोगों की आजीविका पर गम्भीर प्रभाव पड़ता है.

सूखा COP16 में प्राथमिकता वाला मुद्दा है जोकि जलवायु परिवर्तन और असंवहनीय भूमि प्रबन्धन के कारण लगातार और गंभीर होता जा रहा है. इसमें वर्ष 2000 के बाद से 29 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है.

मानवता का पोषण

संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण सम्मेलन पर 30 वर्ष पहले सहमति बनी थी और संगठन के वर्तमान कार्यकारी सचिव इब्राहीम चियाऊ ने सूखा व मरुस्थलीकरण के कारण खोई हुई भूमि को, बहाल किए जाने के निरन्तर महत्व पर प्रकाश डाला.

उन्होंने कहा, "भूमि बहाली मुख्य रूप से मानवता के पोषण के बारे में है. आज हम जिस तरह से अपनी भूमि का प्रबन्धन करते हैं, उससे सीधे रूप में, पृथ्वी पर जीवन का भविष्य निर्धारित होगा."

उन्होंने भूमि के नुक़सान से प्रभावित किसानों, माताओं और युवाओं से मुलाक़ातें करने के अपने व्यक्तिगत अनुभव के बारे में बताया. "भूमि क्षरण की लागत उनके जीवन के हर कोने में देखी जा सकती है."

उन्होंने कहा, "वे किराने के सामान की बढ़ती क़ीमत, अप्रत्याशित ऊर्जा बोझ और अपने समुदायों पर बढ़ते दबाव को देखते हैं.”

“भूमि और मिट्टी का नुक़सान निर्धन परिवारों को पौष्टिक भोजन व बच्चों के सुरक्षित भविष्य से वंचित कर रहा है."

भूमि क्षरण को रोककर पुनर्बहाली

COP16 सम्मेलन, नवीनतम शोध पर चर्चा करने और भूमि उपयोग के एक स्थाई भविष्य के लिए आगे का रास्ता तय करने के लिए, सरकारों, अन्तरराष्ट्रीय संगठनों, निजी क्षेत्र और नागरिक समाज के वैश्विक नेताओं को एक साथ आने का अवसर मुहैया कराता है.

इब्राहीम चियाउ ने कहा कि दुनिया मिलकर "भूमि क्षरण की प्रवृत्ति को उलट सकती है", लेकिन ऐसा केवल तभी हो सकता है जब जब "हम इस निर्णायक क्षण का लाभ उठाएँ."

संयुक्त राष्ट्र की उप महासचिव आमिना मोहम्मद ने वीडियो लिंक के ज़रिए सम्मेलन को सम्बोधित किया. उन्होंने COP16 में आए प्रतिनिधियों से अपनी भूमिका निभाने और अन्तरराष्ट्रीय सहयोग को मज़बूत करने सहित तीन प्राथमिकताओं पर ध्यान केन्द्रित करके "हवा का रुख़ मोड़ने" का आग्रह किया.

उन्होंने कहा कि भूमि बहाली के प्रयासों को "तेज़ करना" और "बड़े पैमाने पर धन जुटाने" की दिशा में काम करना भी महत्वपूर्ण है.

इन प्रयासों के लिए धन एकत्र करना चुनौतीपूर्ण होने जा रहा है, और धन केवल सार्वजनिक क्षेत्र से धन मिलने की सम्भावना नहीं है, लेकिन संयुक्त राष्ट्र की उप प्रमुख के अनुसार, "संचयी निवेश 2030 तक कुल $2.6 ट्रिलियन डॉलर होना चाहिए; यह उतनी रक़म है जितनी दुनिया ने केवल वर्ष 2023 में, रक्षा बजट पर ख़र्च की थी."

समावेशी कार्रवाई की पुकार

तहनयात नईम सत्ती ने, सम्मेलन में भाग लेने वाले नागरिक समाज संगठनों की ओर से बोलते हुए, "कॉप16 में महत्वाकांक्षी और समावेशी कार्रवाई" की पुकार लगाई और कहा कि "सभी स्तरों पर निर्णय लेने में महिलाओं, युवाओं, स्वदेशी लोगों, चरवाहों और स्थानीय समुदायों की सार्थक भागेदारी को संस्थागत बनाया जाना चाहिए."

उन्होंने ज़ोर देते हुए कहा कि "भूमि क्षरण पर प्रभावी ढंग से ध्यान देने और स्थायी भूमि प्रबन्धन व बहाली को बढ़ावा देने वाली नीतियों को आकार देने के लिए, उन सभी की अन्तर्दृष्टि और निजी अनुभव महत्वपूर्ण हैं."

सम्मेलन 13 दिसम्बर तक चलेगा जिस दौरान 2 सप्ताह की अवधि में, प्रतिनिधि गण इन परिणामों की ओर बढ़ने के दौरान कुछ गहन चर्चाएँ और वार्ताएँ करेंगे:

  • क्षरित भूमि की बहाली में 2030 तक और उससे आगे भी तेज़ी लाना
  • सूखा, रेत और धूल के तूफ़ानों के प्रति सहनशीलता बढ़ाना
  • मिट्टी के स्वास्थ्य को बहाल करना और प्रकृति-सकारात्मक खाद्य उत्पादन को बढ़ाना
  • भूमि अधिकारों को सुरक्षित करना और स्थायी भूमि प्रबन्धन के लिए समानता को बढ़ावा देना
  • यह सुनिश्चित करना कि भूमि, जलवायु और जैव विविधता समाधान प्रदान करना जारी रखे
  • युवाओं के लिए अच्छे पारिश्रमिक और परिस्थितियों वाले भूमि-आधारित रोज़गारों सहित आर्थिक अवसरों को खोले

कुछ अहम तथ्य: संयुक्त राष्ट्र और मरुस्थलीकरण

तीन दशक पहले, 1994 में, 196 देशों और यूरोपीय संघ ने, मरुस्थलीकरण से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन या UNCCD पर हस्ताक्षर किए थे.

पक्षों का सम्मेलन या COP, UNCCD की निर्णय लेने वाली मुख्य संस्था है.

UNCCD भूमि के लिए वैश्विक आवाज़ है जहाँ सरकारें, व्यवसाय और नागरिक समाज चुनौतियों पर चर्चा करने और भूमि के लिए एक स्थाई भविष्य की रूपरेखा तैयार करने के लिए एक मंच पर आते हैं.

COP की यह 16वीं बैठक, 2-13 दिसम्बर को सऊदी अरब के रियाद में हो रही है.

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Amalendu Upadhyaya
वेबसाइट संचालक अमलेन्दु उपाध्याय 30 वर्ष से अधिक अनुभव वाले वरिष्ठ पत्रकार और जाने माने राजनैतिक विश्लेषक हैं। वह पर्यावरण, अंतर्राष्ट्रीय राजनीति, युवा, खेल, कानून, स्वास्थ्य, समसामयिकी, राजनीति इत्यादि पर लिखते रहे हैं।