Why should we celebrate Postal Day? क्यों मनाना चाहिए डाक दिवस? - डाक विभाग की संकट स्थिति पर एक नजर

क्या डाक विभाग की मृत अवस्था को लेकर मनाना चाहिए डाक दिवस?


डाक दिवस पर विचार: आज के समय में डाक विभाग की स्थिति बिगड़ चुकी है। पढ़िए क्यों डाक विभाग का कमजोर होना देश के पत्र-पत्रिकाओं और आम जनता के लिए गंभीर चिंता का विषय बन गया है।
Why should we celebrate Postal Day?



डाक दिवस की ऐतिहासिक और वर्तमान स्थिति


डाक विभाग का गौरवशाली अतीत


क्यों मनाएं हम डाक दिवस?


- एल. एस. हरदेनिया (वरिष्ठ पत्रकार)


कल (9 अक्टूबर) डाक दिवस था। परंतु क्या हम डाक दिवस मनाने की स्थिति में हैं? यदि सरकार का कोई विभाग सबसे ज्यादा खस्ता हालत में है तो वह डाक विभाग है। डाक विभाग को जो मुख्य काम सौंपा गया है वह है पत्रों का वितरण। 

एक समय ऐसा था जब पत्र ही एक-दूसरे से संपर्क का मुख्य माध्यम था। डाक के माध्यम से ही सरकार का सारा कामकाज चलता था। पत्रों से ही आगमन की सूचना दी जाती थी। पत्र से ही बीमारी, मृत्यु, विवाह, तेरहवीं आदि की सूचना दी जाती थी। यहां तक कि दो प्रेमियों के बीच संदेशों के आदान-प्रदान का माध्यम भी पत्र ही होता था। यदि आपको अपना संदेश जल्दी से पहुंचाना होता था तो इसके लिए एक्सप्रेस डेलीवरी की व्यवस्था होती थी। यदि आपका पत्र ऐसा है जिसके पहुंचने का सबूत रखना जरूरी है तो उसे रजिस्ट्री से भेजा जाता है। 

डाक विभाग का आर्थिक प्रभाव

लाखों विद्यार्थी मनीआर्डर के माध्यम से अपना पढ़ाई का खर्च पाते थे। गांवों में रहने वाले शहरों में काम करने वाले अपने पुत्रों से रकम भी मनीआर्डर से ही प्राप्त करते थे। पत्रों की तीन श्रेणी हुआ करती थीं - गरीबों के लिए पोस्ट कार्ड, मध्यम वर्ग के लिए एक्सप्रेस डिलेवरी और संपन्न वर्गों के लिए व ज्यादा जानकारी देने के लिए लिफाफे।

न केवल डाक बल्कि डाकघर सबसे बड़ा बैंक नेटवर्क भी हुआ करते थे।

गांव-खेड़ों में डाकिये का उत्सुकता से इंतजार रहता था। गांवों में पार्टटाईम डाकिया जाता था और पार्टटाईम पोस्ट मास्टर रहता था। जहां स्कूल होते थे वहां स्कूल के एक शिक्षक को पोस्ट आफिस की जिम्मेदारी दे दी जाती थी।

डाक विभाग के संकट के कारण

धीरे-धीरे कोरियर का प्रचलन होने लगा। कोरियर बड़ा व्यापार बन गया। डाक विभाग के अधिकारी पोस्टल नेटवर्क को कमजोर करने लगे। रिटायरमेंट के बाद पोस्टल अधिकारी कोरियर कंपनियों से जुड़ने लगे।

डाक विभाग के कमजोर होने का सबसे अधिक खामियाजा पत्र-पत्रिकाओं को भुगतना पड़ा। पत्र-पत्रिकाओं की आय भी डाक विभाग पर निर्भर रहती है। पत्र-पत्रिकाएं 15-20 दिनों के अंतराल में अपने गंतव्य तक पहुंच पाते हैं। पत्र-पत्रिकाओं को कोरियर से भेजना महंगा पड़ता है अतः आज भी वे पूरी तरह से डाक विभाग पर निर्भर हैं। परंतु इनके गंतव्य स्थान तक पहुंचने में इतनी देरी हो जाती है कि अनेक पत्र-पत्रिकाएं अपना प्रकाशन बंद करने पर मजबूर हो गए हैं।

एक जमाना था जब डाक-तार विभाग के कर्मचारियों की यूनियनें बहुत ताकतवर हुआ करती थीं। शायद रेलवे के बाद इनकी यूनियन ही सबसे शक्तिशाली होती थी। अब वैसी स्थिति नहीं है।

इसलिए आज के डाक दिवस को लगभग डाक मृत्यु दिवस के रूप में मनाने की इच्छा होती है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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Amalendu Upadhyaya
वेबसाइट संचालक अमलेन्दु उपाध्याय 30 वर्ष से अधिक अनुभव वाले वरिष्ठ पत्रकार और जाने माने राजनैतिक विश्लेषक हैं। वह पर्यावरण, अंतर्राष्ट्रीय राजनीति, युवा, खेल, कानून, स्वास्थ्य, समसामयिकी, राजनीति इत्यादि पर लिखते रहे हैं।