उम्बर्तो इको की सरलता और सहजता: सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन में सामंजस्य की आवश्यकता | The simplicity and spontaneity of Umberto Eco
· जीवन के जटिलताओं से समाधान: सहजता और सामंजस्य
· सरल जीवन के मार्ग पर: उम्बर्तो इको के उदाहरण से सीख
· निजी इच्छाओं और सामाजिक मंगल के बीच सामंजस्य
Umberto Eco's Simplicity and Spontaneity: The Need for Harmony in Social and Individual Life |
उम्बर्तो इको को देखने के बाद
सामान्यतः यह माना जाता है कि मनुष्य सहज प्राणी है। लेकिन आचरण में यह चीज बहुत कम नजर आती है। हम यदि अपने पुराण-उपनिषद आदि को देखें तो वहां सहज जीवन और सहज स्वभाव का आधिक्य मिलेगा।सहज स्वभाव हमारे धर्म की आत्मा है। यह ऐसी आत्मा है जिसे वस्तुओं के प्रेम, आडम्बर, यश की कामना, सामाजिक हैसियत आदि अर्जित नहीं कर सकते। यह प्रदर्शन की चीज नहीं है। सहज जीना, स्वस्थ सामाजिक विकास का लक्षण है। यदि हमारा जीवन असहज हो रहा है, जटिल बन रहा है तो इसका प्रधान कारण है हमारे जीवन की अवस्था के साथ जीवन का अंतर्विरोध।
हम सामाजिक अंतर्विरोधों पर बातें करते समय राजनीतिक—आर्थिक अंतर्विरोधों पर बहुत ध्यान देते हैं, लेकिन जीवन और समाज के बीच बन रहे अंतर्विरोध, सरल और जटिल जीवन के बीच पैदा हो रहे अंतर्विरोध की आमतौर पर चर्चा नहीं करते। इससे हमारी समूची जीवनशैली सुखकी बजाय दुख देने लगी है।
सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन में सरलता की भूमिका
सहज जीवन के महत्व पर महात्मा बुद्ध और गांधी की दृष्टि
महात्मा बुद्ध, ईसा मसीह, महात्मा गांधी के जीवन को महान बनाने में उनकी सहज क्रियाओं और सहज-सरल मन की निर्णायक भूमिका थी। सहजता कोई फालतू तत्व नहीं है। वह कोई संयासियों और मूर्खों की चीज नहीं है। सरल को हम आमतौर पर मूर्ख मानकर चलते हैं। बोलते भी बड़े सरल हैं, मूर्ख भी हैं, चीजें समझते नहीं हैं। चालाकी, धूर्तता, तिकड़म आदि की इसकी तुलना में मूल्यवान समझते हैं। जो चालाक है-चतुर है वह दुनियादार है, उसकी आए दिन सफलताओं की चर्चा करते नहीं अघाते।
उपनिषद और सहज जीवन: एक गहरे संबंध की ओर
'स्वाभाविकी ज्ञानवल क्रिया च' - सरलता का आदर्श
हमारे उपनिषद का सुंदर कथन है ´स्वाभाविकी ज्ञानवल क्रिया च।´ यानी उस एक की ही ज्ञान क्रिया और बल क्रिया स्वाभाविक है। यानी हमारी इच्छा का मंगल-इच्छा से जब सामंजस्य हो जाता है तो सारी क्रियाएं सहज हो जाती हैं। उसके बाद अहंकार हमें धकेलता नहीं है। सामाजिक गुटबंदी, यश की कामना, किसी तरह का उत्पीड़न आदि हमारी इच्छाओं को धकेलता नहीं है। सामाजिक विकास के क्रम में हमारी इच्छाएं प्रबल होती गयी है लेकिन मंगल-इच्छा के साथ निजी इच्छाओं के सामंजस्य को हम भूल गए, फलतःहमारे जीवन में जटिलताओं ने जन्म ले लिया है। मसलन्, हमारी इच्छा है कि दीपावली पर पटाखे चलाएं लेकिन इसका सामाजिक मंगल के साथ टकराव है, इसे हम अनदेखी कर रहे हैं। व्यक्ति की निजी इच्छा और सामाजिक मंगलइच्छा इन दोनों के बीच में सामंजस्य से ही ज्ञानबल और क्रियाबल की अभिव्यक्ति होती है। जो आदेश हमारी निजी इच्छा को सामाजिक मंगल की इच्छा से जोड़ते हैं वे हमें इन दिनों अच्छे नहीं लगते।
हम ज्ञान में पिछड़े क्यों क्योंकि हम स्वाभाविक नहीं रहे, सरल नहीं रहे। हमारे यहां सब कुछ जटिल है, तामझाम से युक्त है। मंगल इच्छा से संचालित नहीं है।
उम्बर्तो इको की दिल्ली यात्रा और उनकी सहजता
कुछ साल पहले की घटना है इटली के प्रधान मार्क्सवादी और विश्व के जीवित सबसे बड़े बुद्धिजीवी उम्ब्रेतो इको दिल्ली आए थे।
उम्ब्रेतो इको की सादगी, सरलता और सज्जनता देखने लायक थी। मैं कोलकता से चलकर उनके दिल्ली व्याख्यान को सुनने आया था। उनका जेएनयू में भी कार्यक्रम था, उन्होंने जेएनयू में ´टेस्ट´ या ´अभिरूचि´ के सवाल पर बहुत सुंदर व्याख्यान दिया, इसके लिए उन्होंने भरत के रस सिद्धांत को आधार बनाया था और अभिनव गुप्त-आनंदवर्द्धन की मदद ली। दिलचस्प बात यह थी कि इको कार्यक्रम शुरू होने के समय आ चुके थे, लेकिन बाहर कहीं बैठकर कॉफी पी रहे थे किसी ने उनसे कहा कि लोग सुनने आ गए हैं वे तुरंत कॉफी लेकर हॉल में चले आए और कॉफी का कप हाथ में लिए मंच पर चढ़ने वाली चीढ़ियों पर सहज भाव से बैठ गए और आराम से उन्होंने पहले कॉफी पी। उनकी इस सहजता को देखकर सभी लोग मंत्रमुग्ध थे।
दिलचस्प बात थी कि हॉल में उपस्थिति अधिकांश अंग्रेजीदां लोग भरत-आनंदवर्द्धन-अभिनवगुप्त आदि के नाम तक से अपरिचित थे। अनेक फैकल्टी मेम्बर एक-दूसरे से पूछ रहे थे कि आनंदवर्द्धन कौन हैं, अभिनव गुप्त कौन हैं ॽ पहली बार मुझे बड़ा झटका लगा कि जिस जेएनयू पर हम गर्व करते हैं वहां अनेक ऐसे भी विद्वान हैं जो आनंदवर्द्धन के नाम तक को नहीं जानते।
प्रोफेसर जगदीश्वर चतुर्वेदी
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