राष्ट्रीय पुस्तकालयध्यक्ष दिवस का महत्व

हर साल 12 अगस्त को देशभर में “राष्ट्रीय पुस्तकालयध्यक्ष दिवस” बड़े उत्साह से मनाया जाता है। पुस्तकालय ज्ञान के स्रोत के रूप में कार्य करते हैं। आज के समय में पुस्तकालय के बगैर शिक्षा की कल्पना असंभव हैं। देश में पुस्तकालयों का विकास संतोषजनक नहीं है, विशेषत ग्रामीण क्षेत्रों में। समृद्ध पुस्तकालय ही देश में समृद्ध शिक्षा का आधार बन सकते हैं। डॉ. प्रितम भि. गेडाम का लेख

Significance of National Librarian Day

Significance of National Librarian Day


संपन्न पुस्तकालय समृद्ध समाज व्यवस्था और विकसित राष्ट्र की पहचान होते है। शिक्षा का केंद्र बिंदु और प्रेरणा का स्रोत पुस्तकें ही होती है, आवश्यक aaसंसाधनों की उपलब्धता और कुशल कर्मचारी वर्ग उत्कृष्ट सेवा सुविधाओं द्वारा पुस्तकालयों को उन्नत बनाते हैं। पुस्तकालयों का महत्व केवल ज्ञानी ही समझ सकते हैं, विश्व में विकसित देशों के पुस्तकालय अपने पाठकों को अंतरराष्ट्रीय मानकोंनुसार सेवाएं प्रदान करते हैं, पाठकों को दुनिया भर का ज्ञान, अनुसंधान, दुर्लभ सूचनाएं, अद्यतन जानकारी घर बैठे पुस्तकालय सदस्यता द्वारा इंटरनेट की बस एक क्लिक पर या अपने नजदीक के पुस्तकालय पर उपलब्ध होती है। हमारा देश गांवों में बसता है, क्योंकि सबसे बड़ी आबादी ग्रामीण क्षेत्र में रहती है। शहरों में सुख-सुविधाओं के लिए शिक्षा संस्थान, मॉल, अस्पताल, कारखाने, उद्योग, होटल, यातायात संसाधन जैसे अनेक मौके होते हुए भी बहुत बार सामान्य मनुष्य का संघर्ष ख़त्म होने का नाम नहीं लेता। शहरों में भी लोगों को आवश्यकतानुसार पूर्ति नहीं होती है, फिर ऐसे समय में ग्रामीण क्षेत्रों के विकास की क्या हालत होती होगी, इसका हम अंदाजा भी नहीं लगा सकते। समस्या हर विभाग और क्षेत्र में है।

ग्रामीण क्षेत्रों में विशेषतः पिछड़े इलाकों में आज भी बिजली, पानी, पोषक अन्न, सड़क, स्कूल-कॉलेज, रोजगार और उन्नत जीवन के लिए आवश्यक संसाधनों और सुविधाओं की भारी कमी है। बहुत बार तो सरकारी योजनाएं भी इन जरुरतमंदों तक पहुंच नहीं पाती है। यहाँ के सामान्य नागरिकों का संघर्ष तो अधिक ही कष्टप्रद होता है। ऐसे में यहां जीवन उन्नति के मौके बहुत ही कम मिलते हैं। ऐसी परिस्थिति में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करना मुश्किल होता है और इन हालात में बेहतर पुस्तकालय का विकास केवल चमत्कार ही हो सकता है, क्योंकि दूर दराज की अधिकतर शासकीय विभाग और स्कूल-कॉलेज भी आधारभूत समस्याओं से जूझते नजर आते हैं। बहुत से स्कूल-कॉलेज की पुरानी इमारत खंडहर हो गई हैं, अनेक बार ऐसी जगह हादसे होने की घटनाएं देखने-सुनने को मिलती हैं। पिछड़े इलाकों में आज भी बच्चे नदी-नाले, जंगल, पहाड़, दलदलनुमा सड़क पार करके स्कूल जाते है, सोशल मीडिया पर ऐसे वीडियो भी वायरल होते हैं।

इसी विषय से संबंधित अपना एक अनुभव आप सभी को बताता हूँ।

कुछ समय पहले एक 80 साल के बुजुर्ग ने मुझे कॉल किया था, वे बुलढाणा (महाराष्ट्र) के किसी ग्रामीण क्षेत्र में एक छोटा-सा पुस्तकालय संचालित करते हैं। वे खुद की पेंशन के भरोसे उस पुस्तकालय में आज के महंगाई के जमाने में बड़ी मुश्किल से कुछ समाचार पत्र ही खरीद पाते हैं। निधि के अभाव में पुस्तकें चाहकर भी खरीद नहीं सकते, उन्हें किसी से कोई वित्तीय सहायता नहीं मिलती, राज्य सरकार से अनुदान के लिए उन्होंने बहुत प्रयास किये परंतु उन्हें सिर्फ निराशा ही मिली। उनके गांव के बच्चों को मज़बूरी में दूर तहसील के पुस्तकालयों में जाना पडता है, वहां भी बच्चों को पर्याप्त सुविधा नहीं मिलती है।

उम्र के इस पड़ाव में वयोवृद्ध बुजुर्ग का समाज के लिए पुस्तकालय को जीवंत रखने के लिए निःस्वार्थ मेहनत, सेवाभाव, संघर्ष हमें निःशब्द कर देता है। अपनी समस्या मुझसे साझा करते हुए वे बेहद भावुक होकर रोने लगे और बोले कि मैं अपने जीते जी इस पुस्तकालय को समृद्ध नहीं कर पाया इसका बहुत दुःख है, शायद उनकी मृत्यु के पश्चात यह पुस्तकालय बंद हो जायेगा।

यह हुई एक संघर्षमय पुस्तकालय की दम तोड़ती वास्तविकता। देश के ग्रामीण क्षेत्रों के अन्य पुस्तकालयों की दास्तान इससे कुछ अलग क्या होगी? गांवों, शहरों में अक्सर त्यौहार, रैली, सभाएं, मनोरंजन कार्यक्रम, प्रदर्शन, खेल, उद्घाटन, सरकारी योजनाओं के लिए बड़े-बड़े आयोजन किये जाते हैं, सरकार भी विज्ञापनों पर करोड़ों रुपया खर्च करती है, नेता, अभिनेता, सेलिब्रिटी इसके लिए हमेशा लोगों के बीच भेंट देते हैं। परंतु पुस्तकालयों को समृद्ध करने के लिए ऐसे आयोजन देखने ही नहीं मिलते, ना ही समाज के दानदाता आगे आते, जबकि पुस्तकालय सबसे ज्यादा जरूरी हैं।

देश के बड़े-बड़े निजी शिक्षा संस्थान, भारत सरकार द्वारा संचालित केंद्र, आईआईटी, आईआईएम, विश्वविद्यालय, शहरों के नामचीन स्कूल-कॉलेज के पुस्तकालय तो विकसित और समय अनुसार उन्नत नजर आते हैं, लेकिन बाकी जगह पुस्तकालयों की हालत बहुत दयनीय है। शहरों में आबादी तेजी से बढ़ रही है, उनके लिए स्कूल-कॉलेज, बाजार, दुकानें, रास्ते, बस स्टॉप, कॉलोनी सब नये-नये बन रहे हैं, केवल आबादी की जरूरत के हिसाब से नए पुस्तकालय स्थापित नहीं हो रहे हैं।

विकसित पुस्तकालय बगैर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा कोरी कल्पना है, जबकि देश का आने वाला उज्वल भविष्य बेहतर शिक्षा, संस्कार, कलाकौशल पर टिका है, अर्थात विकसित पुस्तकालय मजबूत शिक्षा की आधारशिला है।

संस्कृति मंत्रालय (राजा राम मोहन रॉय लाइब्रेरी फाउंडेशन) अनुसार, देश में 54,856 सार्वजनिक पुस्तकालय हैं, लेकिन उनमें से केवल एक छोटा सा हिस्सा ही अंतरराष्ट्रीय मानकों को पूरा करता है।

इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ लाइब्रेरी एसोसिएशन मानक के अनुसार, प्रत्येक 3,000 लोगों पर एक सार्वजनिक पुस्तकालय होना चाहिए। आबादी के हिसाब से हमारे पास 4,41,390 सार्वजनिक पुस्तकालय होने चाहिए। देश में 36,000 लोगों पर एक सार्वजनिक पुस्तकालय है। पुस्तकालय विशेषज्ञों के अनुसार केवल 20% आबादी को हमारी सार्वजनिक पुस्तकालय प्रणाली द्वारा सेवा प्रदान की जाती है। अमेरिका में, सार्वजनिक पुस्तकालय प्रणाली कुल जनसंख्या के 95.6% को सेवा प्रदान करती है और प्रति व्यक्ति लगभग 2,493 रुपये खर्च करती है। हमारे देश के केवल 9 प्रतिशत गांवों में सार्वजनिक पुस्तकालय हैं, उपलब्ध रिकॉर्ड के अनुसार सार्वजनिक पुस्तकालयों पर सरकार का औसत प्रति व्यक्ति खर्च केवल 0.07 रुपये है और यह अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग है।

आईएफएलए की रिपोर्ट 2017 अनुसार, भारतीय सार्वजनिक पुस्तकालय में औसत 5,700 किताबें हैं, जबकि विकसित देशों में 108,000 किताबों का संग्रह है।

यूनेस्को इंस्टीट्यूट ऑफ स्टैटिस्टिक्स की 2018 की रिपोर्ट अनुसार, केवल 12% भारतीय सार्वजनिक पुस्तकालयों में कंप्यूटर हैं और केवल 8% में इंटरनेट की सुविधा है। 2016 पीटीआई के समाचार लेख के अनुसार, भारत के कार्यरत कुल पुस्तकालयध्यक्षों में से केवल 10% ही पेशेवर रूप से योग्य हैं। शहरों में नगर निगम, महानगर पालिका का हजारों करोड़ का बजट होने के बावजूद उनके द्वारा संचालित सार्वजनिक पुस्तकालयों पर खर्च करने के लिए पर्याप्त धन नहीं होता।

ग्रामीण समाज के उत्थान के लिए पुस्तकालय की समृद्धि बेहद आवश्यक है। ग्रामीण क्षेत्रों में प्रत्येक नागरिक के सामाजिक, आर्थिक, कृषि, व्यावसायिक विकास के लिए आवश्यक जानकारी सही समय पर प्रदान करना जरूरी है। पुस्तकालय सूचना केंद्र ग्रामीण क्षेत्रों में वित्तीय पुनरुद्धार मुद्दों में सहायता, सरकारी योजना-परियोजनाएँ, ग्रामीण स्वास्थ्य विषय, धन स्रोत, तकनीकी सहायता कार्यक्रम, अनुसंधान अध्ययन, सामुदायिक विकास परियोजनाओं की सफल रणनीतियाँ, मॉडल और केस अध्ययन, लघु व्यवसाय आकर्षण, आवास कार्यक्रम सेवाएँ, पर्यटन संवर्धन और विकास, सतत समुदाय और ऊर्जा कार्यक्रम, मौसम, सामुदायिक जल गुणवत्ता जैसे आवश्यक विषयों पर मदद करता है, उपयोगकर्ताओं को विशिष्ठ क्षेत्र के संगठनों या विशेषज्ञों की ओर संदर्भित करता है। इंटरनेट द्वारा संबंधित वेबसाइटों और सोशल मीडिया के माध्यम से ग्रामीण सूचना, उत्पादों, नए स्टार्टअप, और सेवाओं तक पहुंच प्रदान करता है। यह सभी सेवाएं अमेरिका में सूचना केन्द्रों द्वारा वहां के ग्रामीण समुदाय को प्रदान की जाती है।

समाज में नई पुस्तकालयों की स्थापना एवं उनमें अत्याधुनिक सेवा सुविधा, प्रत्येक स्कूल में पुस्तकालय, राज्य व केंद्र सरकार के प्रत्येक विभाग में पुस्तकालय, प्रत्येक कॉर्पोरेट ऑफिस में पुस्तकालय, प्रत्येक गांव, प्रत्येक कस्बों-बस्तियों में समृद्ध पुस्तकालय आज अत्यावश्यक है। देश में सशक्त शिक्षा प्रणाली के लिए समृद्ध पुस्तकालय अति आवश्यक है, बरसों तक पुस्तकालयों में कुशल कर्मचारियों की भर्ती न होना, उनके वेतनवृद्धि में सुधार न होना, पुस्तकालय में हर साल आवश्यक साधन सामग्री के लिए निधि का अभाव, संबंधित वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा पुस्तकालयों के विकास की ओर उदासीनता, पुस्तकालयों के महत्व में दूरदर्शिता की कमी ने देश में पुस्तकालय विकास को कमजोर कर दिया है। भले ही केंद्र सरकार, राज्य सरकार, स्थानीय प्रशासन द्वारा पुस्तकालय संचालन हेतु कार्य किये जाते हैं, लेकिन देश की आबादी और अंतरराष्ट्रीय मानकों अनुसार वह बेहद कम है। ग्रामीण क्षेत्र में विकसित पुस्तकालय समृद्ध भारत की पहचान बन सकती है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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Amalendu Upadhyaya
वेबसाइट संचालक अमलेन्दु उपाध्याय 30 वर्ष से अधिक अनुभव वाले वरिष्ठ पत्रकार और जाने माने राजनैतिक विश्लेषक हैं। वह पर्यावरण, अंतर्राष्ट्रीय राजनीति, युवा, खेल, कानून, स्वास्थ्य, समसामयिकी, राजनीति इत्यादि पर लिखते रहे हैं।