2023 में पोलियो प्रभावित 85% बच्चे संघर्ष क्षेत्रों से: UNICEF की चिंताजनक रिपोर्ट | World Polio Day

UNICEF की चेतावनी: युद्ध और टकराव बच्चों की सुरक्षा में बाधा

स्वास्थ्य संकट के नतीजे: टीकाकरण कवरेज में गिरावट

संघर्ष क्षेत्रों में पोलियो की पुनरावृत्ति


  • संघर्ष प्रभावित देशों की स्थिति
  • ग़ाज़ा में पोलियो टीकाकरण अभियान
  • मानवीय युद्धविराम की ज़रूरत

UNICEF का आह्वान : पोलियो उन्मूलन के लिए त्वरित कदम


UNICEF की रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि 2023 में 85% पोलियो प्रभावित बच्चे संघर्षग्रस्त इलाकों से हैं। युद्ध, टकराव, और मानवीय संकटों के कारण टीकाकरण कवरेज घटकर 70% रह गई है, जो पोलियो जैसी गंभीर बीमारियों के पुनरुत्थान का कारण बन रही है। विश्व पोलियो दिवस (World Polio Day) पर UNICEF ने वैश्विक टीकाकरण की आवश्यकता पर ज़ोर दिया है। विश्व हर वर्ष 24 अक्टूबर को विश्व पोलियो दिवस मनाता है, जो जोनास साल्क (Jonas Salk) का जन्म दिवस है, जिन्होंने पोलियोमाइलाइटिस (poliomyelitis) के खिलाफ टीका विकसित करने वाली पहली टीम का नेतृत्व किया था। पढ़ें संयुक्त राष्ट्र समाचार की यह ख़बर
2023 में पोलियो प्रभावित 85% बच्चे संघर्ष क्षेत्रों से: UNICEF की चिंताजनक रिपोर्ट
2023 में पोलियो प्रभावित 85% बच्चे संघर्ष क्षेत्रों से: UNICEF की चिंताजनक रिपोर्ट



2023 में, पोलियो प्रभावित 85% बच्चे, टकराव वाले क्षेत्रों से: UNICEF


युद्धों व टकरावों, प्राकृतिक आपदाओं और मानवीय संकटों का सामना कर रहे देश, बच्चों को नियमित वैक्सीन देने में कठिनाई का सामना कर रहे हैं. इससे पोलियो जैसी ख़तरनाक बीमारियाँ दोबारा सर उठाने लगी हैं, जिससे कई बच्चे जोखिम में पड़ गए हैं.

विश्व पोलियो (निरोधक) दिवस के अवसर पर, यूनीसेफ़ ने एक गम्भीर चेतावनी जारी करते हुए कहा कि पिछले पाँच वर्षों में संघर्ष प्रभावित देशों में पोलियो के मामलों में दोगुने से अधिक की वृद्धि हुई है.

यूनीसेफ़ का कहना है कि 2023 में पोलियो से प्रभावित 85 प्रतिशत बच्चे इन्हीं क्षेत्रों से आते हैं.

UNICEF की कार्यकारी निदेशक कैथरीन रसैल ने कहा है, “युद्धों व टकरावों के हालात में बच्चों को केवल बम और गोलीबारी का सामना नहीं करना पड़ता; उन्हें ऐसी घातक बीमारियाँ होने का जोखिम भी होता है, जिनका पूर्ण उन्मूलन हो चुका है.”

एजेंसी के नवीनतम विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि टीकाकरण कवरेज, 75 प्रतिशत से घटकर 70 प्रतिशत रह गई है, जो सामुदायिक प्रतिरक्षा प्राप्त करने के लिए आवश्यक 95 प्रतिशत से बहुत नीचे है.

उन्होंने कहा, "हम अनेक देशों में स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों का पतन होते देख रहे हैं. जल और स्वच्छता के बुनियादी ढाँचे नष्ट हुए हैं, और परिवार विस्थापित हुए हैं, जिससे पोलियो जैसी बीमारियाँ फिर से सर उठा रही हैं."

टकराव वाले देशों पर असर

पोलियो का सबसे अधिक फैलाव, संघर्ष प्रभावित इलाक़ों में देखा गया है. वर्तमान में, पोलियो को ख़त्म करने की कोशिश कर रहे 21 में से 15 देश, नाज़ुक या संघर्ष प्रभावित हैं, जिनमें अफ़ग़ानिस्तान, काँगो लोकतांत्रिक गणराज्य, सोमालिया, दक्षिण सूडान, और यमन शामिल हैं.

25 वर्षों में पहली बार पोलियो की वापसी का सामना कर रहे ग़ाज़ा में यूनीसेफ़ और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने सितम्बर में एक आपातकालीन पोलियो टीकाकरण अभियान शुरू किया.

इसके तहत, 10 साल से कम उम्र के लगभग 6 लाख बच्चों को पोलियो वैक्सीन की ख़ुराकें पिलाई गईं. हालाँकि, बमबारी की नवीनतम घटनाओं और सामूहिक विस्थापन के कारण अभियान पूरा नहीं हो पाया है, और उत्तरी ग़ाज़ा में फिलहाल इसे रोक दिया है.

मानवीय युद्ध ठहराव आवश्यक


यूनीसेफ़ की रिपोर्ट में इस बात पर बल दिया गया है कि संघर्ष प्रभावित देशों में पोलियो टीकाकरण अभियानों की सफलता के लिए, मानवीय युद्धविराम आवश्यक है, ताकि स्वास्थ्यकर्मी सुरक्षित रूप से प्रभावित समुदायों तक पहुँच सकें.

UNICEF द्वारा सालाना एक अरब से अधिक पोलियो टीकों की आपूर्ति की जाती है. यूनीसेफ़ ने, सरकारों और अन्तरराष्ट्रीय साझीदारों से इस बीमारी के प्रसार को रोकने के लिए त्वरित कार्रवाई करने का आहवान किया है.

'आख़िरी चरण'

कैथरीन रसेल ने कहा, "पोलियो का प्रसार न केवल प्रभावित देशों में बच्चों को तत्काल जोखिम में डालता है, बल्कि पड़ोसी देशों के लिए भी एक बढ़ता हुआ ख़तरा बनता जा रहा है."

"अन्तिम चरण सबसे कठिन होता है, लेकिन कार्रवाई का समय यही है. जब तक हर बच्चा, दुनिया के हर कोने में, पोलियो से सुरक्षित नहीं हो जाता, तब तक हम आराम से नहीं बैठ सकते."

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Amalendu Upadhyaya
वेबसाइट संचालक अमलेन्दु उपाध्याय 30 वर्ष से अधिक अनुभव वाले वरिष्ठ पत्रकार और जाने माने राजनैतिक विश्लेषक हैं। वह पर्यावरण, अंतर्राष्ट्रीय राजनीति, युवा, खेल, कानून, स्वास्थ्य, समसामयिकी, राजनीति इत्यादि पर लिखते रहे हैं।