एनर्जी सेक्टर में उगा रिन्यूबल का सूरज: भारत बना बदलाव की रफ्तार, दुनिया में क्लीन एनर्जी का ऐतिहासिक मोड़

सोलर और पवन ऊर्जा ने पूरी की वैश्विक बिजली मांग में बढ़ोतरी

  • भारत की तीन गुना क्लीन ग्रोथ – कोयला और गैस पर कम निर्भरता
  • IEA की रिपोर्ट: 2030 तक अक्षय ऊर्जा में 4,600 GW की छलांग
  • सौर ऊर्जा की क्रांति और पवन ऊर्जा की नई चुनौतियाँ
  • चीन की तेज़ रफ्तार, पश्चिम की सुस्ती
  • ‘फॉसिल पीक’ के बाद का युग – भविष्य की दिशा

भारत के लिए अवसर: ऊर्जा उत्पादन से ऊर्जा नेतृत्व तक

The sun of renewable energy rises in the energy sector: India becomes the driving force of change, a historic turning point in clean energy development globally
The sun of renewable energy rises in the energy sector: India becomes the driving force of change, a historic turning point in clean energy development globally


2025 की पहली छमाही में पहली बार सोलर और पवन ऊर्जा ने वैश्विक बिजली मांग में हुई पूरी वृद्धि को पूरा कर दिया। भारत ने क्लीन एनर्जी ग्रोथ में तीन गुना रफ्तार पकड़ी है। Ember और IEA की रिपोर्टों के अनुसार, यह “ऊर्जा क्रांति” अब वैश्विक वास्तविकता बन चुकी है। पर्यावरणविद् डॉ सीमा जावेद से जानिए कैसे भारत बन रहा है दुनिया का नया ऊर्जा नेता...

एनर्जी सेक्टर में उगा रिन्यूबल का सूरज, भारत बना बदलाव की रफ्तार

दुनिया भर में क्लीन एनर्जी की कहानी अब किसी भविष्यवाणी की तरह नहीं, बल्कि एक वास्तविकता की तरह सामने आ रही है। 2025 की पहली छमाही में पहली बार सोलर और विंड एनर्जी (Solar and wind energy) ने वैश्विक बिजली मांग में हुई पूरी वृद्धि को पूरा कर दिया, जिससे कोयला और गैस आधारित बिजली उत्पादन में मामूली गिरावट आई। यह वही क्षण है जिसे एनर्जी थिंक टैंक Ember “एक ऐतिहासिक मोड़” कह रहा है - जब क्लीन एनर्जी न केवल साथ चल रही है, बल्कि रफ्तार पकड़ चुकी है।

कितनी बढ़ी दुनिया की बिजली मांग

Ember की नई रिपोर्ट बताती है कि जनवरी से जून 2025 के बीच दुनिया की बिजली मांग 2.6% बढ़ी (करीब 369 टेरावॉट-घंटे), लेकिन इस अतिरिक्त मांग को लगभग पूरी तरह सौर और पवन ने पूरा किया। अकेले सौर ऊर्जा ने 83% बढ़ोतरी (306 TWh) दी, जबकि पवन ऊर्जा में भी 7.7% की वृद्धि हुई। नतीजा ये रहा कि कोयला आधारित बिजली उत्पादन 0.6% और गैस 0.2% घट गई। वैश्विक स्तर पर बिजली क्षेत्र के एमिशन में 0.2% की गिरावट दर्ज की गई।

इतिहास में पहली बार, अक्षय ऊर्जा ने कोयले को पीछे छोड़ते हुए दुनिया की कुल बिजली आपूर्ति में अग्रणी स्थान प्राप्त किया।

भारत की भूमिका : ‘तीन गुना’ क्लीन ग्रोथ

भारत की कहानी इस वैश्विक बदलाव के केंद्र में है। Ember के विश्लेषण के मुताबिक, 2025 की पहली छमाही में भारत की बिजली मांग (India's electricity demand) केवल 1.3% बढ़ी, लेकिन स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन (clean energy production) इसकी तीन गुना गति से बढ़ा।

सौर ऊर्जा में 25% और पवन में 29% की वृद्धि ने मिलकर कोयला उत्पादन में 3.1% और गैस में 34% की कमी ला दी। इससे देश के पावर सेक्टर के उत्सर्जन में लगभग 3.6% की गिरावट आई - जो कि एक उल्लेखनीय बदलाव है ऐसे समय में जब उद्योग और अर्थव्यवस्था दोनों पुनरुद्धार की राह पर हैं।

ये वही तस्वीर है जिसे IEA की Renewables 2025 रिपोर्ट एक बड़े ट्रेंड का हिस्सा मानती है।

रिपोर्ट के अनुसार, 2030 तक दुनिया में अक्षय ऊर्जा क्षमता में 4,600 गीगावॉट की वृद्धि होगी - यानि चीन, यूरोपीय संघ और जापान की कुल बिजली उत्पादन क्षमता के बराबर।

इस पूरी वृद्धि का 80% हिस्सा अकेले सौर ऊर्जा से आएगा, और भारत चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा ग्रोथ मार्केट बनने की दिशा में अग्रसर है।

सौर ऊर्जा की क्रांति और पवन ऊर्जा की चुनौती

IEA की रिपोर्ट बताती है कि सौर ऊर्जा लागत और परमिटिंग समय दोनों ही दृष्टि से सबसे तेज़ी से बढ़ने वाली तकनीक बनी हुई है। दूसरी ओर, ऑफशोर पवन में फिलहाल कुछ सुस्ती देखी जा रही है, खासकर नीति बदलावों और सप्लाई चेन की चुनौतियों के चलते। फिर भी जैसे-जैसे परियोजनाएँ आगे बढ़ेंगी, पवन ऊर्जा की हिस्सेदारी भी मजबूत होगी।

दोनों रिपोर्टें इस बात पर ज़ोर देती हैं कि अब असली चुनौती बिजली ग्रिड्स और भंडारण प्रणाली (storage) की है।

जैसे-जैसे सौर और पवन का हिस्सा बढ़ता जा रहा है, कई देशों में ‘curtailment’ और ‘negative pricing’ जैसी घटनाएँ बढ़ रही हैं, यानी ऐसी स्थिति जब उत्पादन जरूरत से ज़्यादा हो जाए। इसलिए IEA ने स्पष्ट कहा है कि “नीति निर्माताओं को अब सप्लाई चेन सुरक्षा और ग्रिड इंटीग्रेशन पर विशेष ध्यान देना होगा।”

चीन की बढ़त, पश्चिम की सुस्ती

जहाँ चीन ने अकेले बाकी दुनिया से अधिक सौर और पवन ऊर्जा जोड़ी (सौर +43%, पवन +16%), वहीं अमेरिका और यूरोप में इस बार तस्वीर उलटी रही।

कमज़ोर हवा और जल विद्युत उत्पादन की वजह से यूरोप को गैस और कोयले का सहारा लेना पड़ा, जिससे वहाँ उत्सर्जन में 5% की बढ़ोतरी दर्ज हुई। अमेरिका में भी बिजली मांग तेज़ी से बढ़ी लेकिन स्वच्छ ऊर्जा की रफ्तार उस स्तर तक नहीं पहुँच सकी।

भविष्य की दिशा

इन रिपोर्टों से एक बात साफ़ है - दुनिया अब “फॉसिल पीक” के बाद के युग में दाखिल हो चुकी है। आधी दुनिया में कोयला और गैस का उपयोग पहले ही अपने शिखर पर पहुँच चुका है।

अब सवाल यह नहीं कि सौर और पवन कितना योगदान देंगे, बल्कि यह है कि क्या सरकारें और उद्योग मिलकर उस गति को बनाए रख पाएँगे जो जलवायु लक्ष्यों के अनुरूप हो।

जैसा कि Global Solar Council की सीईओ सोनिया डनलप ने कहा, “सौर और पवन अब हाशिये की तकनीकें नहीं रहीं। वे वैश्विक ऊर्जा प्रणाली को आगे बढ़ा रही हैं। लेकिन इस प्रगति को स्थायी बनाने के लिए निवेश और नीति, दोनों में तेजी जरूरी है।”

भारत के लिए यह अवसर है - क्योंकि यहाँ की दिशा अब सिर्फ ‘ऊर्जा उत्पादन’ की नहीं, बल्कि ‘ऊर्जा नेतृत्व’ की बनती जा रही है।

डॉ. सीमा जावेद

पर्यावरणविद &​ कम्युनिकेशन ​विशेषज्ञ

Clean energy revolution: what's next for India? India's Solar Surge: The Next Frontier for Clean Energy?

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Amalendu Upadhyaya
वेबसाइट संचालक अमलेन्दु उपाध्याय 30 वर्ष से अधिक अनुभव वाले वरिष्ठ पत्रकार और जाने माने राजनैतिक विश्लेषक हैं। वह पर्यावरण, अंतर्राष्ट्रीय राजनीति, युवा, खेल, कानून, स्वास्थ्य, समसामयिकी, राजनीति इत्यादि पर लिखते रहे हैं।

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