महिला हिंसा समाप्ति पर मंडरा रहा अधिकार-विरोधी ताकतों का खतरा: क्या है इसका प्रभाव? | International Day for the Elimination of Violence against Women

महिला हिंसा समाप्त करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस पर, असुरक्षित गर्भपात और जेंडर समानता के खिलाफ बढ़ती अधिकार-विरोधी ताकतों का खतरा। जानिए कैसे इन ताकतों से महिला अधिकारों को खतरा हो सकता है।
Facts and figures: Ending violence against women
Photo with courtesy https://www.unwomen.org/ 


महिला हिंसा समाप्ति के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस का महत्व

महिला हिंसा समाप्ति पर मंडरा रहा अधिकार-विरोधी ताकतों का खतरा

25 नवंबर: महिला हिंसा को समाप्त करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस (International Day for the Elimination of Violence against Women in Hindi)

International Day for the Elimination of Violence against Women in Hindi

International Day for the Elimination of Violence against Women in Hindi



25 साल पहले सभी देशों ने 25 नवंबर को महिलाओं के विरुद्ध हो रही सभी प्रकार की हिंसा को समाप्त करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस मनाने का निर्णय लिया। परंतु अधिकार-विरोधी ताकतों के बढ़ते खतरे के चलते, जेंडर हिंसा और ग़ैर-बराबरी की ओर प्रगति ख़तरे में पड़ रही है।

महिला हिंसा के आँकड़े और उनके प्रभाव

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, विश्व की लगभग एक-तिहाई (73.6 करोड़) महिलाएँ जो 15 साल से ऊपर हैं, अपने जीवन में किसी-न-किसी रूप की महिला हिंसा का शिकार हो चुकी होती हैं – इसमें यौनिक हिंसा शामिल नहीं है। अधिकांश हिंसा करने वाले लोग या तो उनके पति होते हैं, या पूर्व पति या सुपरिचित व्यक्ति। 26% महिलाएँ जो 15 साल से अधिक उम्र की हैं, उन्होंने महिला हिंसा किसी सुपरिचित व्यक्ति के कारण झेली है।

2022 में, विश्व में 48,800 लड़कियों और महिलाओं की हत्या उनके सुपरिचित व्यक्ति (जिसमें परिवार के सदस्य भी शामिल हैं) के कारण हुई। किसी सुपरिचित व्यक्ति (जिसमें परिवार शामिल है) हर घंटे पाँच महिलाएँ/ लड़कियां मृत होती हैं। तुलना के लिए, 55% महिलाएँ और 12% पुरुष की हत्या सुपरिचित लोगों के करण हुई।

जेंडर समानता का वादा निभाओ

हमारी सरकारों ने अनेक वैश्विक संधिओं, समझौतों और घोषणापत्रों को पारित किया है जिसमें क़ानूनी-रूप से बाध्य “सीडॉ” संधि, संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य आदि शामिल हैं। अनेक देश के क़ानून भी जेंडर समानता का समर्थन करते हैं।

अधिकार-विरोधी ताकतों का बढ़ता खतरा और महिला अधिकारों पर असर

2022 में, विश्व में सिर्फ़ 14% लड़कियां और महिलाएँ ऐसे देश में रह रही थीं जहाँ महिलाओं के मौलिक मानवाधिकारों को क़ानूनी सुरक्षा प्राप्त है।

60% से अधिक देशों में सहमति के सिद्धांत पर आधारित बलात्कार विरोधी क़ानून नहीं है। 139 देशों में बाल विवाह तक के विरोध में क़ानून नहीं है।

एक आशा की किरण उन देशों से मिलती है जहाँ घरेलू हिंसा क़ानून हैं क्योंकि वहाँ सुपरिचित व्यक्तियों (जिसमें परिवार शामिल है) द्वारा हिंसा दर कम है (9.5%) – उन देशों की तुलना में जहाँ ऐसा क़ानून नहीं है (16.1%).

सुरक्षित गर्भपात और महिला स्वास्थ्य अधिकारों की सुरक्षा

यदि सरकारों को सतत विकास लक्ष्यों के वादे पर खरा उतरना है तो महिला हिंसा को समाप्त करना आवश्यक है। सरकारों को लैंगिक और यौनिक असमानता समाप्त करने के प्रयासों को अनेक खतरों से बचाना होगा, जिसमें अधिकार-विरोधी जेनेवा कंसेंसस डिक्लेरेशन शामिल है। अधिकार-विरोधी जेनेवा कंसेंसस डिक्लेरेशन महिला अधिकार से उल्टी बात करता है जैसे कि सुरक्षित गर्भपात के विरोध की बात।

जेनेवा कंसेंसस डिक्लेरेशन: महिला अधिकारों के खिलाफ एक चुनौती

शी एंड राइट्स की संयोजक शोभा शुक्ला का कहना है कि सुरक्षित गर्भपात का अधिकार एक लंबे समय से ज़रूरतमंद महिलाओं के लिए एक संघर्ष बना हुआ है। यह महिलाओं का मौलिक अधिकार है कि उनको बच्चे करने हैं या नहीं और यदि करने हैं तो कब। यह अधिकार उनसे छीन लेने से हम लड़कियों और महिलाओं के ऊपर हिंसा का खतरा बढ़ा देते हैं जिसमें असुरक्षित गर्भपात का ख़तरा भी शामिल है – जो जानलेवा हो सकता है।

सरकारों को महिला हिंसा समाप्ति के लिए क्या कदम उठाने चाहिए?

मेनका गौंडन, जो एरो मलेशिया में कार्यरत हैं, का कहना है कि सितंबर 2024 में, संयुक्त राष्ट महासभा में 30 देशों से अधिक ने “पैक्ट फॉर फ्यूचर” अपनाया परंतु यह वही 30 देश हैं जिन्होंने अधिकार-विरोधी जेनेवा कंसेंसस डिक्लेरेशन को भी अपना रखा है। एक ओर यह देश सतत विकास और जेंडर समानता की बात करते हैं और दूसरी ओर अधिकार विरोधी जेनेवा कंसेंसस डिक्लेरेशन का समर्थन।

अफ़्रीका के केन्या देश के उच्च न्यायालय की अधिवक्ता कवुठा मुतुआ ने कहा कि “विरोधाभासी नीतियाँ, जैसे कि, जिनेवा कंसेंसस डिक्लेरेशन उन मौलिक अधिकारों का विरोध करता है जो देश के कानून में निहित हैं। उदाहरण के लिए केन्या देश में, सुरक्षित गर्भपात एक संवैधानिक अधिकार है, परंतु अधिकार-विरोधी जेनेवा कंसेंसस डिक्लेरेशन इसके विपरीत बात करता है। हमें लड़कियों और महिलाओं के लिए सुरक्षित गर्भपात के विकल्प और सभी गर्भ-निरोधक को अधिकार-स्वरूप उपलब्ध करवाना होगा।

नेपाल के मेरिज स्टोप्स इंटरनेशनल के अध्यक्ष तुषार निरौला ने कहा कि दकियानूसी जिनेवा कंसेंसस डिक्लेरेशन महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य अधिकार के विरोध में अत्यंत दमनकारी प्रयास है। यह जेनेवा कंसेंसस डिक्लेरेशन, काग़ज़ पर ‘महिला स्वास्थ्य और अधिकार’ के चोंगे में दकियानूसी बात करता है – न वह महिला स्वास्थ्य के पक्षधार है और न ही महिला अधिकार के। ग़नीमत है कि नेपाल में अत्यंत प्रगतिशील सुरक्षित गर्भपात क़ानून है परंतु जिनेवा कंसेंसस डिक्लेरेशन का खतरा मंडरा रहा है जिसका नकारात्मक प्रभाव हो सकता है। बढ़ते अधिकार-विरोधी ताकतों का असर भी पड़ सकता है।

भारतीय परिवार नियोजन संस्था (फ़ैमिली प्लानिंग एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया) की अध्यक्ष प्रोफेसर (डॉ) रत्नमाला देसाई ने कहा कि विश्व-व्यापी अधिकार-विरोधी मुहिम जोड़ पकड़ रही है और राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक वैधता छीन रही है – जिसका विपरीत असर सुरक्षित गर्भपात के अधिकार पर पड़ रहा है।

नेपाल के तुषार निरौला का कहना है कि जिन देशों ने जेनेवा कंसेंसस डिक्लेरेशन पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं वह भी सजग और सचेत रहें क्योंकि इसके कारण अधिकार-विरोधी ताक़तें बल पा रही हैं जो महिला अधिकार के लिए खतरा बन सकता है।

एशिया सेफ एबॉर्शन पार्टनरशिप (सुरक्षित गर्भपात के लिए एशियन क्षेत्र में साझेदारी) की अध्यक्ष डॉ सुचित्रा दलवी कहती हैं कि महिला अधिकारों पर हो रहे सभी कार्यों को हमें सभी खतरों से बचाना होगा, जिनमें जिनेवा कंसेंसस डिक्लेरेशन जैसे दकियानूसी पहल शामिल हैं। जिन देशों में सुरक्षित गर्भपात का क़ानूनी अधिकार है, वह पलट सकता है। इसीलिए ज़रूरत है हम सब एक जुट हो कर महिला अधिकार पर हो रहे कार्य को शक्ति दें और विरोधी ताकतों से बचायें।

संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि सार्वजनिक क्षेत्र में महिला सुरक्षा, ख़ासकर कि, राजनीति और पत्रकारिता के क्षेत्र में एक चुनौती बन रहा है।

हर 10 मिनट में, 2023 में, किसी सुपरिचित व्यक्ति (जिसमें परिवार शामिल है) ने, किसी एक महिला को मृत किया है। जेंडर-आधारित हिंसा एक विकराल चुनौती है।

शोभा शुक्ला – सीएनएस 

(शोभा शुक्ला, लखनऊ के लोरेटो कॉलेज की भौतिक विज्ञान की सेवा-निवृत्त वरिष्ठ शिक्षिका रहीं हैं और सीएनएस (सिटिज़न न्यूज़ सर्विस) की संस्थापिका-संपादिका हैं।)
Every 10 minutes, a woman is killed. #NoExcuse
UNiTE to End Violence Against Women

क्या आप जानते हैं?

  • विश्व स्तर पर, अनुमानित 736 मिलियन महिलाओं ने शारीरिक और/या यौन हिंसा का अनुभव किया है। लड़कियों को हिंसा का विशेष जोखिम होता है - 4 में से 1 किशोर लड़की अपने साथी द्वारा दुर्व्यवहार का शिकार होती है।
  • विश्व स्तर पर 16% से 58% महिलाएँ प्रौद्योगिकी-सहायता प्राप्त लिंग-आधारित हिंसा का अनुभव करती हैं। जेनरेशन Z और मिलेनियल्स सबसे अधिक प्रभावित हैं।
  • संघर्ष, युद्ध और मानवीय संकट में 70% महिलाएँ लिंग-आधारित हिंसा का अनुभव करती हैं।
  • विश्व स्तर पर, आठ साल पहले के आंकड़ों की तुलना में महिला जननांग विकृति में 15% की वृद्धि हुई है।
Source: More data from UN Women

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Amalendu Upadhyaya
वेबसाइट संचालक अमलेन्दु उपाध्याय 30 वर्ष से अधिक अनुभव वाले वरिष्ठ पत्रकार और जाने माने राजनैतिक विश्लेषक हैं। वह पर्यावरण, अंतर्राष्ट्रीय राजनीति, युवा, खेल, कानून, स्वास्थ्य, समसामयिकी, राजनीति इत्यादि पर लिखते रहे हैं।