शिक्षा के व्यापार में गुम होते आदर्श शिक्षक : राष्ट्रीय शिक्षक दिवस विशेष
राष्ट्रीय शिक्षक दिवस विशेष - 05 सितम्बर 2024
शिक्षा की महत्ता और आदर्श शिक्षक की भूमिका (Importance of education and the role of an ideal teacher) को उजागर करते हुए, डॉ. प्रितम भि. गेडाम के इस लेख में शिक्षा के व्यापारिक स्वरूप और उससे जुड़े मुद्दों की चर्चा (Discussion on the commercial nature of education and the issues related to it) की गई है। कैसे वर्तमान में शिक्षा क्षेत्र में आदर्श शिक्षकों की कमी हो रही है और इस समस्या का समाधान क्या हो सकता है।
शिक्षा का व्यापारिक स्वरूप: आदर्श शिक्षक की कमी
Ideal teachers getting lost in the business of education (National
Teachers' Day Special - 05 September 2024) |
सिर्फ शिक्षा ही एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा हम दुनिया में कोई भी सर्वोच्च पद प्राप्त कर सकते हैं और बेहतर शिक्षा, संस्कार, कला-गुणों का संचार विद्यार्थी में आदर्श शिक्षक ही कर सकते हैं। जीवन में शिक्षक का स्थान माता-पिता तुल्य होता है, क्योंकि शिक्षक ही विद्यार्थियों को जीवन में योग्य मार्गदर्शन देकर सफलता के प्रगति पथ पर अग्रसर होने के लिए काबिल बनाते हैं। जीवन में गुरु बिना ज्ञान प्राप्त नहीं हो सकता। शिक्षक गुणों की खान होते हैं, शिक्षक ज्ञानी, विशेषज्ञ, मृदुभाषी, दूरदृष्टि, सहनशील, उत्तम श्रोता-वक्ता, समझदार, प्रोत्साहनकर्ता, अनुसंधानकर्ता, जिज्ञासा वृत्ति, परोपकारी, सत्य, निष्ठा, त्यागी, सदाचारी, धैर्यवान, निर्व्यसनी होते हैं। शिक्षक अपने सभी विद्यार्थियों को एक स्तर से देखते हैं, कभी कोई भेदभाव नहीं करते। शिक्षक शिल्पकार की भूमिका में होते हैं जो अपने विद्यार्थियों को कलागुणों से निखारकर आदर्श विद्यार्थी में तब्दील करते हैं। हमारे देश में महान शिक्षक समाज सुधारकों के रूप में हमें मिले हैं।
महात्मा फुले और सावित्रीबाई : शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति
क्रांतिसूर्य महात्मा ज्योतिबा फुले एवं उनकी पत्नी क्रांतिज्योति सावित्रीबाई फुले, जिन्होंने भारत देश में सर्वप्रथम स्त्री शिक्षा की ज्योति जलाने के लिए समाज की घृणा सहन करके लड़कियों के लिए पहली स्कूल स्थापित की।
ज्योतिबा जी ने अपनी पत्नी को पढ़ाकर-लिखाकर एक आदर्श शिक्षिका बनाकर एक इतिहास बनाया और फिर दोनों ने मिलकर शिक्षा के मोल को समझकर समाज में नई क्रांति की शुरुआत की। लोगों के ताने, गालियाँ, फब्तियां, तिरस्कार सहते थे, उन पर लोग पत्थर, कीचड़, गोबर फेंकते थे। पूरा समाज उनके विरुद्ध होकर भी फुले दंपत्ति निस्वार्थ भाव से अपना सब कुछ त्याग कर शिक्षा की लौ जलाते रहे। एक पल के लिए अगर हम उनके संघर्ष के दिनों की कल्पना भी करें, तो हमारी रूह कांप जाती है, ऐसा असहनीय दर्द भरा संघर्ष उन्होंने शिक्षित समाज की नींव रखने के लिए सहा।
धीरे-धीरे अनेक महान समाज सुधारकों ने शिक्षा को जन-जन तक पहुंचाने के लिए संस्थानों की स्थापना की। इन शिक्षा संस्थानों का केवल एक ही उद्देश्य था कि सबको बिना किसी भेदभाव या ऊंच-नीच के एक समान शिक्षा का अधिकार मिल सकें।
शिक्षा संस्थानों की वर्तमान स्थिति और समस्याएँ
आज हम आधुनिक युग में शिक्षा का स्तर देखते हैं तो, इसका स्वरूप पिछले कुछ दशकों के मुकाबले बिलकुल विपरीत नजर आता है। बच्चों के शिक्षा के प्राथमिक स्तर अर्थात नर्सरी से लेकर पीएचडी तक शिक्षा एक पैकेज के रूप में पैसे के हिसाब से मिलता है, इसमें पुस्तकें, यूनिफार्म, कोचिंग, स्टेशनरी हर चीज पहले से तय होती है।
शिक्षा के बाजार में प्रतियोगिताएं भी खूब चलती हैं। कुछ महंगे शिक्षा संस्थान तो फाइव स्टार होटल जैसा अत्याधुनिक सेवा-सुविधाओं वाला पैकेज भी विद्यार्थियों को प्रदान करते हैं। शिक्षा के क्षेत्र में अब दिखावे को सबसे अधिक महत्व दिया जाता है।
शिक्षा के व्यापार में आदर्श शिक्षकों का महत्व और उनकी कमी
सरकारी और निजी ऐसे दो प्रकार के शिक्षा संस्थान हमारे देश में हैं। सरकारी संस्थान में शिक्षकों का वेतन बेहतर होने के कारण वहां के शिक्षकों की आर्थिक स्थिति समाधानकारक होती है। देश में केंद्र सरकार के आईआईटी, आईआईएम, विश्वविद्यालय, केंद्रीय विद्यालय, नवोदय विद्यालय, आर्मी पब्लिक स्कूल जैसे संस्थान अपने बेहतर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए जाने जाते हैं, परंतु अन्य संस्थानों में बहुत बुरी स्थिति में शिक्षा प्रणाली नजर आती है। अनेक प्रवेश परीक्षाओं, शिक्षक भर्ती में फर्जीवाड़ा नजर आता है। बड़े-बड़े वेतनभोगी शिक्षकों को अपने विषय का ज्ञान नहीं होता। बहुत से राज्यों की सरकारी शिक्षा संस्थान कबाड़ की दुकान नजर आती है, विशेष रूप से पिछड़े क्षेत्रों में। नकली पदवी के लिए भी रैकेट सक्रिय है।
शिक्षा विभाग में बहुत सी गंभीर समस्याओं की बातें तो जानते हैं, लेकिन कोई भी खुलकर विरोध नहीं करता है। आज शिक्षक भी व्यभिचार, भ्रष्टाचार, भेदभाव, नशाखोरी करता हुआ दिखता है।
सरकारी और निजी शिक्षा संस्थानों की तुलना : वास्तविकता और चुनौतियाँ
प्रसिद्ध निजी शिक्षण संस्थान जो आर्थिक रूप से मजबूत हैं, वे शिक्षा की गुणवत्ता बनाये रखने और बेहतर सुविधा विद्यार्थियों को प्रदान करने का प्रयत्न करते नजर आते हैं, लेकिन छोटे निजी संस्थान में नियमानुसार योग्यतापूर्ण शिक्षक की भर्ती केवल नाम के लिए होती है, क्योंकि अत्यल्प वेतन पर शिक्षक को नौकरी पर रखना उस शिक्षक से धोखा है, इसलिए ऐसे संस्थानों में हर साल अयोग्य नये शिक्षक आते-जाते हैं। इस कालावधि में विद्यार्थियों का बहुत नुकसान होता है, शिक्षक भी अपने छोटे-से वेतन के हिसाब से कामचलाऊ शिक्षा प्रदान करते हैं। ऐसे शिक्षक और विद्यार्थी दोनों विकसित समाज के लिए रुकावट का काम करते हैं। आजकल देश में गिरते शिक्षा के स्तर के लिए ऐसी शिक्षा प्रणाली जिम्मेदार है।
शिक्षा में भ्रष्टाचार और अव्यवस्था के उदाहरण
शिक्षा में अनेक कलंकित करने वाली घटनाएं नित्य घटित होती है, 15 अगस्त 2024 को नागपुर (महाराष्ट्र) के दैनिक भास्कर हिंदी समाचार पत्र के प्रथम पृष्ठ पर राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय में 92 प्रोफेसर पद भर्ती के लिए 30 करोड़ रुपये की रिश्वत लेने की खबर प्रकाशित हुई थी, अर्थात हर एक पद के लिए 50-80 लाख रूपये के आसपास।
20 अगस्त 2024 को लोकमत समाचार पत्र में भी छत्रपति संभाजी नगर (महाराष्ट्र) के एक महाविद्यालय के प्रोफेसर जिनका वेतन पौने तीन लाख रूपये महीना है, उन्होंने अपने एक पीएचडी के विद्यार्थी से 5 लाख रुपये रिश्वत में लेने का तय किया और इसकी पहली किस्त 50 हजार रूपये लेते हुए एंटी करेप्शन ब्यूरो द्वारा प्रोफेसर पकड़ी गयीं, यह खबर प्रकाशित हुई थी। ऐसी खबरें अक्सर ही पढ़ने-सुनने को मिलती हैं। इस क्षेत्र में कार्यरत कर्मचारी वर्ग इस हकीकत को काफी अच्छे से जानते हैं। लेकिन इसकी भयावहता का शिकार केवल गरीब और योग्य उच्च शिक्षित उम्मीदवार होता है क्योंकि वह रिश्वत नहीं दे सकता, इसलिए नौकरी प्राप्त कर पाना कठिन होता है।
बहुत बार इस समस्या के बारे में कुलगुरु, सत्ताधारी नेता, मंत्री महोदय को अवगत कराया गया लेकिन कोई स्थायी समाधान नहीं मिला।
शिक्षा में गुणवत्ता बनाये रखने की चुनौतियाँ
गलत मार्ग से शिक्षक जैसे पवित्र पद प्राप्त करने वाले क्या सच में अपने पद की गरिमा, न्याय, निष्ठा बनाकर आदर्श शिक्षक बन पाएंगे?
हमारे देश में 20 सालों से भी अधिक समय से योग्य उम्मीदवार यूजीसी-नेट, सेट, स्लेट जैसी असिस्टेंट प्रोफेसर पद हेतु योग्यता परीक्षा पास करके, एमफिल, पीएचडी पदवी प्राप्त करके, अपने जीवन के अनेक वर्ष, पैसा, उम्र इस उच्च शिक्षा को प्राप्त करने में खर्च करके भी उन्हें योग्यतानुसार नौकरी नहीं मिली इसलिए उनकी जिंदगी तबाह हो चुकी है।
फर्जीवाड़ा और रिश्वतखोरी : शिक्षा में गिरते मानक
महाराष्ट्र राज्य में सरकारी सहायता प्राप्त (ग्रांटेड) कॉलेजों में प्रोफेसर पदों या नौकर भर्ती की जिम्मेदारी कॉलेज को दी गई है, वेतन सरकार करता है लेकिन पद भर्ती कॉलेज करता है। अधिकतर शिक्षा संस्थान में अनुबंध पर शिक्षकों को दिहाड़ी मजदूर से भी कम वेतन प्राप्त होता है। इस महंगाई में जीवन जीना बहुत मुश्किल हो जाता है, इसलिए बहुत बार हताश होकर ऐसे शिक्षक आत्महत्या भी करते हैं।
ग्रामीण शिक्षा संस्थानों की बदहाल स्थिति
एक बार मैं चंद्रपुर (महाराष्ट्र) के ग्रामीण क्षेत्र के राज्य सरकार द्वारा अनुदानित लड़कों के आवासीय आश्रम विद्यालय (State Government aided residential ashram schools for boys) में एक दिन के लिए रुका था, तब बरसात का समय था, आश्रम भवन खंडहर की तरह था, दरवाजे की जगह लकड़ियों के टुकड़े जोड़कर काम चलाया जा रहा था, कमरे के अंदर से दीवारें भीगी थीं। इतनी अपर्याप्त सुविधाओं में छोटे-छोटे विद्यार्थी वहां नीचे दरी बिछाकर सोते थे। स्नानगृह, शौचालय बहुत अस्वच्छ थे, इसलिए वहां के विद्यार्थी आश्रम के कुएं पर ही खुले में स्नान करते थे। वहां का रसोईघर देखकर तो किसी को भी भोजन करने की हिम्मत ही नहीं होगी। दीवारों से लगकर ही नालियां बह रही थीं, जिसमें मौजूद बड़े-बड़े मच्छर एक पल के लिए भी शांत बैठने नहीं देते थे, ऐसे वातावरण में सांप, बिच्छू का डर बना रहता है। वह दृश्य आज भी याद करता हूँ, तो शरीर कांप जाता है और वहां के बच्चों पर तरस आता है कि देश का आने वाला भविष्य किस बदहाल स्थिति में दिन काट रहा है। आज के युग में सच्चा शिक्षक होना बहुत मुश्किल है।
डॉ. प्रितम भि. गेडाम
लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।
Ideal teachers getting lost in the business of education (National Teachers' Day Special - 05 September 2024)
https://youtu.be/jE64NqBsEn8
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