जलवायु परिवर्तन पर आम भारतीयों की प्रतिक्रिया : येल क्लाइमेट ओपीनियन मैप्स फॉर इंडिया
येल क्लाइमेट चेंज कम्युनिकेशन (Yale Climate Change Communication) और सी-वोटर (C-Voter) ने 'येल क्लाइमेट ओपीनियन मैप्स फॉर इंडिया' जारी किया, जो भारत के 34 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में जलवायु परिवर्तन पर आम लोगों की राय को दर्शाता है। इस ऑनलाइन टूल से जानें कि विभिन्न राज्यों में ग्लोबल वार्मिंग के प्रति लोगों की जानकारी, विश्वास और चिंताएं किस प्रकार भिन्न हैं।
नई दिल्ली, 07 अगस्त 2024. येल प्रोग्राम ऑन क्लाइमेट चेंज कम्युनिकेशन ने अपने सहयोगी सी-वोटर के साथ "येल क्लाइमेट ओपीनियन मैप्स फॉर इंडिया" जारी किया है जो एक ऑनलाइन संवादात्मक टूल है और पहली बार भारत के 36 में से 34 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 604 जिलों में जलवायु परिवर्तन के बारे में आम लोगों की प्रतिक्रिया उपलब्ध कराता है।
इसमें देश भर में राज्य और स्थानीय स्तर पर ग्लोबल वार्मिंग के बारे में ज्ञान, आस्थाओं, जोखिम को लेकर धारणाओं और नीति सम्बन्धी प्राथमिकताओं में भिन्नता को दिखाया गया है।
इससे पहले, भारत में जलवायु परिवर्तन को लेकर जन प्रतिक्रियाओं को लेकर किये गये अध्ययनों में केवल राष्ट्रीय स्तर पर ही नतीजे प्राप्त हुए हैं। उदाहरण के लिये, भारत में हमारे हालिया सर्वेक्षण में यह पाया गया है कि देश में बड़ी संख्या में लोग जलवायु परिवर्तन से जुड़ी आपदाओं को लेकर चिंतित हैं, मगर अभी तक हमारे पास देश के अंदर जलवायु सम्बन्धी जनमत की विविधताओं के बारे में बहुत थोड़ी जानकारी ही उपलब्ध है।
उदाहरण के लिये, जहां आंकड़े बताते हैं कि भारत के 41 प्रतिशत लोगों का कहना है कि वे ग्लोबल वार्मिंग के बारे में थोड़ा-बहुत या बहुत कुछ जानते हैं मगर देश के अंदर काफी भौगोलिक विभिन्नता है। गुजरात में 52 प्रतिशत लोग ग्लोबल वार्मिंग के बारे में काफी ज्यादा या थोड़ा-बहुत जानते हैं। वहीं, महाराष्ट्र में सिर्फ 33 फीसद लोग ही इस स्तर की जानकारी रखते हैं। अन्य जिलों के मुकाबले राजधानी के शहरों में ज्यादा संख्या में लोग ग्लोबल वार्मिंग के बारे में काफी ज्यादा या थोड़ा-बहुत जानते हैं।
क्वींसलैंड यूनीवर्सिटी में सीनियर लेक्चरर डॉक्टर जगदीश ठाकेर ने कहा, ‘‘भारत जैसे बड़े और भाषायी विविधता वाले देश में राज्य सरकारें और जिला प्रशासन आम जनता से ज्यादा प्रत्यक्ष रूप से जुड़े हैं और भारत के विकास और जलवायु संरक्षण कार्रवाई लक्ष्यों को हासिल करने में वे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह शोध राज्य स्तरीय और स्थानीय स्तर के नेतृत्वकर्ताओं को अपने समुदायों की जरूरतों और आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए जलवायु परिवर्तन संचार को अनुकूलित करने में मदद कर सकता है।’’
ग्लोबल वार्मिंग की एक छोटी परिभाषा दिये जाने के बाद के विश्लेषण और मानचित्र यह दिखाते हैं कि कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे राज्यों के मुकाबले केरल, गोवा और पंजाब जैसे सूबों के ज्यादा लोग ग्लोबल वार्मिंग से खतरे महसूस करते हैं।
येल स्कूल ऑफ द एनवायरमेंट में ओपीनियन मैप्स से जुड़े मुख्य शोधकर्ता डॉक्टर जेनिफर मार्लोन ने कहा, “स्थानीय स्तर पर जलवायु से जुड़े जनमत नीति बनाने वालों के लिये गेम-चेंजर है। यह उन्हें जलवायु से जुड़े उन प्रभावशाली समाधानों को लागू करने का मौका देते हैं जिन्हें जनता का मजबूत समर्थन प्राप्त होता है।’’
जलवायु परिवर्तन को लेकर जानकारी, विश्वास, जोखिम को लेकर नजरियों और नीति सम्बन्धी सहयोग से भारत और अन्य देशों में नीति बनाने वालों को मदद मिल सकती है। ऐसे में जब भारत के विभिन्न राज्य जलवायु परिवर्तन और नेट जीरो सम्बन्धी लक्ष्यों को लेकर अपनी कार्ययोजनाएं तैयार या अपडेट कर रहे हैं तब जनता को समझना और उसे जोड़ना जलवायु समाधानों को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण होगा।
शोधकर्ताओं में जेनिफर मार्लोन और जगदीश ठाकर के अलावा येल विश्वविद्यालय से एमिली गोडार्ड, एंथनी लीसेरोविट्ज, सेठ रोसेन्थल और जेनिफर कारमन, टेक्सास ए एंड एम फॉरेस्ट सर्विस से लिज़ नेयन्स, नागा रघुवीर मोडाला, डी-कॉप से स्वेता कोल्लुरी और सी-वोटर से यशवंत देशमुख और गौरा शुक्ला शामिल थे।
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