ऊंची है मंजिल मेरी
कक्षा 10 की छात्रा प्रियंका कोशियारी की प्रेरणादायक कविता 'ऊंची है मंजिल मेरी' में सफलता की ओर निरंतर बढ़ने की संकल्पशक्ति को दर्शाया गया है। प्रियंका कोशियारी की कविता आत्मविश्वास और मेहनत के महत्व को उजागर करती है, और बताती है कि कैसे कठिनाइयों के बावजूद लक्ष्य की ओर बढ़ते रहना चाहिए।
राह मैं ख़ुद बनाऊँगी,
डगमगा जाऊँ अगर कहीं,
तो फिर खड़ी हो जाऊँगी,
आगे बढ़ना सीखा है मैंने,
पीछे कैसे मुड़ जाऊँगी,
ना मानूँगी हार कभी,
सफलता तभी तो पाऊँगी,
तैयार है पूरी मेरी,
मेहनत करते जाना है,
सपना है यह मेरा,
मंज़िल तक मुझे जाना है,
रहे तो है कई मगर,
मंज़िल मेरी एक है,
बढ़ते रहना आगे निरंतर,
रास्ता भी होना नेक है।।
प्रियंका कोशियारी
कक्षा-10
कपकोट, उत्तराखंड
(चरखा फीचर)
ऊंची है मंज़िल मेरी,
राह मैं ख़ुद बनाऊँगी,
डगमगा जाऊँ अगर कहीं,
तो फिर खड़ी हो जाऊँगी,
आगे बढ़ना सीखा है मैंने,
पीछे कैसे मुड़ जाऊँगी,
ना मानूँगी हार कभी,
सफलता तभी तो पाऊँगी,
तैयार है पूरी मेरी,
मेहनत करते जाना है,
सपना है यह मेरा,
मंज़िल तक मुझे जाना है,
रहे तो है कई मगर,
मंज़िल मेरी एक है,
बढ़ते रहना आगे निरंतर,
रास्ता भी होना नेक है।।
प्रियंका कोशियारी
कक्षा-10
कपकोट, उत्तराखंड
(चरखा फीचर)
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