डॉ. भगवान दास और राजनारायण बोस : 18 सितंबर को अलविदा कहने वाली विभूतियां

18 सितंबर को, भारत डॉ. भगवान दास और राजनारायण बोस को श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा है। जानिए कैसे इन महान हस्तियों ने हिंदी और बांग्ला साहित्य, शिक्षा, और समाज सुधार में योगदान दिया।
डॉ. भगवान दास और राजनारायण बोस : 18 सितंबर को अलविदा कहने वाली विभूतियां
Dr. Bhagwan Das and Rajnarayan Bose: Personalities who said goodbye on September 18



नई दिल्ली, 17 सितंबर 2024. काशी ने देश को कई महान रत्न दिए हैं। उन्हीं में से एक डॉ. भगवान दास भी थे। ये नाम किसी पहचान का मोहताज नहीं। प्रसिद्ध विद्वान और समाज सुधारक डॉ. भगवान दास भारत रत्न पुरस्कार के पहले प्राप्तकर्ता थे।

डॉ. भगवान दास ने कौन सी भाषाएँ पढ़ीं?


डॉ. भगवान दास ने अंग्रेजी, हिंदी, अरबी, उर्दू, संस्कृत, फारसी, और ना जाने कितनी अन्य भाषाओं में उन्होंने गहन अध्ययन किया।

काशी के इस महान व्यक्ति को देश का पहला भारत रत्न होने का गौरव प्राप्त है। वहीं, राजनारायण बोस बांग्ला भाषा के प्रसिद्ध लेखक थे। उनका नाम भी इतिहास के पन्नों में सुनहरे अक्षरों में दर्ज है। उनकी लेखनी में एक अलग जादू था। वे एक उत्साही लेखक, शिक्षाविद्, साहित्यकार, सुधारक और राष्ट्रवादी थे।

डॉ. भगवान दास: भारत रत्न और हिंदी-विद्या के समर्पित सेवक


डॉ. भगवान दास और राजनारायण बोस की 18 सितंबर को पुण्यतिथि है। इस खास अवसर पर एक नजर उनकी उपलब्धियों पर डालते हैं।

डॉ. भगवान दास का जीवन और उपलब्धियाँ


डॉ. भगवान दास का जन्म 12 जनवरी 1869 को वाराणसी में हुआ था। वह 'भारत रत्न' से सम्मानित स्वतंत्रता सेनानी, नेता, समाजसेवी और शिक्षा शास्त्री थे। उन्हें देश की भाषा-संस्कृति को सुरक्षित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले, स्वतंत्र और शिक्षित भारत के मुख्य संस्थापकों में गिना जाता है। काशी के इस महान सपूत को देश का पहला भारत रत्न होने का गौरव भी प्राप्त है। उनके अध्ययन और लेखन की दीवानगी जगजाहिर है। साथ ही उनसे जुड़ा एक बड़ा दिलचस्प किस्सा भी है।

दरअसल, वर्ष 1955 में 'भारत रत्न' की उपाधि देने के बाद तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने प्रोटोकॉल तोड़ते हुए उनके पैर छूकर आशीर्वाद लिए थे। जब इस पर सवाल उठे तो राजेंद्र प्रसाद ने कहा था कि राष्ट्रपति होने के कारण भगवान दास को 'भारत रत्न' दिया और सामान्य नागरिक होने के नाते पैर छूकर आशीर्वाद लिया। उनका व्यक्तित्व, देश के प्रति निष्ठा इस हद तक थी कि राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री भी उन्हें नमन करते थे। कई वर्षों तक वह विधानसभा के सदस्य रहे। वह हिंदी के प्रति अनुराग के कारण कई साहित्यिक संस्थाओं से भी जुड़े रहे।

डॉ. भगवान दास ने हिंदी और संस्कृत भाषा में 30 से भी अधिक पुस्तकों का लेखन किया। साल 1953 में भारतीय दर्शन पर उनकी अंतिम पुस्तक प्रकाशित हुई। भारत रत्न मिलने के कुछ वर्षों बाद 18 सितंबर 1958 में उनका निधन हो गया। आज भले ही वो हमारे बीच नहीं हैं, किंतु भारतीय दर्शन, धर्म और शिक्षा पर किया गया कार्य सदैव हमारे साथ रहेगा।

राजनारायण बोस: बांग्ला साहित्य में एक महत्वपूर्ण नाम


वहीं, राजनारायण बोस भी एक प्रतिभाशाली छात्र रहे। उनका जन्म 7 सितंबर 1826 को हुआ था। इनके पिता का नाम नंद किशोर बसु था, जो कि राजा राममोहन राय के शिष्य थे। वे बांग्ला भाषा के प्रसिद्ध लेखक और बंगाली पुनर्जागरण के चिंतकों में से एक थे।

राजनारायण बोस जिस समूह के सदस्य थे उसका नाम क्या था?

यंग बंगाल के सदस्य के रूप में , राजनारायण बोस जमीनी स्तर पर 'राष्ट्र निर्माण' में विश्वास करते थे।

राजनारायण बोस की पुस्तकें

उनकी मुख्य रचनाएं 'हिन्दु धर्मेर श्रेष्ठता', 'सेकाल आर एकाल', 'सारधर्म', 'ताम्बुलोप हार', 'बृद्ध हिन्दुर आशा' आदि थी। उन्हें बांग्ला साहित्यकार के रूप में बड़ी पहचान मिली थी। उनका निधन 18 सितंबर 1899 में हुआ था।

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Amalendu Upadhyaya
वेबसाइट संचालक अमलेन्दु उपाध्याय 30 वर्ष से अधिक अनुभव वाले वरिष्ठ पत्रकार और जाने माने राजनैतिक विश्लेषक हैं। वह पर्यावरण, अंतर्राष्ट्रीय राजनीति, युवा, खेल, कानून, स्वास्थ्य, समसामयिकी, राजनीति इत्यादि पर लिखते रहे हैं।